वटवृक्ष
जैसे अणु में जो ऊर्जा है
,
वैसे ही छोटे बीज में दबे रहे
विश्वरूप हूँ मैं.
.वटवृक्ष हूँ मैं, एक
अद्भुत वृक्ष हूँ मैं.
शहीदों के
खून के कीचड में
उगकर
युगों के प्यासों के
आंसुओं की बूंदों से
बड़ा हुआ वृक्ष मैं.
मेरी शाखाएं
विंध्य हिमाचल की चोटी से
कुमारी अंतरीप के महासागर तक
लम्बी बड़ी हुई हैं .
मेरा मन अपरिवर्तित
हरियाली -सा ,
दूध सा श्वेत ,
सूखापन सहकर
बडा हुआ वृक्ष हूँ मैं.
मेरे विशाल छाया के लिए
फल के स्वाद के लिए
प्रेम वश आये पक्षियों का
आश्रय स्थल हूँ मैं.
रंगबिरंगे
भिन्न भिन्न
पक्षी वर्गों की भाषाएँ तो
अलग.
लेकिन गाने के गीतों के
विचार तो एक.
\मैं तो परिश्रमी
पक्षियों को
प्रोत्साहित करने वाला
तम्बू.
उनके हर उत्सव
मेरी शाखाओं में
रंग बने .
सत्य मेरा नित्य वेद.
प्रेम और शान्ति स्थिर
अपरिवर्तित पाठ.
इसीलिये
बाजों और उल्लुओं को
मेरे स्वाभिमान
कोंपल रोक देती हैं .
केवल घोंसले बनाने के लिए
ही नहीं ,
बैठने के लिए भी
मेरी शाखाएँ जो
सैद्धांतिक हैं
स्थान नहीं देती.
शुल्क अदा करने पर भी
अनुमति नहीं,
इसी में दृढ़ हूँ मैं.
समय के भंवर में
मेरे दुःख और जाँच तो
वर्णनातीत है.
इतिहास में
मैं पेड़ हूँ
साधक.
चंद चिड़ियाएँ
कहीं से आकर
मेरे फल को चखकर
मेरे ऊपर ही छाछ करते हैं.
चंद यहाँ फल चखकर
कहीं जाकर बीज डालते हैं.
चंद पक्षी
चिडिया -शावकों को
पंखों के उगने के पहले
उनकी बोली में
भूलें निकालकर
उनकी बढ़ती
रोकने में
लगे हुए हैं.
मुझमें केवल
कठफोड़वा को
माफ करने का मन नहीं है.
वे मेरी पोशाकें उतारकर
अपमानित करने में ही तो
आनंद पाते हैं.
मुझमें छेद बनाकर
सांप के बिल बनाने
देते हैं साथ.
मेरे बीज तो कडुवे है तो भी
मेरे फल हैं मीठे.
मेरे सर से जड़ तक कई
हज़ारों अवस्थाएं.
मेरी भूमि में कहीं इधर ,
कही उधर के बारूद के
आंसू के रिसाव पर
क्या आपने ध्यान दिया है.?
मैं तो एक गरीब पेड़
गानेवाली चिड़ियाओं को मात्र
खिलाता हूँ फल..
मुझमें केवल
कठफोड़वा को
माफ करने का मन नहीं है.
वे मेरी पोशाकें उतारकर
अपमानित करने में ही तो
आनंद पाते हैं.
मुझमें छेद बनाकर
सांप के बिल बनाने
देते हैं साथ.
मैंने तो केले की तरह
झुकने की शक्ति तो
नहीं पायी.
मुझे गिराने -गिरवाने की शक्ति
आंधी -तूफानों में नहीं
.
वे विलापकर चले जाते हैं.
मुझे तो वायु की चिंता नहीं.
मेरी घनी जड़ें बाहर प्रकट
प्रकाशमान है;
बरगद का पेड़
मैं हूँ अद्भुत.
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