Thursday, December 11, 2014

क्या वास्तव में धर्म निरपेक्षता है भारत में ?

जन्म हुआ  मेरा आजादी के बाद.
संविधान का ज्ञात हुआ 
आजादी के चौदह साल के बाद .
नौकरी मिली ,तो क्या देखता हूँ 
पच्चीस साल की उम्र में 
अर्थात आजादी के पच्चीस साल बाद ,
हर तीन महीने छात्र सूची -अध्यापक सूची 
कितने  हरिजन ,कितने दलित ,
कितने पिछड़े ,कितने बहुत पिछड़े 
कितनी परिवर्तित ईस्सायी हरिजन 
भर्ती -नियुक्ति.
किसी की माँग  नहीं वह आमीर  या गरीब.
एक डाक्टर ,एकीन्जनीयर , सब जातियों की 
प्राथमिकता के आधार पर  पाते 
छात्रवृति-सहूलियतें.
भले ही वह पुत्र हो सांसद -विधायक का.
उच्च जातियों के गरीब 
जिनको खाना तक नसीब नहीं 
उनको नहीं सहूलियत या नौकरी की प्राथमिकता.
दुखी  है वे ,इसकी चिंता  नहीं किसीकी !
धन पर धन ,गरीबी पर गरीबी यही है 
क्या धार्मिक समानता.?
मिनोरिटी   अधिकार है ,
मेजारिटी  का  नहीं अधिकार.
कांग्रस और अन्य दल
मिलकर खाते रमजान दावत ,
हिंदू ही हिंदू का अपमान.
तमिलनाडु में गीता का विरोध.
मसलमानों  का समर्थन .
हिंदू भगवानों का जूता मार.
चौराहों  पर ये वाक्य -
नहीं भगवान ,भगवान के नाम लेनेवाला बेवकूफ .
वे  ही खाते  रमजान दावत.
क्या  यही  कांग्रस अन्य दलों का धर्म निरपेक्ष 
ज़रा सोचिये !दिल नहीं खौलता तो 
ये धर्म निरपेक्षता  है 
एक धोखे बाज.

1 comment:

  1. आदरणीय सेतुरमन जी! सादर नमन! सुन्दर प्रस्तुति और एक वास्तविकता की!
    धरती की गोद

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