नमस्ते। वणक्कम्।
भगवान भला करेगा।
भवसागर में उन्हीं को
जिसको वह देना चाहता है।
प्रयत्न तो सब करते हैं,
सद्यःफल के लिए
चापलूसी करते हैं।
घर घर जाकर मत माँगते हैं,
अपने मतों का प्रचार करते हैं,
न्याय अन्याय की बातें करते हैं,
पर युग पुरुष एक ही होता है,
जिनपर नज़र खुदा रखता है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।
सौ साल तक जीते हैं क्या प्रयोजन।
उनतालीस साल तक जीकर अमर बन गये
आदी शंकराचार्य, गणितज्ञ रामानुजम्
राष्ट्रकवि सुब्रमण्य भारती।
न जाने कितने महान।
नाम बदनाम पदनाम ईश्वरीय देन।
जो मिलता हैं सब के सब ईश्वरीय अनुग्रह।
कितने महान थे, एक एक नदारद हो जाते।
पर मूल में जो हें, वे ही अमर बन जाते।
भावी अनुयायी मूल के नाम लेते,
पर अपने स्वार्थ लाभ के लिए,
नये विचार के रूप में
नयी शाखा, नया संप्रदाय, नया नेता
परिणाम मूल के एकता का संदेश,
प्यार सत्य अहिंसा शिष्टाचार
फिर विविधता में बँट जाते।
धर्म काम संप्रदाय, जाति से बँटकर
मानव मानव में फूट डालते।
इनके पीछे हैं मानव स्वार्थ।
माया शैतानियत्।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई।
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