Thursday, May 1, 2025

हाय गर्मी

 साहित्य बोध गुजरात इकाई को 

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का नमस्कार वणक्कम्।

 विषय --हाय गर्मी।

 विधा --अपनी हिंदीअपने विचार 

             अपनी स्वतंत्र शैली 

            भावाभिव्यक्ति कविता 

1.5-25

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हाय गर्मी,हाय सर्दी,

 हाय पतझड़। 

आहा वसंत।

 हाय वर्षा।

 हाय!या आहा!

 पृथ्वी के जीवन के प्रतीक।

 मानव जीवन में ही नहीं,

 प्रकृति में भी  सुख दुख।।

  चाहिए जीने के लिए !

 भारतीय धनियों के लिए 

 हाय गर्मी हो या सर्दी 

 एक समान।

 गर्मी में ग्रीष्म निवासस्थान।

सर्दी में दक्षिण भारत।

 भारतीय जलवायु वातावरण 

 हाय हाय करने नहीं।

  राजा अंग्रेज़ी के लिए 

   कश्मीर, डार्जलिंग,शिमला,

   ऊटी सही रहा।

  आधुनिक वैज्ञानिक साधन

   वातानुकूलित सुविधा,

  मानव ज्ञान का आविष्कार।

 पर भाग्यवानों के लिए।

 गर्मी अति गर्मी कारण 

 वायुमंडल प्रदूषण।

प्रकृति का प्रकोप।

 जंगलों का नाश,

  नगरीकरण नगर विस्तार।

 प्रकृति का कोपपाजन।।

 सड़क चौड़ाई,

 बड़े बड़े पेड़ों को काट,

 मरुभूमि बनाना।

 मानव! भूलोक स्वर्ग भूमि!

हाय गर्मी , मानव की अपनी करतूतें।

 चेन्नई में मात्र तीन सौ झील गायब।

 गगनचुंबी इमारतें, पर 

 अति गर्मी से हाय!हाय! करते।

 अति वर्षा में घर में पानी।।

 मानव! अपने बुद्धि बल से

 सुंदर इमारत, पहाड़ों को भी चकनाचूर।

 परिणाम! हाय,हाय! गर्मी!

 कर्म फल भोगना ब्रह्म नियम।


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

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