Friday, February 16, 2018

नफरत

नफरत


नफरतें
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प्रेम के अति
आनंद के रहते ,

नफरत क्यों ?

दुखप्रद चीज़ों से 
नफरत.
बदबू से प्रेम.

क्रोध करने से नफरत .

बुराई करने से नफरत.

नफरत इसलिए भी हैं ,

अच्छे लोगों के नाम से नफरत.

चोर को पुलिस से नफरत .

नक़ल करनेवाले  छात्र को
अध्यापक से नफरत.

शासित दल की योजना ,
बढ़िया होने पर भी
विपक्षी दल के   नफरत .
मजहबी नफरत ,

जाति-सम्प्रदाय के कारण
 नफरत
काले -गोर रंग के कारण
नफरत.
अमीर को गरीबों से ,
गरीबों को अमीरों से ,
नफरत .

बिना   कारण के भी नफरत.
नफरत -घृणा क्यों?
मानसिक -शारीरिक दुर्बलता ही
नफरत के मूल.

प्रेम.

प्रेम.
    प्रेम  देखते  ही प्रेम,
    मानसिक प्रेम ,
    शारीरिक  मोह .
     स्वार्थ प्रेम ,
    निस्वार्थ प्रेम
     देश प्रेम ,
      देश -  भाषा प्रेम,
     धन   प्रेम ,
      दान प्रेम ,
      धर्म प्रेंम,

   क्षेत्रीय प्रेम .
   विश्वप्रेम.
 सिर्फ भारतीय  में  है --
 विश्व  बंधुत्व  विश्व प्रेम है.

Sunday, February 11, 2018

भाग्यवान

मैं हूँ एक भाग्यवान --

कैसे ?क्यों ?कहते हो ;

पूछेगा कोई तो

 मेरे उत्तर निकलेगा यों ही ---

मैं हूँ तमिलनाडु का
एक हिंदी प्रचारक;

मेरी माँ गोमतिजी
एक हिंदी प्रचारिका.
हम है प्रचारक तीव्र
 उस समय के ,
तब हिन्दी विरोध के कारण
जल रही थी गाड़ियाँ;
राजनैतिक चाल-छल में ,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव हिल रही थी;
तब मेरे हिंदी क्षेत्र प्रवेश;
महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी की
दूरदर्शिता
 महान विभूति कीआस्था में

हम भी गिलहरियों के समान
हिलते नींव को
मज़बूत बनाने में
सैकड़ों छात्रों के कंकट जोड़
 डाल रहे थे;
मेवा मिले या न मिले ,
सेवा करें तो मिलेगा संतोष;

मेरी नियुक्ति भी एक स्कूल में हुई ,

आन्दोलन के उस भयानक स्थिति में ,

हिन्दी अध्यापक के रूप में ,
जब मेरे अन्य सहपाठी थे बेकार;
हिंदी द्वि भाषा सूत्र के कारण
पाठशालाओं से तो चली ,
पर मेरे घर में तो छात्र संख्या बड़ी; बढी.

सेवा तो शर्त के अनुसार बिलकुल मुफ्त ;

एकसाल -दो साल में मिलती

एक अध्यापक विद्यालय अनुदान;

मैं और माँ भूखा -प्यासा प्रचार में लगे तो

एक आत्म -संतोष; आत्म -शान्ति -आत्म -सम्मान;

जहां भी शहर में जाए
कोई न कोई कहता "नमस्ते जी;
उस समय का वह आनंद
ब्रह्मानंद सा लगता;
प्रचार छोड़ चेन्नई में वेस्ली स्कूल में
 हिन्दी अध्यापक की नौकरी मिली
मेवा तो मिला ,सेवा सम्मान तो नहीं;
इसीलिये मैं भाग्यवान हूँ .

सत्याग्रही आचार्य जो मद्रास सभा के प्रबंधक थे
उनके द्वारा सूचना मिली ;
पांडिच्चेरी शाखा में हुई मेरी नियुक्ति;
आठ महीने की नौकरी
इस्तीफा करके चला
मेरे शहर पलनी को ;
भगवान ने भागीरथ प्रयत्न करने पर भी
भगा दिया चेन्नई;
वेस्ली स्कूल के चार साल की नौकरी आराम से बीता;
स्कूल जाता; छात्र बंद; स्कूल बंद ; वेतन पक्का ;
तब से श्री वेंकटेश्वर जी ,तिरुमलै बालाजी की पूरी कृपा मुझपर लग गयी;
वेस्ली के शेल्वादास जो बी;टी ;विज्ञान के मुझे एम् .ए;पढने की प्रेरणा डी;
सौ रूपये छूट परीक्षा शुल्क सहित ,
दो सौ रूपये में एम् .ए;

मेहनत करने की शक्ति
,बुद्धी दोनों दीं भगवान गोविन्दजी ने;

तभी स्कूल में हायर सेकंडरी का परिचय;
एम्.ए के  परीक्षा फल  के आते ही
 हिन्दू स्कूल में स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक;

फिर क्या एक भाग्यवान प्रचारक केलिए;

मैं जितना हो सके उतना सत्य का पालन किया .

भले ही लौकिकता के कारण
कुछ झूठों को साथ देना पड़ा;
हिन्दू एजुकेशनल आर्गेनाईजेशन एक मामूली संगठन नहीं,

बड़े तीव्र मेधावी अटर्नी जनरल परासरण समान दिग्गज
 न केवल ज्ञान के
लक्ष्मी के वर-पुत्र ;
सत्कैंकर्य शिरोमणि एन.सी राघवाचार्य ,
प्रतिभाशाली वकील अध्यक्ष थे .
प्रसिद्ध ऐ/ए/एस/  ऐ.पि. एस ., सदस्य सचिवगण;
ऐ.ये.यस . बी. एस. राघवन .एम्.ओ .पार्थसारथी ऐयांगार ,
डाक्टर  गणेशन , सीनियर एडवोकेट   एम्.ये. राजगोपालन
आदि  .केवल यही नहीं , सिल्वार्तंग श्रीनिवास शास्त्रियार
प्रधान अध्यापक पद पर थे.

अध्यापक संघ की ओर से हर साल बालाजी दर्शन;

मेरे सह -अध्यापक कितने मिलनसार ,
कितने सहृदय दानी ,मित्रता के प्रतीक
उस संस्था ने मुझे प्रधान अध्यापक पद पर बिठा दिया;

हम मद्रास शहर के दो प्रचारक पि.एस .चंद्रशेखर ,सनातन धर्म स्कूल के
और मैं हिन्दू हायर सेकंडरी के दोनों को
 अपने दायरे में उच्च पद मिला;

हिन्दी प्रचारक --हेडमास्टर कौन पूछेगा या सम्मान देगा ;

 मैं भाग्यवान -सभा ने सम्मान दिया;

मद्रास प्रचारक संघ ने दिया ;
भले ही हम दूर रहे ;
अब कहिए-- मैं भाग्यवान इसलिए हूँ -
मैं एक हिंदी प्रचारक मामूली.

jay javaan jay kisaan




— thinking about the meaning of life.

Saturday, February 10, 2018

भक्ति

भक्ति  ही मनुष्य   की
 अपनी व्यक्तिगत
 मनोकामना  पूरी
करने का साधन है.
 भक्त के एकांत साधना,
 ध्यान,   प्रार्थनाएँ,
उनकी सादगी  ,सरलता,
सत्यवचन  के कारण
विजयेंद्र बनता है.
पर सांसारिक शैतानियत
मनुष्य को  भक्ति,
ध्यान, योग में
रहने न देती.

 बुद्धि  क्यों भगवान ने दी?
भ्रष्टाचार  करने के लिए?
रिश्वत के धन से जीने के लिए?
कर्तव्य न कर छुट्टी  लेकर घूमने के लिए.
सोचिए.

 विचार कीजिए.

मनुष्य क्यों धन पाकर भी
असंतुष्ट  है?  अस्वस्थ  है?

पद, अधिकार,  धन,, राजपद,
दल -बल  का कोई प्रयोजन  नहीं.


काल अंगरक्षक  के रूप में भी
आ सकता है.
 सोचिए.
 रोज पाँच मिनट ध्यान  कीजिए.
आपका मन स्वस्थ  ,
अचंचल बन जाएगा.
लौकिक इच्छाएँ
अपने आप  कम होगी.
 सत्य का आधार ही
 आपको  शांति देगी.
कर्तव्य    निस्वार्थी से निभाना है.

Wednesday, February 7, 2018

युवकों को सन्देश





— thinking about the meaning of life
.

Tuesday, February 6, 2018

बुढापा

जवानी की प्रतिबिंब दर्पण में
बुढापा खडा है सामने
वह बोल रहा है:-
जवानी दीवानी,
बुढापे में बदल गया .
 जिंदगी का यथार्थ  दिख रहा.
क्या करें ?मन तो जवानी.
अपने को ताकतवर
 मानता रहता.
 कितना इठलाता ,
अब किसका न रहा.
कहीं से गीत  ..
जिंदगी और कुछ भी नहीं,
कुछ खोकर पाना है,
कुछ पाकर खोना है.
 शैशव पाकर, खोकर बचपन.
बचपन पाकर खोकर जवानी
जवानी पाकर खोकर बुढापा
बुढापा पाकर खोकर मुक्ति.
स्वरचित अनंतकृष्णन द्वारा