Friday, December 5, 2014

जीवन मधुर கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

स्वतंत्रता देवी के गर्भ गृह  में 
आराध्य दीप के रूप 
जन्मे  भारतीयों.!
पूरब के अन्धकार को 
मिटाने भगाने 
लाठी लेकर भारत भर घूमे 
महात्माओं,!
एकाधिपत्य के शव-संदूक के लिए 
अपनी हड्डियों से कील बनाए 
पौरुष सिंहों !
जब जब स्वतंत्रता के दीप 
सर्दी -गर्मी में बुझने के थे 
तब तब अपनी रक्त धारा बहाकर 
स्वतरदीओ को प्रज्वलित कर 
प्राण दिए शहीदों!
स्वतंत्र की मान  मर्यादा 
उड़ते समय 
जहाज चलाकर
मान की रक्षा  को किनारे लगाये 
स्वाभिमानी महानिभावों.!
राष्ट्रीय झंडा फहराने 
अपने को फांसी पर चढ़ाए 
फांसे के रस्से को चूमे 
वीर  त्यागियों!

अपनी वीरता भरी कविताओं से 
अग्नी कविताओं को थूके ,
एटटायपुर  के   {भारतियार  }
ज्वालामुखी कविताओं !

स्वतंत्रता  के स्वर्णिम 
मुलायम लगाकर ,
गुलाम भारत में आहुति हुए 
देश भक्तों!

आजादी केश्वास  दिलाने 
सांस घुटकर  
घोर जेल में  प्राण दिए 
अनजान शहीदों!

आप के  वीर यज्ञों  के कारण 
मिले विजय फलों के 
स्वाद हम ले रहे हैं.!
उन दिनों में सुरक्षा की माँग में लगे 
भारत  में आज 
 दूसरों की मदद करने 
की  क्षमता   है,
यह देख भौंहे चढाते हैं लोग.

आज हमारी विद्वत्ता देख 
जिनतक हम पहुँच नहीं सकते ,
वे  खुद  आ  रहे हैं .
हमारे स्पर्श के लिए तड़प रहे हैं.

हमारे खाली हाथ को 
विजयी हाथ बनाए 
स्वतंत्रता संग्राम के वीर त्यागियों को 
वीर  सलाम !वीर प्रणाम !
तड़के हुए ,सुबह होने देर नहीं.
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                                      जीवन मधुर.
आकाश सुन्दर! मिट्टी सुन्दर!
जीना चाहें तो जिन्दगी सुन्दर.

पंखे होकर  न  उड़ें तो 
उगे पंख भी गिर सकते हैं.
रिश्ता भी न निभाने पर 
दिल भी सूख सकता  है.
होंट  होकर भी न मुस्कुराए तो 
मुस्कराहट भी भूल सकते हैं.

सुन्दरता  देखकर  भी   रसिकता न होने पर 
भावना भी सूख सकती है.
हाथ होकर भी न मेहनत करें तो 
विद्वत उंगलियाँ प्रश्न कर सकती हैं.
पैर होकर भी चलने का अभ्यास न हो तो 
रगड़कर  चलने का अवसर आयेगा.
बिना जल के पेड़ उगे तो 
जड़ों को काम से निवृत्ति होगी.
बिना संग्राम के मनुष्य जिए तो 
भूमि में गिरे छोटी बिंदु ही बन सकता है.

आँखें होकर भी न देखा करें तो 
तेज भी तुमसे हट  सकता है.
भाषाएँ हैं ;फिर भी न बोलें  तो 
मौन ही भाषा बन सजता है.

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