Tuesday, December 23, 2014

सोचिये!भारतीयों!

 
भारत तो महान ,
शांतिप्रिय  पर ,
विदेशियों के रंग -रूप,
उनके सुगन्धित मामूली वस्तुओं से
मोहित भारतीय देश द्रोही,
चंदृप्यों के लिए ,
भाई -भाइयों में दुश्मनी ,
महाभारत - सा
भारतीय एकता निगालने है तैयार.
हमें न चाहिए सोना -चाँदी,

न चाहिए बाह्याडम्बर सुविधायें ,
न चाहिए विदेशी आगमन
 वह जैसा भी रूप में हो ,
न चाहिए विदेशी पूँजी ,
न चाहिए विदेशी माल,
न चाहिए विदेशी माल;
भारतीय उद्योग धंधों ,
भारतीय हस्त -कौशल ,
नाच -रंग ,गान -कविता
आदि को दें प्रधान.

"मेक इन इण्डिया"
 भारतीय हथ-करघा ,
भारतीय कृषि ,
भारत में हैं
सभी प्रकार की सम्पन्नता.
हरे -भरे खेत ,
जीव-नदियाँ
स्वार्थ मनमुटाव,जलन ,ईर्ष्या ,
लोभ ,लालच ,विदेशियों की भेद नीति ,
कर दिए  भारत का विनाश.
अब तो ज्ञान का हो गया विकास;
सोचिये!भारतीयों!चाहिए भारतियों में एकता.
त्याग,प्रेम, अनुशासन.






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