Friday, December 5, 2014

तमिल कविताएँகவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                                        

                                                                    तीली 

    आप  तो धूल में ही तो 
    फेंकते  हैं,
   अंकुरित होकर अपना 
     तेज़   मुख दिखाऊंगा.

  सद्माएं  आकर मुझमे छेद बनाकर जाएँ तो 
मुरली  का नया रूप लूँगा.
भट्टी में डालेंगे तो 
लोहे के रूप में 
टिकाऊ  बनकर आऊँगा.
जितना चाहे उतनी मिट्टी डालिए 
मेरी जड़ों को परिश्रम का समय  आया..
मैं तो सूरज नहीं बन सकता.
कम से कम तीलीतो बन सकता हूँ न ?
******************************************
            सुम्मावंतता  स्वतंत्र 

        क्या आजादी मुफ्त में मिली?

      क्या  आजादी मिली मुफ्त में ?

     लौ से चमके गांधी जी ,
    प्रान्तों के असंख्य लोग ,
    विन्ध -हिमालय की चोटी से 
   कुमारी अंतरीप सागर  तक 
   बहे खून की धारा से  
 लालिमा  फैलकर मिली  आज़ादी.

   ताला लगाए घर में 
   गुलाम सा रहकर ,
   दासता में  मूढ़ता से 
   फंसे देश में ,
  किले  तोड़कर ,
झंडा ऊँचा करके 
 वीरावेश में लड़ी वीरांगना 
झांसी रानी की वीरता ने 
सत्य की आजादी दिलाई.

शुरू हुआ सिपाही कलह ,
वीरता झाँकी हर चेहरे पर ,
शासक गोरों के शासन हिलने में
 वही शुरुआत.

दंडी में एक यात्रा ,
धरणी  पर एक मुहर.
हमेशा त्याग की परंपरा,
दिल में रखो यह स्मरण.
गंगा-कावेरी आज नहीं 
तभी जुडी थी .
सत्य के प्यास  के वीरों से 
भारत का हुआ संगम .
बंगाल भी यहाँ  आया--
व.उ. चिदाम्बरानार और वांची सीखने ,
महाकवि भारती का संघ-नाद 
मिलकर बने तीव्र संग्राम.

द्वार सब बंदकर ,
गूलियों के भरमार से 
  कायर टयर ने 
किया अत्याचार.
गूंजी बंदूकों की गोलियां;
जालियांवाला बाग़ में 
शिशु नर-नारी,बूढ़े -बूढ़ी 
उवा-युवती सब के प्राण उड़े;
उनके रक्तों की नदी बही ;
उसी में मिली आज़ादी.
पंजाब  सिंह लाला लजपति,
के रक्त की धारा सूखी नहीं ,
वीर दिलेर   तिलक के दल 
माथे पर अग्नि तिलक रख 
 वीरा-वेश में किये संग्राम .
विदेश हुए चकित.
तभी मिली आजादी.

जहाज चलाये व.उ.चिदम्बरानार 
देख विदेश हुए विस्मित 
कोल्हू खींचे जेल में ,
तभी तो मिली आज़ादी.

शहीदों की लहरें उठी नयी -नयी,
सर्वत्र आजादी के वेद गूँज उठे,
 हवा में अग्नी ताप ;
दासता के आसमान  फटा;
गन्दगी के मेघ मिटे,
आजादी की रोशनी फैली.
क्या हमें दफना सकते हो?
समझ लो वीर शैतानो!
हम तो वीर बीज ,
बोते हो तुम!
अंकुरित फूटेगी आजादी.--
यों ही वीर गर्जन करते -करते 
भगत सिंह ,सुखदेव ,राज गुरु 
लटके फांसी पर;
उनकी निज बली से मिली आज़ादी.
कठोरता से कारवास में 
घूँस रखा वीरो को;
सांस घुटकर मरे;रोगी बने;
स्वर्णिम आजादी की चमक  के निमित्त 
हज़ारों के तादाद में संग्राम के अग्नि कुण्ड में 
भस्म हुए वीर शहीद .
भारत  की  स्वतंत्रता  के काव्य में 
ये  हैं हजारों  वीर पात्र .

माता के जंजीर तोड़ने ,
उसका झंडा फहराने ,
देश की आजादी देखने 
अविवाहित रहे;

आँखों में हज़ारों ख़्वाब ,
काल्पनिक विचारों अनेक 
रखकर जिए घन्य मान्य कामराज.
ऐसे धीरों के हठ  त्याग से 
मिली है आजादी.

गुलामी  तोड़ने ,
आजादी पाने ,
दमन नीति मिटाने 
कठोर दान भोगने ,
जेल में रहने ,
लाठी का मार सहने 
हजारो  वीर पुत्रों ने डी  चुनौती.  
अपने सिद्धांत के पक्के 
देश के शहीद पुत्रों के 
असंख्य वेदना  के  सहने से 
मिली आज़ादी की हवा.

No comments:

Post a Comment