Friday, December 5, 2014

प्रेम के दास.கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

    तरंगों की आवाज़  केवल मछलियों को सुनाई पड़ेगी.

तेरे ह्रदय की  आवाज़  मुझे ही सुनाई पड़ेगी.




वसंत  के विलाप 

तूने  सज्जित कपडे पहने थे ,
आज  नंगे बदन खडी  है.

तू तो अक्षय पात्र बन 
खुलकर दान  देती थी.
आज  हाथ में   
भिक्षा पात्र  लेकर क्यों  खडी है?
स्वाभिमान की रक्षा में 
अंगारे बनी तू 
आज क्यों ठंडी हो गयी.
दिशाओं के निर्णायक 
सूरज थी तू ,
आज तो दिशाहीन बन गयी.
सिंहासन में चढी तू 
आज टूटी कुर्सियों के नीचे 
पडी है.
शाश्वर रंग  और खुशबू बन 
फूल माला के धागे को भी 
सुगन्धित करनेवाली तू 
आज बदबू होकर पडी है.
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समुद्र के तप के फल देने 
किनारे तोड़कर बही नदी 
आज कीचड बन गयी है.
पूर्णिमा रात में किलकारियां भरनेवाली 
देव गोपुर ,
आज कूड़े में पडी है  ,
मुर्गा-मुर्गी अपने पैरों से 
तुझे भंग कर रहे हैं.
सपनों में गंभीर राजसिंह 
जैसी थी; 
आज गली के कुत्ते  तुझे 
भगा रहे हैं.,

दार्शनिक तेरे गान करते थे.
तू अद्भुत ज्ञान के स्त्रोत थी .
आज तो भद्दी बन गयी है.
कोयलों को शरण देनेवाली तू 

आज उल्लुओं के खोखले मेंबंद पडी है.

हमारे लक्ष्य के बहार 
आज दुखी बन गयी है.


       प्यार ---भगवान 


हे प्यार!
तू है या नहीं 
जानने हम तेरी तलाश में 
परिक्रमा करते हैं.
मन पिघलता है.
परवश हो जाते हैं .
मन तड़पता है.
जांच -पड़ताल के पात्र बनते हैं.
हमारे निवेदन  का 
जवाब तो जल्दी नहीं मिलता.
बिना रात भर सोये 
रखते हैं व्रत.
प्रतीक्षा में तड़पते हैं ,
बकते हैं ,
सर टकराते हैं,  सर मारते  हैं 

कभी -कभी वर देने से 
विश्वासी धोखा नहीं खाते 
ऐसे लोकोक्ति से 
तेरे संनाधि में सब बराबर 
भेद-भाव नहीं यों 
आशा कर खड़े हैं 
अतः प्यार है एक भगवान.

    एट्टैय़ापुरत्तु  ज्वालामुखी 

घाव को मरहम  लेपकर 
स्वर्ण शाल ओढ़े 
कवियों केबीच 
अपनी   संकेत उंगली से 
अग्नी चोट की थी तू ने .
तेरे मन के गवाह 
अग्नी की चिंगारी बनकर जले तो 
तेरे कारण अन्यायों पर खतरा पड़ा.
वादविवाद मंडप पर चर्चाएँ 
चल रही है कि तू ने तिलक लगाया कि नहीं.

तू ने आग को ही तो माथे पर रखा 
वह कुमकुम सा ठंडा पद गया.

स्वर्ग का चादर ओढ़कर 
धर्म के पिशाच धरती को नरक 
बना रहा था.
धर्म के भूत भगाने 
पास्परस सा तू आया.
तेरी कानी में जो दिमाग था ,
वह हमारेसर के दिमाग में नहीं,;
जातीय कट्टरता के नर-पशुओं को देखकर ,
तेरे सूरज समान तापवाले  विशाल  नेत्रोंसे 
आग उगलने लगे.
तू स्वर्ग सिधारकर पचहत्तर साल हो गए .
जानते हो ,हम तेरे मूगे के दिन में 
कौन -सा  उपहार देनेवाले हैं?

दलित बस्तियों में  जले 
राख की ढेरी .
जातियों के मिटाने का सम्मान.

तूने कहा 
अबला नारी की बेइज्जती 
की मूर्खता करेंगे दूर.

हम तो वीणाओं को चूल्हे रखकर 
जलाते हैं.
तू ने कहा -जिन  लोगोंने भारत देवी का अपमान किया 
उनको जलाओ.

हम तो अपनी उँगलियों में 

कालादाग लगाकर 
बड़े काले लोगों की तैयारी करते हैं.
एकाधिपत्य के चेहरों पर 
आग उगाले थे भारती. 
एत्तैयापुर के ज्वालामुखी !
तेरी नम्रता से मैं चकित हूँ.
तूने अपना परिचय 
अग्नी के बच्चे कहकर दिया.
तेरी ऊंचाई तक कोई 
तमिल आदमी पहुँच नहीं सकता 
इसीलिये अग्नी के बच्चे बनकर 
चुनौती दी थी.
वह अग्नी बच्चे के कण बनने में लगे हैं.
तू ने तो साहित्य क्रान्ति के लिए 
मुफ्त में अग्नी  डी थी.
उनसे हम शराब के चूल्हे जलाते हैं.
तू तो आग.
तेरे सामने कोई भी खड़ा नहीं हो सकता.
हमारे आज के लेखक लाल मोहल्ले के अश्लीली 
कवितायें लिखते हैं.
तू ने  तो अग्नी अम्ल को ही 
कलम बनाकर लिखते थे.
तू अवतार पुरुष है..

किसी भी नज़र से  देखने पर भी 
तू आग के समान सीधे खड़ा है.
हमारे     एट्टैय़ापुरत्तु  ज्वालामुखी .


                                   प्रेम  के दास.
          
  केवट( गुह )--मेहनती वर्ग का प्रतिबिम्ब ;

घृणित  वर्ग के नए प्रतिनिधि.

विधि के कर उसको दूर रखा .
पर वह है कथा-पात्र 
नदी के जल में भीगा.

नीच कुल में जन्मा वह ,
रवि कुल का सेतु बना.
बिजली -सा  चमका.

चमेली के खेत में 
उदित मोती वह.

चन्दन के वन में 
घुटने के बल बहे 
सुखद हवा.

कुल के कारण हटा रखा पर 
वह है हीरा जंगल का  काला.

तम को दिया अपना काला रंग.
वह तो जंगल का गुलाब.

राम के पाद -स्पर्श से वंचित 

पवित्र प्रेम का पात्र  शिखर.

वह तो पढ़ा लिखा  विचित्र 
नहीं गया पाठशाला.
गहरी गंगा की में 
उसने पढ़ा शान्ति-पाठ.
आकाश ने दिया ज्ञान .
मछलियों से संगीत सीखा.
चक्रवर्ती को अपने प्यार से जीता.

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