Tuesday, December 9, 2014

क्रान्तियाँ .उच्च विचार.

भारत में आजादी के ६७ साल के बाद भी ,

प्रांतीयता के मोह नहीं घटे.

एक ओर राष्ट्रीयता ,देश भक्ति 

तो 

दूसरी ओर इधर -उधर  प्रांतीयता के

विषैले पौधे पल्लवित करने में 

स्वार्थता   बढ़ रही हैं ,

नदियों को लेकर ,

शहरों को  लेकर ,

भाषा को लेकर ,

इन सब से बड़ी 

 अजब  की   बात 

तमिलनाडु में 

और  एकाध देश -परदेश में 

ईश्वर है  हमारा का नारा लगाते हैं,
तमिलनाडु में मुरुगन ,
दक्षिण के शिव ,
उत्तर के राम -कृष्ण 
 इसी नफरत में एकाध 
रावण के भक्त ,
विभीषण से नफरत ,
वहाँ राम लीला हो तो 
यहाँ  रावण लीला.
 इन सब मिटाकर 
देश भक्ति  राष्ट्रीय धारा बहाने की 
क्रांति करनी हैं.
स्वच्छ भारत तो 
सफई केवल कूड़ों की नहीं ,
दिल की भी चाहिए.

संकीर्ण विचारों के 
प्रांतीय दलों को अंकुर में 
ही उखाड़ फ़ेंक  अत्यंत है आवश्यक.

देश को स्वार्थ वश ,

टुकड़े की भावना -जोश 

भटकाने में लगायेंगे तो 
 आजादी के पहले के भारत ,
सोचिये  भारतीयों!
पटेल की ऊंची मूर्ति से बढ़कर आवश्यक है 

उच्च विचार.



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