Sunday, September 3, 2023

हिंदी

 असल में कन्याकुमारी से हिंदी यात्रा करनी है, जहाँ हिंदी का कठोर विरोध है।

 1937से यह विरोध   अंग्रेज़ शासकों के समर्थकों ने किया है।

जस्टिस पार्टी वाले द्राविड़ दलवालों ने  जिनकी माँग  अलग तमिलनाडु की माँग करते थे।

 यह हिंदी विरोध   राष्ट्रीय दलों को पनपने नहीं दिया।

आचार्य विनोबा भावे ही गाँव गाँव में हिंदी द्वारा आह्वान दिया।

 अब अंग्रेज़ी माध्यम पाठशाला जिनकी संख्या हर साल बढ़ रही है, जिनकी अनुमति केंद्र सरकार दे रही है, कारण सब के सब अंग्रेज़ी के पारंगत हैं।

 उनके मन में यह बात जम गई कि बगैर अंग्रेज़ी के भारत की प्रगति नहीं।

 वे पाश्चात्य रंग में रंगकर, थप्पड़ खाकर स्वतंत्रता सेनानी बने।

भारतीय मंदिर, संगीत, कलाएँ, कुटिर उद्योग , कृषि पद्धति ‌किसी का पता नहीं। जिन्होंने इन का महसूस किया, भारतीयों को भारतीय ढंग से आगे बढ़ाना चाहा,वे सत्ताधारी न बने।

  पंडित जवाहरलाल नेहरू तो

 उनके परिवार उनके‌वंशज पाश्चात्य परिवेश में पले।

 कृषि प्रधान देश को औद्योगीकरण की ओर ले गये।

परिणाम भारतीय झील गायब।

नदियों में प्रदूषण।

 नदियों के राष्ट्रीय करण नहीं  किया। ठंडे पेय विदेशों का।

 पेय जल विदेशी कारखानों का।

 गंगा के किनारे मिनरल वाटर की बिक्री।

 शैतानों की कुदृष्टि।

सब को  चैन नगर के चार बेकार

श्री सुदर्शन की कहानी बार बार पढ़ना चाहिए। पढ़ाना चाहिए।

 वेद मंत्र के समान  सुदर्शन की कहानी भारतीयों को जगाने वाली हैं।

 पहले मेहनती खाते थे, ब बेकार ऐश आराम।

 चुनाव में पैसे फेंको, पाँच साल में हजारों गुना कमाओ।

 बैंक में मिनिमम बैलेंस के नाम से  लेटो। उद्योगपतियों का कर्जा माफ कर दो।

 इतना बढ़ा गरीबों का लूट।

 वे गरीबों का भला क्या करेंगे।

    हिंदी के प्रचार हिंदी अधिकारियों के वेतन से नहीं,

 तमिलनाडु के प्रचारकों को देना चाहिए।

 वे अपने मनोरंजन त्याग कर हिंदी का प्रचार हिंदी विरोध शासकों के क्षेत्र में र रहे हैं।

आज तमिलनाडु में दो लाख हिंदी परीक्षार्थी है तो न हिंदी अधिकारियों की देन।

 आत्मचिंतक  भारतीय एकता चाहनेवाले हिंदी प्रचारक।

घर घर दरवाजा से बुलाकर मुफ्त में हिंदी प्रचार करते।

 पर हिंदी अधिकारी हस्ताक्षर करके वेतन भोगते हैं।

 अतः  हजार स्थाई हिंदी प्रचारक की नियुक्ति करनी चाहिए।

प्रशिक्षित प्रचारक।

जीविकोपार्जन के प्रबंध के बिना

हिंदी का विकास केवल बोलचाल ही रहेगा।

 हिंदी अधिकारी 76साल में कितने लोगों को सरकारी पत्राचार को सार्थक बनाया।

 सोचिए।

 करोड़ों नौकरी अंग्रेज़ी ज्ञाताओं को।

भूखा भजन न गोपाल।

 संस्कृत तज अंग्रेज़ी सीखी।

कारण गुमाश्ता, वकील, डाक्टर।

 भारतीय भाषाएँ जीविकोपार्जन का लायक नहीं।   

 सोचिए। कदम उठाइए।

शताब्दी वर्ष हिंदी प्रचार सभा में

स्थाई हिंदी प्रचारक हैं ही नहीं।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

 1967 से आज तक।

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