मनुष्य जाति
(तमिलनाडु में नाम के साथ जो जाति के नाम जोड़ते हैं ,उसे मिटाने के आदेश के कारण गलियों के नाम मिटा दिए. पर वास्तव में जाति-भेद अभी जिन्दा है, इसपर कवि एलिल्वेंदन की कविता का तमिल अनुवाद )
निकाल चुके हैं गलियों में लिखे
जातियों के नाम.
लेकिन मन में मंच बनाकर
फूल की वर्षा से सजाकर रखे हैं.
सडकों में लिखे जाति नाम तो मिट चुके.
लेकिन घर में दीप जलाकर
आड़ में करते हैं पूजा.
घोषणा करते हैं
जातियों को मिटा चुके हैं,
जातियों को मिटा चुके हैं,
पर छिपकर उज्जवलित है जातियां.
हमारे ह्रदय के माँस-पेशियों में
चिपककर
अशुद्धता को बना दिया गाढ़ा.
भूमि में अनेक जीव्राशियाँ
वैसे ही जातियों के संघ .
हम ऐसा संघ बनायेंगे
जिसमें मनुष्यों के संघ रहे.
जाति संघ मिट जाएँ .
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