प्रिय दोस्त,
नमस्ते. मैंने जो तमिल की कवितायें हिन्ढी में लिखी है ,भेज रहा हूँ .कृपया उसमें गल्तियाँ या
अन्य कोई गल्तियाँ हो तो सही करके अपने विचार भी लिखना.
कोई हिंदी प्रांत वाले तमिल सीखना चाहें तो SBM SCHOOL फेस बुक में देखिये.और दोस्तों को भी बताइए.
कविता
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१. प्रात:काल
क्या यह सुगन्धित हवा है ,
जो श्वास को करती है स्वच्छ .
क्या यह तम दबानेवाले
पंकज जल में भीगे पाद हो.
क्या यह क्षितिज में उगे ,
तडके के द्वार पर .
संगृहीत खुशबू है ?
सोर्योदय से ज्यादा
मैं तुझसे करता अति प्यार.
ज़रा सा समय ,
लेकिन मेरेलिए
रोमांचित समय.
बिस्तर के कब्र में
अस्थायी नींद से
हर दिन जीवित होते समय
तू ही अपने मृदु होंट से
चूमकर जगाते हो . ..हे प्रातःकाल.
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२. पोंगल -तमिल त्यौहार
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नए जीवन में उमड़ पड़े हर्ष
यह तो त्यौहार अति मधुर.
इस पर्व पर बधाई देने
करों मैं कविता लेकर आया हूँ.
कर मिलाता हूँ.
यह तो पर्व पोंगल का ;
अर्थात हर्ष उमड़ने का.
परिश्रमियों का इच्छित त्यौहार.
फसलों में हरियाली
अपने धान्यो की दृष्टी फैलाकर
दिवाकर को धन्यवाद देने
मेहनतियों का सांस्कृत इच्छित त्यौहार.
यह त्यौहार है किसानों का ,
जोत-जोतकर भूमि को,
परिश्रम के फ्ल्स्वूप
रंग-बिरंगे फूलों से भरा दिया.
रंगीले त्यौहार.
हल का महत्त्व तो बैल के कारण
अतः बैलों की पूजा का त्यौहार.
पालतू जानवरों के लिए
भोज का त्यौहार.
भूख मिटाने पाक-क्रिया में लगी ,
भोजन लाई महिलाओं का त्यौहार.
दिल में पनपने वाले प्यार ,
खेत में उगनेवाले फसल
दोनों की रक्षा में लगी
कन्याओं का त्यौहार ;
यही एक त्यौहार
मेहनती ही इसकी उत्सव मूर्तियाँ.
ये तो आँखों देखी गवाहें .
दिल में जो यादें हैं
उनकी तो कुछ करेंगे
निदर्शन सत्य बातें.
इन गन्नों के मीठापन के लिए
रासायनिक नमकों के साथ ,
पसीने के नमक भी तो
डालने पड़ते हैं.
मिट्टी खोदते समय
कुडताल की चोट तो
पैरों पर भी पड़ती हैं.
जल सहित खून की धारा भी तो
मिलकर बहती है.
आज इस संभव को भी सोचेंगे दिल में.
परिश्रमी लोगोंके कौशल के
पुरस्कार स्वरुप
भूमि माता फूल को
प्रसवित करतीहै.
सूर्य ताप की उपेक्षा करके
पसीने में तरकर
किसान क्यों कठोर मेहनत करता है?
मन को आनंदप्रद इस हर्षोल्लास पर
आप से एक निवेदन करता हूँ ---
मेहनती किसान है साथी हमारे.
उनको मुफ्त में कुछ देने की
नहीं ज़रुरत.
केवल आप उसको उचित इज्ज़त दें .
तभी भू -देवी खुश होगी.
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3.
स्वतंत्रता दिवस -
स्वर्ण जयंती -वीरों को प्रणाम
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स्वतंत्रता देवी के गर्भ गृह में
आराध्य दीप के रूप
जन्मे भारतीयों.!
पूरब के अन्धकार को
मिटाने भगाने
लाठी लेकर भारत भर घूमे
महात्माओं,!
एकाधिपत्य के शव-संदूक के लिए
अपनी हड्डियों से कील बनाए
पौरुष सिंहों !
जब जब स्वतंत्रता के दीप
सर्दी -गर्मी में बुझने के थे
तब तब अपनी रक्त धारा बहाकर
स्वतंत्र दीपों को प्रज्वलित कर
प्राण दिए शहीदों!
स्वतंत्र की मान मर्यादा
उड़ते समय
जहाज चलाकर
मान की रक्षा को किनारे लगाये
स्वाभिमानी महानिभावों.!
राष्ट्रीय झंडा फहराने
अपने को फांसी पर चढ़ाए
फांसे के रस्से को चूमे
वीर त्यागियों!
अपनी वीरता भरी कविताओं से
अग्नी कविताओं को उगले ,
एटटायपुर के {भारतियार }
ज्वालामुखी कवितायें !
स्वतंत्रता के स्वर्णिम
मुलायम लगाकर ,
गुलाम भारत में आहुति हुए
देश भक्तों!
आजादी के श्वास दिलाने
सांस घुटकर
घोर जेल में प्राण दिए
अनजान शहीदों!
आप के वीर यज्ञों के कारण
मिले विजय फलों के
स्वाद हम ले रहे हैं.!
उन दिनों में सुरक्षा की माँग में लगे
भारत में आज
दूसरों की मदद करने
की क्षमता है,
यह देख, भौंहे चढाते हैं लोग.
आज हमारी विद्वत्ता देख
जिनतक हम पहुँच नहीं सकते ,
वे खुद आ रहे हैं .
हमारे स्पर्श के लिए तड़प रहे हैं.
हमारे खाली हाथ को
विजयी हाथ बनाए
स्वतंत्रता संग्राम के वीर त्यागियों को
वीर सलाम !वीर प्रणाम !
तड़के हुए ,सुबह होने देर नहीं.
सुन्दर कवितायेँ! साभार! आदरणीय सेतुरमन जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
संजय कुमार गार्गजी , धन्यवाद.
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