Sunday, December 7, 2014

बगैर मिथ्याडम्भर के।

प्राकृतिक  विश्राम और आनंद ,

कृत्रिम में  नहीं ,वह तो धनियों का आनंद.

प्राकृतिक  सुख  सब को बराबर,

वह नहीं देखता ,अमीरी -गरीबी ,

जन्म -मरण  तो सब के पीड़ादायक। 

माँ  की प्रसव वेदना  अमीर -गरीब में बराबर.

आदमी की मृत्यु वेदना  बराबर.

बीच  का जीवन कृत्रुम ,

उसमे कितना सघर्ष.

कितना मेहनत। 

कितना षड्यंत्र। 

आध्यात्मिकता में कितना 

धोखा  बाज। 

सोचो !तो  ईश्वर की आराधना हो 


बगैर  मिथ्याडम्भर  के। 

जप हो ,तप हो ,यज्ञ -हवं हो 

ठगने नहीं ,देश हित के लिए हो.
न हो  धन लूटने;
वह हो दान -धर्म के लिए;
काले धन जोड़ने नहीं ,
खाली  पेट भरने के  लिए.
दरिद्र नारायण  की सेवा  के लिए.
उसी में प्राकृतिक आनंद.
उसी में प्राकृतिक संतोष। 
उसी में शान्ति.
ॐ  शान्ति !शांति!शान्तिः!!1






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