Sunday, February 11, 2018

भाग्यवान

मैं हूँ एक भाग्यवान --

कैसे ?क्यों ?कहते हो ;

पूछेगा कोई तो

 मेरे उत्तर निकलेगा यों ही ---

मैं हूँ तमिलनाडु का
एक हिंदी प्रचारक;

मेरी माँ गोमतिजी
एक हिंदी प्रचारिका.
हम है प्रचारक तीव्र
 उस समय के ,
तब हिन्दी विरोध के कारण
जल रही थी गाड़ियाँ;
राजनैतिक चाल-छल में ,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव हिल रही थी;
तब मेरे हिंदी क्षेत्र प्रवेश;
महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी की
दूरदर्शिता
 महान विभूति कीआस्था में

हम भी गिलहरियों के समान
हिलते नींव को
मज़बूत बनाने में
सैकड़ों छात्रों के कंकट जोड़
 डाल रहे थे;
मेवा मिले या न मिले ,
सेवा करें तो मिलेगा संतोष;

मेरी नियुक्ति भी एक स्कूल में हुई ,

आन्दोलन के उस भयानक स्थिति में ,

हिन्दी अध्यापक के रूप में ,
जब मेरे अन्य सहपाठी थे बेकार;
हिंदी द्वि भाषा सूत्र के कारण
पाठशालाओं से तो चली ,
पर मेरे घर में तो छात्र संख्या बड़ी; बढी.

सेवा तो शर्त के अनुसार बिलकुल मुफ्त ;

एकसाल -दो साल में मिलती

एक अध्यापक विद्यालय अनुदान;

मैं और माँ भूखा -प्यासा प्रचार में लगे तो

एक आत्म -संतोष; आत्म -शान्ति -आत्म -सम्मान;

जहां भी शहर में जाए
कोई न कोई कहता "नमस्ते जी;
उस समय का वह आनंद
ब्रह्मानंद सा लगता;
प्रचार छोड़ चेन्नई में वेस्ली स्कूल में
 हिन्दी अध्यापक की नौकरी मिली
मेवा तो मिला ,सेवा सम्मान तो नहीं;
इसीलिये मैं भाग्यवान हूँ .

सत्याग्रही आचार्य जो मद्रास सभा के प्रबंधक थे
उनके द्वारा सूचना मिली ;
पांडिच्चेरी शाखा में हुई मेरी नियुक्ति;
आठ महीने की नौकरी
इस्तीफा करके चला
मेरे शहर पलनी को ;
भगवान ने भागीरथ प्रयत्न करने पर भी
भगा दिया चेन्नई;
वेस्ली स्कूल के चार साल की नौकरी आराम से बीता;
स्कूल जाता; छात्र बंद; स्कूल बंद ; वेतन पक्का ;
तब से श्री वेंकटेश्वर जी ,तिरुमलै बालाजी की पूरी कृपा मुझपर लग गयी;
वेस्ली के शेल्वादास जो बी;टी ;विज्ञान के मुझे एम् .ए;पढने की प्रेरणा डी;
सौ रूपये छूट परीक्षा शुल्क सहित ,
दो सौ रूपये में एम् .ए;

मेहनत करने की शक्ति
,बुद्धी दोनों दीं भगवान गोविन्दजी ने;

तभी स्कूल में हायर सेकंडरी का परिचय;
एम्.ए के  परीक्षा फल  के आते ही
 हिन्दू स्कूल में स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक;

फिर क्या एक भाग्यवान प्रचारक केलिए;

मैं जितना हो सके उतना सत्य का पालन किया .

भले ही लौकिकता के कारण
कुछ झूठों को साथ देना पड़ा;
हिन्दू एजुकेशनल आर्गेनाईजेशन एक मामूली संगठन नहीं,

बड़े तीव्र मेधावी अटर्नी जनरल परासरण समान दिग्गज
 न केवल ज्ञान के
लक्ष्मी के वर-पुत्र ;
सत्कैंकर्य शिरोमणि एन.सी राघवाचार्य ,
प्रतिभाशाली वकील अध्यक्ष थे .
प्रसिद्ध ऐ/ए/एस/  ऐ.पि. एस ., सदस्य सचिवगण;
ऐ.ये.यस . बी. एस. राघवन .एम्.ओ .पार्थसारथी ऐयांगार ,
डाक्टर  गणेशन , सीनियर एडवोकेट   एम्.ये. राजगोपालन
आदि  .केवल यही नहीं , सिल्वार्तंग श्रीनिवास शास्त्रियार
प्रधान अध्यापक पद पर थे.

अध्यापक संघ की ओर से हर साल बालाजी दर्शन;

मेरे सह -अध्यापक कितने मिलनसार ,
कितने सहृदय दानी ,मित्रता के प्रतीक
उस संस्था ने मुझे प्रधान अध्यापक पद पर बिठा दिया;

हम मद्रास शहर के दो प्रचारक पि.एस .चंद्रशेखर ,सनातन धर्म स्कूल के
और मैं हिन्दू हायर सेकंडरी के दोनों को
 अपने दायरे में उच्च पद मिला;

हिन्दी प्रचारक --हेडमास्टर कौन पूछेगा या सम्मान देगा ;

 मैं भाग्यवान -सभा ने सम्मान दिया;

मद्रास प्रचारक संघ ने दिया ;
भले ही हम दूर रहे ;
अब कहिए-- मैं भाग्यवान इसलिए हूँ -
मैं एक हिंदी प्रचारक मामूली.

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