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Wednesday, December 13, 2017

निज रचे दोहे


     सोच-समझ  देश के हित. सुविचार में लग जा.
     कर्म में लग जा देश के हित ,  धर्म कर्म में  लग जा.१.

      आशा  रख  भगवान  पर, निराशा  छोड़ जग में .
      शरणागत्वत्सल  रक्षक मान ,  परमानंद  है   जग में.२.

     आध्यात्मिक लोग जग में ,  करते हैं मानव भेद .
     आत्मा की बात मान चल,  न  मान  भिन्न विचार.३.
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@    मिथ्या  जग   स्वार्थ लोग ,  नित्य करते  अघ ठग .
   सत्य पथ  जान पहचान ,      वंदना करते   अग जग .४.

  मनमाना काम न कर.  मानसिक  पीडा  जान.

मन  मानी बात मान.मानसिक चैन जान. (स्वरचित)५. 

सहज मन उपजे ग्ञान ,सफलता की जड जान. 
सत्संग से मिलते ग्ञान. संकट की मुक्ति जान.६.--नौ पोस्टेड
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स्वरचितप्रतियोगिता ---४. 
काम करना मन को  हर्ष .चुप रहना अति कठिन 
बुरे विचार  के मन में ,बेकारी  ही पतन.७. 
चित्रपट  देख  इश्क ,इश्क । बलातकार,चुम्बन .।

सोच विचार दूर रह,    अश्लील बात  न  सुन.  ।८.

जी ठीक नहीं, बुद्धि   भी   ,कर्म भी  सही नहीं।
 जीवन बिन सद्विचार   ,कभी सुख  पाता  नहीं.९--12
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                  प्रतियोगिता -पाँच
                    

कर्म  ही ठीक नहीं तो ,फल भी वांछित नहीं,
धर्म  पथ  ठीक  नहीं तो  जीवन में चैन  नहीं,१० .

तेरी उन्नति तुझमें , जैसे शारीरिक विकास।
मेहनत, नेक सत्य , तीनों में है संतोष।११
लौकिक इच्छा कम करो, वही शांति का पथ।
अलौकिक अाध्यात्मिकता में है,अनंत संतोष!!१२
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  प्रतियोगिता -६ छह
जान लो सही पैमाने में ,जग व्यवहार को।
जन्म फल मिलना हो तो, दूर करो चाहों को।१३.

भ्रष्टाचारी, काला धनी , रिश्वत खोरी ,भोगते बाह्यानंद।
आंतरिक आनंद भजन में ,जिससे मिलता ब्रह्मानंद।१४

विनाश काले विपरीत बुद्धि, ग्ञानी ने कहा।
विकास काले अनुकूल बुद्धी, ईश्वर की देन।।१५
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 प्रतियोगिता -सात

राजनीती -भ्रष्टाचार   ,सर रहित शरीर मान.
राम ने मारा  छिपकर ,कुंजरः धीमा मुरली .१६.

देश हित जन्मे सूरमा, नेता  बनते अगजग में .
अघ जग   फैलाने   जन्मे , बद बनते अगजग में १७ अहिंसा से बुद्ध बने , जग वन्द्य महान .

 मोहन दास पाए   मान ,अहिंसा का विशिष्ट  मान.१८.
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प्रतियोगिता --आठ. 



जान का  कोई न  जिम्मा, न  जग   जिम्मा जान .
मान ही रहता  हमेशा , सम्मान खोना पाप. १९
भगवान  देत दान-धर्म  ,   मनमाना धन-दौलत .
 पालन  कर  मन से   धर्म , मान बड़ों  की  बात. २०.

बातों की जानकारी,   आजादी  के  विचार.

कलियुग ही सब से  अच्छा, बोलते है प्रकट. २१ .
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प्रतियोगिता -नौ
  उचित शिकार की राह देख , तीर पर बैठ बगुला.
   देख शिकारी का तीर चला, तीर पर गिरा बगुला.                                                                                 २२ 

  विधि की विडम्बना  लख, सुकर्म में   लीन हो  जा.
 विधि  का फल टलते नहीं , लीला सब अनंत  की .२३
  कर्म फल  भोगत  तन मन . बुरे कर्म मत कर.
  शर्म ही बद कर्म  का फल,  सुकर्म  ही नित कर.२४.
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प्रतियोगिता --10
मन की अशांति ताक, खुद ईश्वरभक्त बनI
ईश्वर के ध्यान में लग ,सदाचार का मार्ग बन. २५.

खडी बोली

हमारे  देश  में  कितनी भाषयें  थी,
उतने ही ज्ञानी   थे.
 उनकी रचनाएँ अमर हैं.

मुग़ल आये तो खडी बोली
  ढाई लाख की बोली
पनपी ,वह तो चमत्कारी.

भारतेंदु काल से आधुनिक काल तक
१९०० से आज तक अद्भुत विकास.
हिन्दी  या हिन्दुस्तानी ऐसी होड़ में
शुक्रिया  या धन्यवाद ,
कोशिश  या प्रयत्न
खिताब या उपाधी यों ही
शब्द भण्डार बढे .
लिपि छोड़ उर्दू -हिंदी की समानता
मजहब  नहीं सिखाता  ,
आपस में बैर  रखना.
सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा हमारा.
बंटवारे के बाद भी एकता  की निशानी .

हिंदी

मित्रों को सादर संध्या प्रणाम.

   हिंदी  है हमारे  देश  की भाषा.
    संस्कृत की बेटी ,भारतीय भाषाओं की सहोदरी.
    विश्व की भाषा शब्दों  को अपनाकर बड़ी बढी.
    तनख्वाह भी चलता हैं , वेतन भी.
   वर्ष भी चलता है , साल भी.
   दिनांक /तारीख  भी .
  धन्यवाद . शुक्रिया
  इश्क ,मुहब्बत,प्यार,  ,प्रेम की भाषा.
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Sunday, December 10, 2017

निज रचा दोहा

मनमाना काम न कर.
 मानसिक  पीडा  जान.
मन  मानी बात मान.
मानसिक चैन जान. (स्वरचित)

सिक्का

सिक्का  बचपन की याद दिलाती.
एक लेकर  जाते.
एक मूँगफली  का  गोला लेते.
बाकी दो जल्ली(दो पैसे)  लाते.
साथ ही गुड थोडा  सा मुफ्त मिलता.
पूरे दिन मजे में कटता.
अब नोट  है ,हज़ारों .
पर मजा नहीं ,
मानव  मन  में .

निजी रचे दोहे

भक्ति
 1. भगवान  का नाम जप,
 मन को रख वश  में.
मान मर्यादा   मिलेगा़
लौकिकता से दूर रह.
 अमित आनंद  जान.

2.अति सुखी जीवन तभी,
  सार्थक जीवन है  सदा.
 सर्वत्र  सानंद   तभी,
 जब सर्वेश्वर की याद.
3. करो करो परोपकार,
    धर्म पथ  को मानो.
  कलंकित जीवन  न   सुखी.
 यम  सदा  साथ  जानो.




Friday, December 8, 2017

जय जवान .जय किसान


जय जवान ! जय किसान!


दिनकर की रोशनी दिन -दिन ,

युग के परिवर्तन
रात में काम 

दिन में निद्रा .
 वे न जानते धूप.

मैंने सोचा तो सुना
आधी रात में खिलनेवाले 

फूल भी हैं ,
अँधेरे में देखने के उल्लू भी हैं. 

स्वार्थ के लोग अति कम ,
सेवक सच्चे अधिक.

सीमा पर लड़ते
 देश भक्त जवान. 

यहाँ के एक करुणा,
 जोड़ते भ्रष्टाचार रूपये
 लाख करोडो.

कुमारी जोड़ कर ,
जोड़ने के लुटेरों को छोड़ 

जेया जेया कार लेकर
चल बसी. 


ऐसे एकाध विषैली जन्तुयें
अपराध करके भी 

पाती सम्मान. 
जगाना हैं देश के युवक युवतियों को
स्वार्थी तत्वों को 

पनपने न देना.
चंद चाँदी की चिड़िया पाकर 
न देना बदमाशों को ,
भ्रष्टाचारियों को ,
काले धनियों को 

ठगों को खूनियों को वोट, 
सिखाना है उनको

 देश ही प्रधान .

जय जवान !जय किसान!