Saturday, December 9, 2023

स्ववलंब बनो

 मानव तो पशु -पक्षी नहीं,
स्वावलंब जीवन बिताने  के लिए ।
दस महीने माँ के अंधेरे कोख में ।
कोख से बाहर आते ही उसको रोना है,
न तो डाक्टर परेशान,
जब तक न रोता,
हाथ-पैर न हिलाता,
सब के सब परेशान ।।
उसको अपने पैरों पर खडे रहने एक साल।
वह तो माँ का प्यारा,
दादा-दादी का दुलारा।
उसकी सेवा करने तैयार ।
कैसे कहूँ,उनसे खुद  खाना खाओ।
पाश्चात्य देश दो साल के बच्चे को
भारतीय माँ का खाना खिलाना आश्चर्य की बात।
वहीं बच्चा स्वलंबित।
पाश्चात्य देशों में सोलह साल के बाद
युवक-युवतियाँ अपने पैरों पर खडे रहते ।
शादी भी खुद की मर्जी ।
तलाकभी खुद की मर्जी ।
इतना स्वावलंबन भारत में नहीं ।.
चालीस साल तक माता-पिता की अनुमति के बिना
पत्नी से बोलने का भी स्वतंत्रता नहीं ।
१९९० ई. के बाद सम्मिलित परिवार नहीं ।
भारत में  अंग्रेज़ी माध्यम का प्रभाव
नारी मन गई स्वावलंबित।
नर बन गया परावलंबित यही शहरी वातावरण।
मानव को स्वालंबित रहो कैसे कहूँ?
सांसद विधायक को चुनाव के दो महीने मत दाताओं के सामने
परावलंबित बनकर हाथ जोडना पडता है।
मानव मूल्यों क मंच के बिना 
तमिलनाडू में  कविता मंच नहीं  हिंदी नहीं ।
नाम पाने अवलंबित काम पाने अवलंबित
सीखने अवलंबित, सिखाने अवलंबित
भोजन खाने किसान,आवागमन के लिए चालक।
हर बात मे स्वालंबित रहना कैसे ?






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