Wednesday, May 28, 2025

मधुर वाणी

 साहित्य मंच मेघदूत को  एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार वणक्कम्।

अनुच्छेद लेखन 

 

मधुर वाणी की महत्ता 

++++++++++++++

 मधुर वाणी की महत्ता आदी काल से आज तक   ऋषि मुनि  और कवियों ने

 सोदाहरण  बताया  है।  

 परशुराम  श्रीराम  के मधुर वचन के कारण  हार गए। बुद्ध ने क्रूर अंगुलिमाल को भिक्षु बना दिया।  नारद के उपदेश से डाकू रत्नाकर  वाल्मीकि बना दिया।

 कोयल मधुर ध्वनि के कारण प्रसिद्ध है।

 गधा  और कौआ की आवाज़ कोई  पसंद नहीं करता।   कबीर ने कहा कि

 मधुर वचन है औषधी, 

कटुक वचन है तीर।  

 विश्वामित्र मुनि अपने क्रोध के कारण 

 तपःशक्ति खोते रहे। ब्रह्म ऋषि बन न सके।

 दूसरों को  वश में करने के लिए 

 मीठी बोली  ही एक  शक्ति है।

आजकल ठग भी मधुर वाणी के द्वारा 

 शादी कर लेता है, पैसे लूटता है।

 भ्रष्टाचारी नेता भी मधुर वाणी  के द्वारा जीतता है।

 छात्र भी मधुर वचन बोलनेवाले 

 अध्यापक  का आदर करते हैं।

 मधुर वाणी है के संगीत ईश्वर भी चाहते हैं। हर भगवान के हाथ में  कर्ण मधुर वाद्ययंत्र है। शिव के हाथ में डमरू,

 विष्णु के हाथ में शंख, सरस्वती के हाथ में वीणा, कृष्ण के हाथ में मुरली । मधुर संगीत में हिरन, सांप भी वश में आते हैं।    

 

ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोए।

   अतः जीवन में आनंद से दुश्मन रहित जीवन जीने के लिए मधुर वाणी ही मंत्र है।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

Thursday, May 22, 2025

खुद को भुलाना खुदा को पाना



 साहित्य बोध, गुजरात इकाई को एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार।

खुद को भुलाकर खुद का पाया है।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार 

         अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति 

21-5-25.

ईश्वर वंदना में 

तपस्या में तल्लीन 

ऋषि-मुनियों ने

 खुद को भूलकर 

 खुद का खुदा का पाया है।

वीर जवान खुद ही को भुलाकर 

देश की सुरक्षा में 

 अपने को भूलकर 

 अपनी देश को बचाया है।

 सुखदेव चंद्रशेखर आजाद 

 अपने देश की आज़ादी के लिए 

  खुद को भुलाकर कूद का पाया है।

  मीरा अपना सुध-बुध खोकर

  अपने अस्तित्व को पाया है।

 आविष्कारक खुद को भूलकर 

 अग जग के कल्याण हेतु 

 शोधकार्य मैं ही मन लगाकर 

 इलाज के क्षेत्र में 

 ईजाद किया है।

 वैज्ञानिकों का आविष्कार 

 अहर्निशम अथक परिश्रम 

 आवागमन के साधन।

संगणिक का आविष्कार।

 इतिहास के पन्नों में 

 कितने भक्त,

 कितने राजा

 कितने कवि लेखक 

 खुद को भुलाकर खुद को 

 खुदा को पाया है।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

Saturday, May 17, 2025

तमिऴ् प्रेम

 तमिऴ के लिए प्राण दिये हैं  अनेक लोग।

  उनमें नंदि कलंबकम तमिऴ ग्रँथ के लिए.  तृतीय नंदवर्मन  ने प्राण दिये हैं।

 कलंबकम का अर्थ हैं 12+6--18अंगों वाले काव्य ग्रन्थ।

 तृतीय नंदवर्मन  तमिऴ भाषा से अति प्यार करते थे।   उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजा बने। उनकी चौथेली माँ के चार पुत्र थे। वे नंदी वर्मन से शासन को अपनाने के लिए उनसे लड़ते थे।

पर उनकी वीरता के सामने वे कुछ न कर सके। चौथे ली माँ के सबसे छोटे पुत्र तमिळ के कवि थे। उन्होंने नंदि कलंबकम् काव्य लिखा।

 वे उस ग्रंथ की एक एक कविता सुनाकर भीख माँगते थे‌। वेकविताएँ अति सुन्दर थी। एक वीणावादिनी ने उस ग्रंथ को   गाकर वीणा बजाती थी।  राजा ने सुंदर गीत सुनकर उस गायिका को बुलाया। 

गायिका ने कहा कि एक भिखारी गाता था। कविता की सुंदरता से प्रभावित होकर मैं वीणा बजाती थी। राजा के आदेश से वह गायिका भिखारी कवि को राजमहल ले आयी। तब पता चला वह कवि और कोई नहीं, उनकी चौथेली माँ का पुत्र है। पर उसने काव्य के प्रति देने और सुनाने से इन्कार कर दिया।

 उसने कहा कि कविताएँ सुनाने पर आप मर जाएँगे।

 अंत में राजा के आग्रह से यह शर्त लगाई कि आप केले के पत्ते बिछाइये।

हर एक कविता के लिए एक पत्ता।

 अंतिम पत्ता श्मशान में होगा।

हर एक कविता सुनाने के बाद आप अगले पत्ते पर लेटिए। तब पहला पत्ता जलेगा। राजा तमिऴ भाषा ग्रंथ की रक्षा के लिए प्राण त्यागने तैयार हो गये।

 वैसे ही हर हरा पत्ता जलता रहा।

 अंत में हरी लकड़ियों का चिंता तैयार था। उसपर राजा लेट गये। अंतिम कविता सुनाते ही हरा चिंता जला।

 तमिऴ काव्य के लिए राजा प्राण त्याग दिया। पर नंदी कलंबकम् आज भी अमर है।

 तृतीय नंदवर्मन को तमिऴ मारण कहते हैं।

 आदी काल से तमिऴ के लिए प्राण त्यागने वाले थे। आज भी हैं।

तमिऴ के प्रति प्रेम श्रद्धा भक्ति जान से बढकर है।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

तमिऴ केतमिऴ के लिए प्राण दिये हैं  अनेक लोग।

  उनमें नंदि कलंबकम तमिऴ ग्रँथ के लिए.  तृतीय नंदवर्मन  ने प्राण दिये हैं।
कलंबकम का अर्थ हैं 12+6--18अंगों वाले काव्य ग्रन्थ।
तृतीय नंदवर्मन  तमिऴ भाषा से अति प्यार करते थे।   उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजा बने। उनकी चौथेली माँ के चार पुत्र थे। वे नंदी वर्मन से शासन को अपनाने के लिए उनसे लड़ते थे।
पर उनकी वीरता के सामने वे कुछ न कर सके। चौथे ली माँ के सबसे छोटे पुत्र तमिळ के कवि थे। उन्होंने नंदि कलंबकम् काव्य लिखा।
वे उस ग्रंथ की एक एक कविता सुनाकर भीख माँगते थे‌। वेकविताएँ अति सुन्दर थी। एक वीणावादिनी ने उस ग्रंथ को   गाकर वीणा बजाती थी।  राजा ने सुंदर गीत सुनकर उस गायिका को बुलाया।
गायिका ने कहा कि एक भिखारी गाता था। कविता की सुंदरता से प्रभावित होकर मैं वीणा बजाती थी। राजा के आदेश से वह गायिका भिखारी कवि को राजमहल ले आयी। तब पता चला वह कवि और कोई नहीं, उनकी चौथेली माँ का पुत्र है। पर उसने काव्य के प्रति देने और सुनाने से इन्कार कर दिया।
उसने कहा कि कविताएँ सुनाने पर आप मर जाएँगे।
अंत में राजा के आग्रह से यह शर्त लगाई कि आप केले के पत्ते बिछाइये।
हर एक कविता के लिए एक पत्ता।
अंतिम पत्ता श्मशान में होगा।
हर एक कविता सुनाने के बाद आप अगले पत्ते पर लेटिए। तब पहला पत्ता जलेगा। राजा तमिऴ भाषा ग्रंथ की रक्षा के लिए प्राण त्यागने तैयार हो गये।
वैसे ही हर हरा पत्ता जलता रहा।
अंत में हरी लकड़ियों का चिंता तैयार था। उसपर राजा लेट गये। अंतिम कविता सुनाते ही हरा चिंता जला।
तमिऴ काव्य के लिए राजा प्राण त्याग दिया। पर नंदी कलंबकम् आज भी अमर है।
तृतीय नंदवर्मन को तमिऴ मारण कहते हैं।
आदी काल से तमिऴ के लिए प्राण त्यागने वाले थे। आज भी हैं।
तमिऴ के प्रति प्रेम श्रद्धा भक्ति जान से बढकर है।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक लिए प्राण दिये हैं  अनेक लोग।
  उनमें नंदि कलंबकम तमिऴ ग्रँथ के लिए.  तृतीय नंदवर्मन  ने प्राण दिये हैं।
कलंबकम का अर्थ हैं 12+6--18अंगों वाले काव्य ग्रन्थ।
तृतीय नंदवर्मन  तमिऴ भाषा से अति प्यार करते थे।   उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजा बने। उनकी चौथेली माँ के चार पुत्र थे। वे नंदी वर्मन से शासन को अपनाने के लिए उनसे लड़ते थे।
पर उनकी वीरता के सामने वे कुछ न कर सके। चौथे ली माँ के सबसे छोटे पुत्र तमिळ के कवि थे। उन्होंने नंदि कलंबकम् काव्य लिखा।
वे उस ग्रंथ की एक एक कविता सुनाकर भीख माँगते थे‌। वेकविताएँ अति सुन्दर थी। एक वीणावादिनी ने उस ग्रंथ को   गाकर वीणा बजाती थी।  राजा ने सुंदर गीत सुनकर उस गायिका को बुलाया।
गायिका ने कहा कि एक भिखारी गाता था। कविता की सुंदरता से प्रभावित होकर मैं वीणा बजाती थी। राजा के आदेश से वह गायिका भिखारी कवि को राजमहल ले आयी। तब पता चला वह कवि और कोई नहीं, उनकी चौथेली माँ का पुत्र है। पर उसने काव्य के प्रति देने और सुनाने से इन्कार कर दिया।
उसने कहा कि कविताएँ सुनाने पर आप मर जाएँगे।
अंत में राजा के आग्रह से यह शर्त लगाई कि आप केले के पत्ते बिछाइये।
हर एक कविता के लिए एक पत्ता।
अंतिम पत्ता श्मशान में होगा।
हर एक कविता सुनाने के बाद आप अगले पत्ते पर लेटिए। तब पहला पत्ता जलेगा। राजा तमिऴ भाषा ग्रंथ की रक्षा के लिए प्राण त्यागने तैयार हो गये।
वैसे ही हर हरा पत्ता जलता रहा।
अंत में हरी लकड़ियों का चिंता तैयार था। उसपर राजा लेट गये। अंतिम कविता सुनाते ही हरा चिंता जला।
तमिऴ काव्य के लिए राजा प्राण त्याग दिया। पर नंदी कलंबकम् आज भी अमर है।
तृतीय नंदवर्मन को तमिऴ मारण कहते हैं।
आदी काल से तमिऴ के लिए प्राण त्यागने वाले थे। आज भी हैं।
तमिऴ के प्रति प्रेम श्रद्धा भक्ति जान से बढकर है।
एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

Friday, May 16, 2025

धर्म ही एकता का मार्ग

 साहित्य बोध,असम इकाई को

 एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार वणक्कम्।

 विषय --धार्मिक चिंतन में सामाजिक एकता।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार 

         अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति 

---------16-5-25.

+++++++++++++++++++++

संसार में विविधता प्राकृतिक देन।

 ऊँचे ऊँचे पहाड़,

 अनंत सागर,

 असंख्य जीव जंतु,

 विभिन्न गुण, विविध है चाल चलन।

 विविध भाषाएँ।

 आपस में लोग कटते मरते थे।

 तब पैगाम मिला, मुहम्मद नबी को,

 तब एकता  प्रेम का संदेश 

 धर्म ने दिया, सामाजिक एकता का उत्तर।

 भारत में मेरी अपनी मातृभूमि में 

 हज़ारों भाषाएँ,

 विभिन्न जलवायु,

 आसेतु हिमाचल शिवराम।

 सनातन धर्म में 

 विचारों की एकता।

 आज़ादी की लड़ाई में 

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई 

 आपस में है भाई भाई।‌।

 विभिन्न मजहब में एकता के लक्षण।

आदि शंकराचार्य का धर्म-प्रचार,

 बुद्ध का अहिंसा,

 महावीर का जिओ और जीने दो।

 धर्म कर्म चिंतन 

 परोपकार,

 दान धर्म,

 सत्य, अहिंसा अस्तेय।

 पाप पुण्य का पुरस्कार दंड।

 विनयशीलता,

 अमानुषीय शक्ति की सोच।

 अल्पआयु, दीर्घायु, रोग,

 साध्यरोग, असाध्य रोग,,

 धर्म चिंतन न तो

 न एकता,

  धर्म विचार सोचिए,

 काम, क्रोध, मंद लोभ

 जिसमें है वह मूर्ख।

 धर्म विचार में कबीर वाणी।

वसुधैव कुटुंबकम्,

 एक आसमान, एक सूर्य, एक चंद्र

 सारा जग मेरे।

 ये धार्मिक चिंतन न तो

न सामाजिक एकता।।


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

Wednesday, May 7, 2025

झंडा

 साहित्य बोध बिहारी इकाई को  एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार वणक्कम्।

 विषय --जवाब नहीं तिरंगे का।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार 

          अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति 

 8-5-25.

तिरंगा झंडा हमें जान से प्यारा।

 बीच में नील चक्कर ,

 अनंत आकाश में 

  अनंत सागर पर

 अनंत भूतल पर

 चौबीस घंटे चलते फिरते घूमते 

 अहर्निशम रहने का।

  केसरिया त्याग का

 जन्म भूमि के लिए 

 सर्वस्व त्यागने का,

 ईश्वरत्व पाने का।

श्वेत रंग पवित्र दिल का,

 संधि समझौता शांति का।

हरा रंग समृद्धि का

 कृषी का संपन्नता का।

 जवाब नहीं तिरंगे का और

 नील चक्कर का।

 गतिशील है हम।

 जागते जगाते रहते हैं हम।।

जय जवान जय किसान नारा हमारा।

सदा ऊँचा रहेगा हमारे तिरंगे झंडे।

 विविधता प्रकृति का,पर

 हम में है विचारों की एकता।

जवाब  नहीं तिरंगे का,

 हमारे प्राण से बड़े राष्ट्रीय झंडे का।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।


 


सांस

 साहित्य बोध, उत्तर प्रदेश इकाई को

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का नमस्कार वणक्कम्।

विषय -= साँसें हलक में सूख गई

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार 

        अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति 

7-5-25.

+++++++++++++++++++++++


मानव मन में  विचार 

तरंगें उठना  स्वाभाविक हैं।

 महामाया शक्ति देवी 

 लौकिक आकर्षण दृश्य

 मान मन को चंचल बनाती रहती।

 सकारात्मक नकारात्मक वासनाओं से

 मानव मन में सांस घुटाने तैयार।

 लोभ  मद ईर्ष्या  परिणाम,

 अशांति पूर्ण  दुख मय जीवन।।

 ज़रा सी असावधानी,

 कसरत में भी पैर फिसल जाता।

 हँसी हँसी में  पेट में दर्द भी।

  कसरत करने वजन उठाते ही

   वजन के कारण हाथ में मोच।

  ब्रेक वयर कटने से दुर्घटना।

  पल पल में दम घुटने की न देरी।

 बंद समय आने पर बुद्धि भ्रष्ट होती।

 वैसे ही एक दिन मन की चंचलता 

 विपरीत चाल परिणाम 

 साँसे हलक में सूख गई।

 एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

तकरार

 



नमस्ते वणक्कम्। साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का नमस्कार वणक्कम्।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।


विषय -= तकरार।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार 

         अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति 

        7-5.25.

++++++++++++++++++++++++++

 तकरार  आजकल सहज क्रिया।

 हाथ में हस्तदूरभाष,

तकरार के मूल।

 शादी पक्की हो गई, 

मोबाइल में 

 वर वधु को बोलने की स्वतंत्रता।

 दस दिन में शब्द दोष,

 अर्थदोष  परिणाम तकरार।

 पति-पत्नी दोनों नौकरी में 

 अचानक पत्नी की तरक्की 

  पति से बीस हजार बढ़ती।

  सास का जलन,

 पति की हीन मनो भावना।

 शुरुआत पति पत्नी का तकरार।

 आजकल पुरुष दोस्त स्त्री दोस्त का जमाना।

 शादी के बाद पत्नी का पुरुष दोस्त से

निष्कलंक मिलने पर भी

 शंकालु पुरुष  पौरुषहीन 

 पति-पत्नी तकरार प्रारंभ।

दल दल में मतभेद 

 नेता तो एक

 दल दल भिन्न भिन्न।

 नेता के कब्र में 

 श्रद्धांजलि देने में 

 मतभेद के दलों में 

 सिद्धांत एक होने पर भी

 व्यक्तिगत स्वार्थ भाव के कारण 

 द्वेष ईर्ष्या  अहंकार 

 बदला लेने का भाव।

 तकरार आजकल सहज क्रिया।।

 प्रांतीय दल राष्ट्रीय दल 

 राष्ट्रीय भावना की कमी 

 तकरार तकरार तकरार।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना