प्राकृतिक विश्राम और आनंद ,
कृत्रिम में नहीं ,वह तो धनियों का आनंद.
प्राकृतिक सुख सब को बराबर,
वह नहीं देखता ,अमीरी -गरीबी ,
जन्म -मरण तो सब के पीड़ादायक।
माँ की प्रसव वेदना अमीर -गरीब में बराबर.
आदमी की मृत्यु वेदना बराबर.
बीच का जीवन कृत्रुम ,
उसमे कितना सघर्ष.
कितना मेहनत।
कितना षड्यंत्र।
आध्यात्मिकता में कितना
धोखा बाज।
सोचो !तो ईश्वर की आराधना हो
बगैर मिथ्याडम्भर के।
जप हो ,तप हो ,यज्ञ -हवं हो
ठगने नहीं ,देश हित के लिए हो.
न हो धन लूटने;
वह हो दान -धर्म के लिए;
काले धन जोड़ने नहीं ,
खाली पेट भरने के लिए.
दरिद्र नारायण की सेवा के लिए.
उसी में प्राकृतिक आनंद.
उसी में प्राकृतिक संतोष।
उसी में शान्ति.
ॐ शान्ति !शांति!शान्तिः!!1
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