Monday, December 8, 2014

चाहिए महा तप.




कहा था 

 नारी के रूप में

जन्म लेने ,

महा तपस्या करनी है.

जग में दशा

 हमारी 

 क्या कहने लायक है ?


तेरे विचार में  यार!

 करो, महसूस

 हमारी हालत  की .

तेरे गृह  मुझे आना है ,

लक्ष्मी देवी- सी.

तेरे चरण में

 पतिव्रता के 

 पवित्र कर्पूर 

 बनना है.

केवल तेरे नेत्रों केलिए

  मैं  बनूँ  महालक्ष्मी.

पर-पुरुषों के लिए 

मैं बनूँ ज्वालामुखी .

माँ -सा मैं खिलाऊँ

 भोजन.

खाऊँ   मैं  तेरे

 जूठे का भोजन .


मेहमान 

तेरे आये तो 

मेरे मुख हमेशा

ताज़े फूल- सा

 खिले रहे.

तेरे दुलार के समय

 मैं बन जाऊँ  

 बच्ची.

तेरे खेलों का

 मैं बन जाऊँ

 गुडिया.

जब जब

 तू बुलाता ,

मैं लेटूँ,

तेरे बिस्तर पर 

मैं बनूँ

रंडी.


बनूँ 

तेरी 

आशिकाओं की 

 बड़ी बहन.

बनूँ 

मंत्री ,

जब तेरी बुद्धि 

 मंद पड़ जाती
.
तेरे पीट

 रगड़ने 
,
मेरे  

 नाखून
 बने 

 कुदाल.


पैर दबाने

  तेरे ,

मेरे फूल सी

 उंगलियाँ

 बने

 यंत्र.


तू रोगी बने 

तो

 मेरे कमल

 हाथ 

बने

 शौचालय.


तेरे शोक

ढोने

 बनूँ.

मैं.

  भार वाहक.


तेरे मन की 

 चाव समझूँ,

उसे पूरी करने 

 बनूँ  

 दासी.

तू लात

 मारें तो

 मैं 

बन जाऊँ 
,
पैर चाटने की 

कुतिया.



तेरे  लात

 मार  या फाड़

 सहने 

मैं बनूँ ,

सहनशील

 भूमि.


तेरे लिए

 न जाने 

क्या-क्या 

रूप लूँ.

यदि  तेरी 

मृत्यु हो  तो

जलना है 

मुझे भी.

हाँ !महिला के जन्म लेने ,
,
   चाहिए

 महा   तप. 

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