Friday, September 1, 2023

शाहंशाह

 नमस्ते। वणक्कम।

 प्रभु के यहाँ देर है,अंधेर नहीं।

    

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8

 भद्रजनों की रक्षा के लिए,

 बद्कर्मों को नाश करने के लिए

 धर्म कर्मों की  ओर मानवको जगाने के लिए, 

 धर्म  की स्थापना करने केलिए

भगवान समय समय पर अवतार लेते हैं।

 संसार में भगवान की सृष्टियों में

 भगवान कंजूसी करते हैं।

 यह भगवत् लीला अति सूक्ष्म है।

 एक पौधे में फूल एक है।

 काँटों की संख्या अधिक हैं।

  कोई भी काँटों की ओर ध्यान नहीं देता।

सिंह की गंभीरता सराहनीय है।

पर वह आदमखोर हैं।

बाघ आदमीखोर है।

मच्छर अति छोटे हैं।

 मानव के खून चूसने वाले हैं।

मधु मक्खियाँ ज्यादा हैँ।

 उनके छत्ते में स्वादिष्ट,

 मधुर शहद का संग्रह है।

  आदमखोरों से मानव 

अपने बुद्धि बल से  नचाता है।

काँटों से सावधान रहता हैं।

मच्छरों  के काटने से बचता है।

कैसे?अपने बुद्धि बल से।

मधु का संग्रह करता है,

अपने बुद्धि-विवेक से।

काँटों के चुभने सावधान हो जाता है।

बुद्धियुक्त मानव अपने विवेक हीन कर्मों के कारण

समाज को बेचैनी  कर देता है‌।।

कारण उनकी बुद्धि सद्यःफल के लिए मंदिर जाती है।।

काम,क्रोध,मंद,लोभ मानव को महामूर्ख बना देता है।

विश्व के इतिहास में, भारतीय पौराणिक काव्यों में

आसुरी शक्ति ही सत्तारूढ़ शक्ति रही‌।

सत्ता के डर से सिवा प्रह्लाद के 

बाकी सब। हिय्यण्याय नमः का जप करते थे।

भगवान का नाम लेनेवाला प्रह्लाद,

अत्यंत कष्ट सहकर जिंदा रहा।

सत्य हरिश्चन्द्र के दुख का अंत न रहा।

 भगवान के यहाँ देर है, अंधेरा नहीं।

भगवान की देरी सहने शक्ति चाहिए।

सत्य चाहिए।

असह्यकष्टों को सहना चाहिए।

मानव में अधिकांश माया/शैतान के मोह में

विवेक हीन होकर भ्रष्टाचारी में सुख मानते हैं।

 भगवान् के भक्त लौकिक सुख नहीं चाहते।

कबीर ने कहा है,

चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।

जाको कछु न चाहिए,वही शाहंशाह।।


 एस. अनंत कृष्णन,

स्वचिंतक स्वरचनाकार।शाहँनशाह

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