Friday, December 5, 2014

नदी की आवाज़ கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

एक नदी का स्वर 

मैं  हूँ  एक  जल कथा,

कुदरत की लिखी.

मिट्टी  के मानसिक

स्वर  के

 द्रव-अंकित.

भूगोल के नवीन युगों को  पारकर

खड़े रहनेवाली   जग  की जीवन रेखा.


बाह्य -चलन  का  उज्जवल निधि

उठने तड़पने  की मेरी लहरें

ठण्ड ज्वालायें.

जब भूमि प्रसव देने

गर्भ -धारण करती है,

तब मैं जीवाणुओं के लिए

 माता  के   दूध  स्त्रोत .



जो कुछ मैं अपने प्रपंच भाषा में  बोला ,

आप न समझ पाए

इसलिए मैं उन्हें स्थानीय बोली में

कहने आयी हूँ.

जीव की नाड़ियों-सा चलने तड़पकर

वन-नदी -सी जीवन बिता थी.

मेरे पहरे के लिए दो किनारे बनवाये .

मुझे  घमंड  हुआ ,गौरव मिला है. पर


मुझे इत्र-तत्र बाँध  बनवाकर ,

कारावास में डाल दिया है.

मेरी  सारी  दृष्टियाँ ,निचली  सतह  की ओर

ऊपरी सतह से आतंकित मैं  बनती हूँ  जलप्रपात.

बहनेवाले मार्ग भर  हरा शय्या  फैलाता हूँ.

आपके    पैरों  को गले लगाने

पुष्पों   का पुरस्कार ढोकर आती हूँ.

आप तो  काँटों को ही ,मेरे  चेहरे पर फेंकते हैं.

मैं तो आती हूँ आपकी गन्दगी  मिटाने ,

आप तो अपने मल-मूत्र  मैलों से  गन्दगी कर चुके हैं.

मैं अपने  सहोदरों  से अपनी राम कहानी सुनाकर

रोती  हूँ तो मेरे आंसू  ही समुद्र में भरकर खारा बनता है.

 समुद्र संगम के संकल्प  में

समरस को मानती नहीं हूँ .

अपने लक्ष्यों को गिरवी रखकर

दमन प्रणाली के लिए नत्मस्तक होती नहीं.

विलम्ब हो सकता है, लेकिन छूट नहीं मिलेगी 

हमें  सूरज का ताप  जलाता है.

मेघों के पंख  बांधकर

ऊपर उड़कर  दुबारा वर्षा की बूंदों के रूप में

जन्म लेते हैं हम.

मैं अपने क्रोध दिखाने  समय-समय पर उमड़ पड़ती हूँ.

आप तो न्याय को मिटा देते हैं.

मैं तो जमीन के साथ जमीन बनकर

घुटने के बल  चलकर  आपसे  कुछ माँगे  रखती हूँ;

इस जल की मांगें ठुकरायेंगे तो

मुझे  एक दिन आग की ज्वाला बनकर सीधी खडी होनी पड़ेगी.

No comments:

Post a Comment