साहित्य बोध, गुजरात इकाई को एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार।
खुद को भुलाकर खुद का पाया है।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति
21-5-25.
ईश्वर वंदना में
तपस्या में तल्लीन
ऋषि-मुनियों ने
खुद को भूलकर
खुद का खुदा का पाया है।
वीर जवान खुद ही को भुलाकर
देश की सुरक्षा में
अपने को भूलकर
अपनी देश को बचाया है।
सुखदेव चंद्रशेखर आजाद
अपने देश की आज़ादी के लिए
खुद को भुलाकर कूद का पाया है।
मीरा अपना सुध-बुध खोकर
अपने अस्तित्व को पाया है।
आविष्कारक खुद को भूलकर
अग जग के कल्याण हेतु
शोधकार्य मैं ही मन लगाकर
इलाज के क्षेत्र में
ईजाद किया है।
वैज्ञानिकों का आविष्कार
अहर्निशम अथक परिश्रम
आवागमन के साधन।
संगणिक का आविष्कार।
इतिहास के पन्नों में
कितने भक्त,
कितने राजा
कितने कवि लेखक
खुद को भुलाकर खुद को
खुदा को पाया है।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
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