Saturday, May 17, 2025

तमिऴ् प्रेम

 तमिऴ के लिए प्राण दिये हैं  अनेक लोग।

  उनमें नंदि कलंबकम तमिऴ ग्रँथ के लिए.  तृतीय नंदवर्मन  ने प्राण दिये हैं।

 कलंबकम का अर्थ हैं 12+6--18अंगों वाले काव्य ग्रन्थ।

 तृतीय नंदवर्मन  तमिऴ भाषा से अति प्यार करते थे।   उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजा बने। उनकी चौथेली माँ के चार पुत्र थे। वे नंदी वर्मन से शासन को अपनाने के लिए उनसे लड़ते थे।

पर उनकी वीरता के सामने वे कुछ न कर सके। चौथे ली माँ के सबसे छोटे पुत्र तमिळ के कवि थे। उन्होंने नंदि कलंबकम् काव्य लिखा।

 वे उस ग्रंथ की एक एक कविता सुनाकर भीख माँगते थे‌। वेकविताएँ अति सुन्दर थी। एक वीणावादिनी ने उस ग्रंथ को   गाकर वीणा बजाती थी।  राजा ने सुंदर गीत सुनकर उस गायिका को बुलाया। 

गायिका ने कहा कि एक भिखारी गाता था। कविता की सुंदरता से प्रभावित होकर मैं वीणा बजाती थी। राजा के आदेश से वह गायिका भिखारी कवि को राजमहल ले आयी। तब पता चला वह कवि और कोई नहीं, उनकी चौथेली माँ का पुत्र है। पर उसने काव्य के प्रति देने और सुनाने से इन्कार कर दिया।

 उसने कहा कि कविताएँ सुनाने पर आप मर जाएँगे।

 अंत में राजा के आग्रह से यह शर्त लगाई कि आप केले के पत्ते बिछाइये।

हर एक कविता के लिए एक पत्ता।

 अंतिम पत्ता श्मशान में होगा।

हर एक कविता सुनाने के बाद आप अगले पत्ते पर लेटिए। तब पहला पत्ता जलेगा। राजा तमिऴ भाषा ग्रंथ की रक्षा के लिए प्राण त्यागने तैयार हो गये।

 वैसे ही हर हरा पत्ता जलता रहा।

 अंत में हरी लकड़ियों का चिंता तैयार था। उसपर राजा लेट गये। अंतिम कविता सुनाते ही हरा चिंता जला।

 तमिऴ काव्य के लिए राजा प्राण त्याग दिया। पर नंदी कलंबकम् आज भी अमर है।

 तृतीय नंदवर्मन को तमिऴ मारण कहते हैं।

 आदी काल से तमिऴ के लिए प्राण त्यागने वाले थे। आज भी हैं।

तमिऴ के प्रति प्रेम श्रद्धा भक्ति जान से बढकर है।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

तमिऴ केतमिऴ के लिए प्राण दिये हैं  अनेक लोग।

  उनमें नंदि कलंबकम तमिऴ ग्रँथ के लिए.  तृतीय नंदवर्मन  ने प्राण दिये हैं।
कलंबकम का अर्थ हैं 12+6--18अंगों वाले काव्य ग्रन्थ।
तृतीय नंदवर्मन  तमिऴ भाषा से अति प्यार करते थे।   उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजा बने। उनकी चौथेली माँ के चार पुत्र थे। वे नंदी वर्मन से शासन को अपनाने के लिए उनसे लड़ते थे।
पर उनकी वीरता के सामने वे कुछ न कर सके। चौथे ली माँ के सबसे छोटे पुत्र तमिळ के कवि थे। उन्होंने नंदि कलंबकम् काव्य लिखा।
वे उस ग्रंथ की एक एक कविता सुनाकर भीख माँगते थे‌। वेकविताएँ अति सुन्दर थी। एक वीणावादिनी ने उस ग्रंथ को   गाकर वीणा बजाती थी।  राजा ने सुंदर गीत सुनकर उस गायिका को बुलाया।
गायिका ने कहा कि एक भिखारी गाता था। कविता की सुंदरता से प्रभावित होकर मैं वीणा बजाती थी। राजा के आदेश से वह गायिका भिखारी कवि को राजमहल ले आयी। तब पता चला वह कवि और कोई नहीं, उनकी चौथेली माँ का पुत्र है। पर उसने काव्य के प्रति देने और सुनाने से इन्कार कर दिया।
उसने कहा कि कविताएँ सुनाने पर आप मर जाएँगे।
अंत में राजा के आग्रह से यह शर्त लगाई कि आप केले के पत्ते बिछाइये।
हर एक कविता के लिए एक पत्ता।
अंतिम पत्ता श्मशान में होगा।
हर एक कविता सुनाने के बाद आप अगले पत्ते पर लेटिए। तब पहला पत्ता जलेगा। राजा तमिऴ भाषा ग्रंथ की रक्षा के लिए प्राण त्यागने तैयार हो गये।
वैसे ही हर हरा पत्ता जलता रहा।
अंत में हरी लकड़ियों का चिंता तैयार था। उसपर राजा लेट गये। अंतिम कविता सुनाते ही हरा चिंता जला।
तमिऴ काव्य के लिए राजा प्राण त्याग दिया। पर नंदी कलंबकम् आज भी अमर है।
तृतीय नंदवर्मन को तमिऴ मारण कहते हैं।
आदी काल से तमिऴ के लिए प्राण त्यागने वाले थे। आज भी हैं।
तमिऴ के प्रति प्रेम श्रद्धा भक्ति जान से बढकर है।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक लिए प्राण दिये हैं  अनेक लोग।
  उनमें नंदि कलंबकम तमिऴ ग्रँथ के लिए.  तृतीय नंदवर्मन  ने प्राण दिये हैं।
कलंबकम का अर्थ हैं 12+6--18अंगों वाले काव्य ग्रन्थ।
तृतीय नंदवर्मन  तमिऴ भाषा से अति प्यार करते थे।   उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजा बने। उनकी चौथेली माँ के चार पुत्र थे। वे नंदी वर्मन से शासन को अपनाने के लिए उनसे लड़ते थे।
पर उनकी वीरता के सामने वे कुछ न कर सके। चौथे ली माँ के सबसे छोटे पुत्र तमिळ के कवि थे। उन्होंने नंदि कलंबकम् काव्य लिखा।
वे उस ग्रंथ की एक एक कविता सुनाकर भीख माँगते थे‌। वेकविताएँ अति सुन्दर थी। एक वीणावादिनी ने उस ग्रंथ को   गाकर वीणा बजाती थी।  राजा ने सुंदर गीत सुनकर उस गायिका को बुलाया।
गायिका ने कहा कि एक भिखारी गाता था। कविता की सुंदरता से प्रभावित होकर मैं वीणा बजाती थी। राजा के आदेश से वह गायिका भिखारी कवि को राजमहल ले आयी। तब पता चला वह कवि और कोई नहीं, उनकी चौथेली माँ का पुत्र है। पर उसने काव्य के प्रति देने और सुनाने से इन्कार कर दिया।
उसने कहा कि कविताएँ सुनाने पर आप मर जाएँगे।
अंत में राजा के आग्रह से यह शर्त लगाई कि आप केले के पत्ते बिछाइये।
हर एक कविता के लिए एक पत्ता।
अंतिम पत्ता श्मशान में होगा।
हर एक कविता सुनाने के बाद आप अगले पत्ते पर लेटिए। तब पहला पत्ता जलेगा। राजा तमिऴ भाषा ग्रंथ की रक्षा के लिए प्राण त्यागने तैयार हो गये।
वैसे ही हर हरा पत्ता जलता रहा।
अंत में हरी लकड़ियों का चिंता तैयार था। उसपर राजा लेट गये। अंतिम कविता सुनाते ही हरा चिंता जला।
तमिऴ काव्य के लिए राजा प्राण त्याग दिया। पर नंदी कलंबकम् आज भी अमर है।
तृतीय नंदवर्मन को तमिऴ मारण कहते हैं।
आदी काल से तमिऴ के लिए प्राण त्यागने वाले थे। आज भी हैं।
तमिऴ के प्रति प्रेम श्रद्धा भक्ति जान से बढकर है।
एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

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