Friday, December 5, 2014

vruddhaavastha
वृद्धावस्था 
अवस्थाएँ   चार  तो 
बालावस्था  में अवलंबित ,
जवानी में वीर धीर  गंभीर 
जवानी का जोश.
प्रौढावस्था   एक तरह का ढीलापन 
वृद्धावस्था तो बैठकर सोचना 
कैसा था गुजारा हुआ ज़माना?
हम ने क्या सोचा ?
हमने क्या किया?
हमने कितना कमाया ?
कितना भोगा ?कितना त्यागा?
अच्छे  कितने ?बुरे कितने ?
कितने  को लाभ पहुँचा?
कितने को बुरा/
कितना प्यार मिला? कितना नफरत ?
कितना खोया?कितना पाया?
कितनी सम्पत्ती जोड़ी ?
कितनी  छोडी?
कितनों को छेड़ा?
कितनों  को छोड़ा?
इतने हिसाब -किताब ?
उठने का बल नहीं ?
घुटने के बल सरकना भी दुर्बल.
विचारों की तरंगें तो उठती रहती है.
जब तक साँस,तब तक आशा..
झुर्रियों का चेहरा ,
हाथों का कम्पन 
पर  विचारोंके ज्वार -भाटा
यही है विरुद्धावस्था   वृद्धावस्था  में.

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