Monday, December 8, 2014

सूखकर सूखी कलियाँ .कवि तमिळ एळिल वेंदन

हथेली में छिपी  भविष्य भूलकर ,


भिक्षा पात्र उठाकर खडी  हैं 


नन्हीं नन्हीं उंगलियाँ.


परिपक्व के उम्र होते ही ,

द्वार तक जाने को निरोध,

रूप ढकने की पोशाक बताकर,

नारी के बड़प्पन बोलनेवाले 

 नाते -रिश्ते

मालिकों के घर 

मजदूरिन के रूप भेजेंगे.

दरिद्रता के  क्रूर  करों के

 दलित ,

सुविधाओं  के बरामदों  पर

वे  हैं   किशोर  पीड़ित .

न्याय के गले

 घोंटने  की वज़ह ,

गली में पडी

 ब्रह्मा की संतानें.

महानगर की सडकों के चौराहों पर,

चौराहों की संधियों में

खुले  खतरों को पारकर,

चालाकों   द्वार 

 भीख माँगनेवाले

नन्हीं -नन्हीं उंगलियाँ.

न तो यही नदी का कसर

न तो विधि का कसर

जिन्होंने  जन्म दिया ,

उनकी निधी की  कमी ,

इनसे   बराबर होती हैं

ये अत्याचार.

अक्षर ज्ञान 

अर्जित  करने की आयु में ,

ये भविष्य के ज्ञाता , 

जूठे बर्तन

 साफ करने की दुर्दशा,

तडके पुस्तकें पढने के बजाय ,

सबेरे होने के पहले

कार्यशाला की ओर

चलने वाले पददलित .

खेल प्रतियोगिता के

 विजयी खिलाड़ी बन

विजय पताका ले उठानेवाले कर,

झुककर कूड़े उठाने में लगे हैं.


रंगबिरंगे चित्र खींचनेवाले कर ,

ऊंचे विचारों के चित्र खींचने के कर

जूतों की चमक करने में लगे हैं.

फूलों के बोझ भी

 जो न सह सकी ,

कोमल हंस ,

बोझा ढोने के गधा बने  हैं.

भूतल पर 

 ताज़े सुगंध  बन ,

खिले फूल से वे ,

बारूद के कारखाने में

चन्दन के पेड़ जैसे 

जल रही है.

दियासलाई की लकड़ी

रिसकर प्रकाश देने के पीछे 

 यअन्धकार में

टूटे पंखों के पक्षी जैसे ,

गम में चीख रहे हैं.

दियासलाई की लकड़ी बनने ,

ये अन्धकार में

टूटे पंखों के पक्षी जैसे 

,गम में चीख रहे हैं.

 सूखकर  सूखी कलियाँ .


  रंगीले  वसंत सपनों लेकर

  घूमनेवाली  के नयनों  में  


धीमी सी


   चमक  

 उसे भी तोड़नेवाले कौन?
  
  मालूम नहीं.


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