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Saturday, December 6, 2014

बरगद का पेड़ मैं हूँ अद्भुत.கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

 वटवृक्ष 

  जैसे अणु में जो ऊर्जा है 
,
वैसे ही छोटे बीज में दबे रहे

 विश्वरूप हूँ  मैं.

.वटवृक्ष  हूँ   मैं, एक 

अद्भुत वृक्ष  हूँ मैं.


शहीदों के 

 खून के कीचड   में 

उगकर

युगों के  प्यासों  के 

आंसुओं की बूंदों से

बड़ा हुआ  वृक्ष मैं.

मेरी   शाखाएं  

विंध्य हिमाचल की  चोटी   से

कुमारी अंतरीप के महासागर  तक

 लम्बी  बड़ी  हुई  हैं .

   मेरा मन  अपरिवर्तित 

 हरियाली -सा ,

दूध सा श्वेत  ,

सूखापन सहकर

 बडा हुआ वृक्ष हूँ  मैं.


मेरे  विशाल  छाया के लिए

फल के स्वाद  के लिए

प्रेम  वश आये पक्षियों का

  आश्रय स्थल हूँ मैं.

रंगबिरंगे

 भिन्न  भिन्न 

 पक्षी वर्गों की भाषाएँ  तो
 अलग.

लेकिन गाने के गीतों के

विचार तो एक.

\मैं  तो परिश्रमी 

पक्षियों  को 

प्रोत्साहित करने वाला

 तम्बू.


उनके हर उत्सव

 मेरी शाखाओं में

 रंग बने .

सत्य मेरा नित्य वेद.

प्रेम और शान्ति स्थिर

अपरिवर्तित  पाठ.

इसीलिये 

 बाजों और उल्लुओं को

मेरे स्वाभिमान 

 कोंपल रोक देती हैं .

केवल घोंसले  बनाने  के लिए 

 ही  नहीं ,

बैठने के लिए भी

 मेरी   शाखाएँ जो 

सैद्धांतिक   हैं 

स्थान नहीं देती.

शुल्क अदा करने पर भी

अनुमति नहीं,

 इसी में दृढ़ हूँ मैं.

समय के भंवर  में

मेरे दुःख और जाँच तो 

वर्णनातीत है.

 इतिहास  में 

 मैं पेड़ हूँ 

साधक.

चंद चिड़ियाएँ

 कहीं से आकर

मेरे फल  को चखकर

मेरे ऊपर ही छाछ करते हैं.

 चंद यहाँ फल  चखकर

 कहीं जाकर  बीज डालते हैं.

चंद पक्षी

चिडिया -शावकों को

पंखों के उगने के पहले

उनकी बोली में

भूलें निकालकर

उनकी बढ़ती 

रोकने में

लगे हुए हैं.

मुझमें  केवल

कठफोड़वा को

माफ करने का मन नहीं  है.

वे मेरी पोशाकें उतारकर

अपमानित करने में ही तो

आनंद पाते  हैं.

मुझमें छेद  बनाकर

सांप के बिल बनाने

देते हैं साथ.

मेरे बीज तो कडुवे है तो भी

मेरे फल हैं मीठे.

मेरे सर से जड़ तक कई

हज़ारों अवस्थाएं.


मेरी भूमि में कहीं इधर ,

कही उधर के बारूद के

 आंसू के रिसाव  पर

क्या आपने  ध्यान दिया है.?

मैं तो एक गरीब पेड़

गानेवाली चिड़ियाओं  को मात्र

खिलाता हूँ फल..

मुझमें  केवल

कठफोड़वा को

माफ करने का मन नहीं  है.

वे मेरी पोशाकें उतारकर

अपमानित करने में ही तो

आनंद पाते  हैं.

मुझमें छेद  बनाकर

सांप के बिल बनाने

देते हैं साथ.

मैंने  तो केले  की तरह 

 झुकने  की शक्ति तो

 नहीं पायी.

मुझे गिराने -गिरवाने की शक्ति

आंधी -तूफानों में नहीं
.
वे विलापकर चले जाते हैं.

मुझे तो वायु की चिंता नहीं.

मेरी घनी जड़ें बाहर  प्रकट

प्रकाशमान है;

बरगद का पेड़

मैं हूँ अद्भुत.

जिन्दगी கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

   जिन्दगी 


हम नहीं कह सकते   कि
जिन्दगी    जैसा भी हो
बुरा है   अवश्य .

जिन्दगी  में जीने का कोई मार्ग नहीं.
 यों
जिन्दगी में  दुखी होने से क्या लाभ?

ग्रन्थ के बारे में तेरे विचार 
 प्रशंसा से भले ही भरे हो,
लेकिन  ग्रन्थ तो पढ़ा ही नहीं  है

यदि तुम दोस्ती निभाने वाले
दोस्त हो तो कोईभी
कसर देखना  या  कहना नहीं चाहिए.
ऐसी मित्रता मैं नहीं मानता ,
जो टुकड़े टुकड़े होकर बिखरती हो.

ईश्वर तो असंख्य ,
पर दर्शन तो नहीं मिले.
मैं हूँ बहुत थका -मांदा.
मुझे  तो  सच्चे दर्शन 
ईश्वर के कभी नहीं मिले.

सभी चेहरे  झूठे ,
मुखौटे  पहने हुए.
मुखौटे मात्र बचे हैं,
मनुष्य सब के सब 
 नौ-दो ग्यारह हो गए.

मेरे शब्द तुझपर चोट पहुंचाएगा.
मेरे शब्दों की  परवाह न करना.
साथ रहे मनुष्यों में ,
उनके दिलों में
गहरे प्रेम  न होने पर ,
ईश्वर से दया की प्रतीक्षा 
  कर सकते हैं. कैसे?

वातावरण  तो  सब के सब  अच्छे हैं,
सिर्फ  मैं दुखी हूँ.

रोशनी के आवरण में
एक विचित्र अन्धकार को ही
मैंने देखा है.
मेरे ऊँचे विचारों के लिए
स्वर्ग  इंतज़ार कर रहा है.
लेकिन
थकावट साथ आ रही है.
हम आसपास के घरों में  रहने पर भी
लम्बे काल के बाद ही बोलने लगे हैं.
वे ही  प्यार के पताका उठाकर 
खड़े रहते हैं
जिनको आवास नहीं ,वस्त्र नहीं..

   जिन्दगी  की रोशनी और परछाई  के
 वार्तालाप को ही
मैंने लिखा है.
लेकिन  सिर्फ उन यादों को ही
 समझ न सका.

Friday, December 5, 2014

नदी की आवाज़ கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

एक नदी का स्वर 

मैं  हूँ  एक  जल कथा,

कुदरत की लिखी.

मिट्टी  के मानसिक

स्वर  के

 द्रव-अंकित.

भूगोल के नवीन युगों को  पारकर

खड़े रहनेवाली   जग  की जीवन रेखा.


बाह्य -चलन  का  उज्जवल निधि

उठने तड़पने  की मेरी लहरें

ठण्ड ज्वालायें.

जब भूमि प्रसव देने

गर्भ -धारण करती है,

तब मैं जीवाणुओं के लिए

 माता  के   दूध  स्त्रोत .



जो कुछ मैं अपने प्रपंच भाषा में  बोला ,

आप न समझ पाए

इसलिए मैं उन्हें स्थानीय बोली में

कहने आयी हूँ.

जीव की नाड़ियों-सा चलने तड़पकर

वन-नदी -सी जीवन बिता थी.

मेरे पहरे के लिए दो किनारे बनवाये .

मुझे  घमंड  हुआ ,गौरव मिला है. पर


मुझे इत्र-तत्र बाँध  बनवाकर ,

कारावास में डाल दिया है.

मेरी  सारी  दृष्टियाँ ,निचली  सतह  की ओर

ऊपरी सतह से आतंकित मैं  बनती हूँ  जलप्रपात.

बहनेवाले मार्ग भर  हरा शय्या  फैलाता हूँ.

आपके    पैरों  को गले लगाने

पुष्पों   का पुरस्कार ढोकर आती हूँ.

आप तो  काँटों को ही ,मेरे  चेहरे पर फेंकते हैं.

मैं तो आती हूँ आपकी गन्दगी  मिटाने ,

आप तो अपने मल-मूत्र  मैलों से  गन्दगी कर चुके हैं.

मैं अपने  सहोदरों  से अपनी राम कहानी सुनाकर

रोती  हूँ तो मेरे आंसू  ही समुद्र में भरकर खारा बनता है.

 समुद्र संगम के संकल्प  में

समरस को मानती नहीं हूँ .

अपने लक्ष्यों को गिरवी रखकर

दमन प्रणाली के लिए नत्मस्तक होती नहीं.

विलम्ब हो सकता है, लेकिन छूट नहीं मिलेगी 

हमें  सूरज का ताप  जलाता है.

मेघों के पंख  बांधकर

ऊपर उड़कर  दुबारा वर्षा की बूंदों के रूप में

जन्म लेते हैं हम.

मैं अपने क्रोध दिखाने  समय-समय पर उमड़ पड़ती हूँ.

आप तो न्याय को मिटा देते हैं.

मैं तो जमीन के साथ जमीन बनकर

घुटने के बल  चलकर  आपसे  कुछ माँगे  रखती हूँ;

इस जल की मांगें ठुकरायेंगे तो

मुझे  एक दिन आग की ज्वाला बनकर सीधी खडी होनी पड़ेगी.

கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                    मैं  और  कविता 

    भले ही मैं सूर्य न   बन सकूँ,
      फिर  भी 

    सड़क  के किनारे  के  गली-  दीप तो 
      बन  सकता हूँ  न ?

  भले ही मैं  बादल नहीं  बन सकता ,
  फिर भी प्यास से तडपनेवाली 
  गवैया चिड़िया के जीभ को 
  भिगाने की बूँद के रूप में  
   बदल  सकता हूँ  न ?
 भले ही करोड़ों फूलों का नन्दवन
 तो नहीं  बन  सकता ,
 फिर  भी सड़क के किनारे 
  पैदल चलनेवाले  के लिए 
  दिल बहलानेवाले  एक फूल बन 
  सुगंध फैला सकता हूँ  न ?
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  दोपहर  का शपथ 
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मेरा नंगापन 
मुझे ही शर्माता है.
आप तो इसे क्यों 
एहसास  नहीं करते.
क्या आपकी 
आँखों की रोशनी मंद पद गयी ?

क्या इज्जत का भाव 
जम गया  है ? या 
चल बसा है.
पशु भी अपने पैरों के बीच 
अपने मर्म अंगों  के नंगेपनको 
छिपाकर  सुरक्षित  रखता  है.
पक्षी भी पंखों से अपने अंगों को 
छिपाकर रखता है.

मन को निकालकर रखे 
मनुष्य आप  को 
 मान -मर्यादा की मृत्यु होने से 
कपडे उतारते देख 
दुखी न  हो सकता.

मुझमें  नए 
पंखें उगेंगे .
जलनेवाली अग्नि को भी ,
जलाएँगे मेरी अग्नि पंखें.
मेरे  लिए निर्धारित सीमा   को भी 
छू न सकने वाले  रंग लेपित 

पैरो से गुप्त प्रदेश के दर्शन काफी है.
आगे ,खुले आसमान में 
आजादी की खोज में  उड़ेंगी 
मेरी नयी पंख.
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kab aap mujhe bolne denge 

कब मुझे आप बोलने देंगे?

  कई युगों से आपने किया है बलात्कार.
मुझे कितना अपमान सहना पड़ा?
 मेरी इज्जत लूटने नंगा किया  गया.
मुझे नहीं पता ,संख्याएँ  कितनी?
 जितनी बातें प्रकट हुई, उनसे अधिक  बातें अप्रकटित.

जितनी पीडाएं कह चुकी हूँ,
उतनी से अधिक जो मैं प्रकट नहीं कर सकती.

आप ने मुझे कब बोलने  दिया?
लम्बे समय से प्रतीक्षा में थी.
मेरे चोटों के दर्द,
मेरी अपने अनुभव,
मेरी    अपनी भाषा में 
मेरे अपने शब्दों में कब आपने कहने दिया?
दुपहर की गली में 
चित्रपट में ,छोटे पट याने  टी ,वि, में 
पत्र-पत्रिकाओं में 
कितनी बार  आपने  मन भंग किया था ?
हस्तिनापुर का द्रौपती  मैं ,
जहाँ जहाँ  मैं  जाती हूँ,वहाँ वहाँ उतने  ही अवतार.
आपकी duniya में 
आपकी आँखों  ने  
आपको  जानकारी नहीं दी?
हमारे संसार को 
हमारी आँखों से  ध्यान से देखिये.
गौरव खोकर 
कौरवों ने मेरी साड़ी खींचकर 
अपमानित किया था?
तब श्री कृष्ण ने 
मेरी  साड़ी लम्बी की थी.
यह कहानी तो सब के सब  जानते हैं.
मेरे  अंग के कण -कण  में,
मेरे  पुष्ट शरीर के अंगों के 
अपमान का व्यास  कैसे  विस्तार से लिखेगा?
स्त्रीत्व का जोश  वीर्य बना ,
उसकी वीरता शिथिल हुई 
व्यास कैसे लिखेगा?
आप ने  कोमल फूल ,
आकाश के चाँद ,
भूमि की नदी 
शहर शहर में एक देवी .
यों ही कितने नाम दिए थे?
जड़ वस्तुओं के नाम देकर ,
भूल गए कि मैं एक मनुषी हूँ.
सुन्दरता के तेज़   कहकर 
ताज  पहनाकर 
हमारी बुद्धि को मंद बना दिया.
सुन्दरता  के शिखर  के रूप में 
पालकर .मेरे चिंतन को
 तेजहीन बना दिया.
मुझे तो पुनीत बाताया  ,लेकिन 
मनुष्यता को भूल गए.
सब कुछ यहाँ नारी होने से 
खुद अपने को पहचान  न सका.
आपने मुझे  कब बोलने दिया?
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स्वागत २००२

सहस्रों   नये नये  ख़्वाब मिटाए ,
पिछले साल की यादें हटाकर 

निर्मल आकाश के किरणें बनकर आना.

अन्धकार में  फँसकर तड़पे 
हृदय  में  ताजे लौ  बनकर आना.
वैज्ञानिकता के अति विकास में ,
धुएँ और धूल से लेपित 
भू ग्रह  में ,प्राण द्रव लगाकर 
स्वच्छ कर देना.
प्रपंच ग्रहों में  मानव को 
पीड़ित रोगों को 
चंगाकर 
नए युग  सृजन करने आना.

aids கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

         एइड्स 
                                           
 फूल से कोमल
 खूबसूरती प्यार.
बलात्कार काम से मोहित 
भटकी इच्छा का परिणाम 
एइड्स है  खतरे की घंटी.

विदेशी बाह्याडम्बर 
कलाचार से  काटी  है 
जान लेवा रोग यह.
इसके निवारण की 
नहीं है कोई  दवा.
अंतिम घड़ी में मानव के 
विलाप की गूँज 
अगजग में उठती है ;

याद रखिये ! भारतीयों!
भारतीय ही इसकी दवा का 
पता लागायेंगे.
मानुष के मृत्यु -भय दूर करेंगे.
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 इलाज के क्षेत्र में  महत्वपूर्ण  साधना.

गुलामी के अन्धाकर में  था भारत.

अज्ञान  रूपी अन्धकार में भी डूबा रहा 

भारत देश.

आजाद  होकर आँखे  खुली  तो  देखा 
कई क्षेत्रों में सुधार कार्य अभी करना है.

ढेर कूड़ों को सफाई करके 
आवश्यक काम शुरू हुए.

अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण 

छिपकर रखे रोग अनेक.

बली हुए प्राण असंख्य.

सूची  बड़ी.

संतान -चाँद की कल्पना में 
रात -दिन  तीन सौ  दिन ,
पेट में शूली -सा   पेट में ढोकर ,
प्रसव के अग्नि कुण्ड में 
बची माताएं ,
वंश वृद्धि -खानदान वृद्धि के नाम 
संतानोत्पत्ति में लगी 
अशिक्षित जनाताएँ .
यह तो प्राचीन भारत.

आज दो के बाद ,
भगवान ही देने पर भी 
गर्भधारण में कोई नहीं तैयार.
ये हैं नए भारत की माताएँ.
जन्म के समय बदलने ,
भगवान से निश्चित  समय बदलने 
शल्य चिकित्सालय में समय सारणी.
डाक्टर बदलकर लिखें तो 
महेश्वर से भी बदल नहीं सकता.

चिकित्सा क्षेत्र के अपूर्व-साधना,
आज 
युवा मृत्यु कम हो गयी.
बुढापे के बाद होनेवाली विपत्ति बनी.

कल के भारत के बच्चे 
इतनी क्षमता पाएँगे
अपने अद्भुत चिकित्सा में 
बुढापे  की मृत्यु को भी स्थगित रखेंगे.
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कातल एनाप्पट ट तु.

प्यार    का  मतलब 

खुद  खिलकर ,
खुद  खुशबु  के  दैविक गुलाब.!

ह्रदय की गहराई में 
अंकुरित आँखों के दवरा झाँकने वाला.

प्रतीक्षित आँखे मात्र पता लगाकर 
गले लगाती हैं.
विपक्षी के कोने में जलनेवाली आँखें ,
प्राण वायु के फूंकने से 
जलकर धधकता है.
भूखी आँखें  परस्पर ,
परोस लेती हैं.
स्वीकृत दिलों के मात्र 
साध्य है यह संधि .
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आनेवाले युग में 

गायेंगे
 इंसानियत  जिंदाबाद के 
मधुर गीत.
मनुष्यता  की रक्षा के
 पुण्य काम  में 
दिल लगायेंगे.
प्राकृतिक शक्ति से बढ़कर ,
कोई नहीं जगत में.
उसको चालू करने  की मनुष्य -शक्ति 
आगे के युग में.

समुद्र ,आकाश ,वायु भी 
मानेंगे आज्ञा मनष्य-शक्ति की.
मूढ़ता की प्राचीन कथाएं ,
धरती में कल होंगे पराजित.
आगे मनुष्य ह्रदय को 
पीड़ित करने के गंदे
 विचार मिटायेंगे.
रंग-बिरंगे फूलों के हार के रूप में 
मनुष्य  कुल  को बदलेंगे.
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इप्पोतु
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           अब 
           ******
मृत्यु शय्या में लेटकर 

आँखें मूँदने के बाद,

पुष्पाहार.पुष्प-गोलाकार,

लेनेवाले हैं  क्या?
लहरों के बीच की चींटी की तरह 
हरा पत्ता नहीं चाहता  बचने ;
सूखा  पत्ता  पर्याप्त् है.

मेरे शव  के  जम  जाने के बाद ,
आँसू बहाने आयेंगे क्या?
मेरे चारों ओर लगाए पर्दा  हटाकर,
ज़रा -सा मुस्कुराइए.
मेरी श्रद्धांजली  की सभा में 
लम्बे भाषण को ज़रा बंद कार दें.
चलते समय बीतने के पहले 
एक अच्छे शब्द बोलेंगे नहीं?

शान्ति के गृह में गहरी 
नींद सोने के बाद 
हज़ारों बार आकर 
रोने से स्मरण करने से 
फायदा क्या होगा?

मेरे ह्रदय जमने के पहले 
क्या प्यार नहीं कर सकते.
मृत्यु छिपकर आती है,
जिन्दगी प्रत्यक्ष होती है;
आँखों से देखिये;
कानों से सुनिए.
पलकें जहां हैं वही तड़पेगा.
आँखें जाएँगी बहुत दूर  छूकर  लौटेंगी.