जिन्दगी
हम नहीं कह सकते कि
जिन्दगी जैसा भी हो
बुरा है अवश्य .
जिन्दगी में जीने का कोई मार्ग नहीं.
यों
जिन्दगी में दुखी होने से क्या लाभ?
ग्रन्थ के बारे में तेरे विचार
प्रशंसा से भले ही भरे हो,
लेकिन ग्रन्थ तो पढ़ा ही नहीं है
यदि तुम दोस्ती निभाने वाले
दोस्त हो तो कोईभी
कसर देखना या कहना नहीं चाहिए.
ऐसी मित्रता मैं नहीं मानता ,
जो टुकड़े टुकड़े होकर बिखरती हो.
ईश्वर तो असंख्य ,
पर दर्शन तो नहीं मिले.
मैं हूँ बहुत थका -मांदा.
मुझे तो सच्चे दर्शन
ईश्वर के कभी नहीं मिले.
सभी चेहरे झूठे ,
मुखौटे पहने हुए.
मुखौटे मात्र बचे हैं,
मनुष्य सब के सब
नौ-दो ग्यारह हो गए.
मेरे शब्द तुझपर चोट पहुंचाएगा.
मेरे शब्दों की परवाह न करना.
साथ रहे मनुष्यों में ,
उनके दिलों में
गहरे प्रेम न होने पर ,
ईश्वर से दया की प्रतीक्षा
कर सकते हैं. कैसे?
वातावरण तो सब के सब अच्छे हैं,
सिर्फ मैं दुखी हूँ.
रोशनी के आवरण में
एक विचित्र अन्धकार को ही
मैंने देखा है.
मेरे ऊँचे विचारों के लिए
स्वर्ग इंतज़ार कर रहा है.
लेकिन
थकावट साथ आ रही है.
हम आसपास के घरों में रहने पर भी
लम्बे काल के बाद ही बोलने लगे हैं.
वे ही प्यार के पताका उठाकर
खड़े रहते हैं
जिनको आवास नहीं ,वस्त्र नहीं..
जिन्दगी की रोशनी और परछाई के
वार्तालाप को ही
मैंने लिखा है.
लेकिन सिर्फ उन यादों को ही
समझ न सका.
No comments:
Post a Comment