Monday, April 8, 2019

शरणार्थी (मु)


शरणार्थी (मु)
नमस्ते! 
भगवान का भक्त मैं,
अगजग में 
उनकी लीला से
घृणा!
क्यों  उसने 
जिसकी लाठी उसकी भैंस  की नीति
जिसका राज,उसकी संपत्ति  अपनाई।
पर एक अटल कानून से ही
 मैं  अति संतोष।

धन ,पद,अधिकार बल आदि से
मानव रोक नहीं  सकता ,
अपनी जवानी ।
अपनी बुढापा ।
अपने-अपने उत्थान -पतन।
नाश,मृत्यु।
अत: मैं  सर्वेश्वर  का शरणार्थी ।
स्वचिंतक  यस।अनंत कृष्णन ।

No comments:

Post a Comment