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Thursday, February 22, 2018

बुढापा पाकर खोकर मुक्ति.

जवानी दीवानी, 
बुढापे में बदल गया .
जिंदगी का यथार्थ दिख रहा.
क्या करें ?मन तो जवानी. 
अपने को ताकतवर
मानता रहता.
कितना इठलाता ,
अब किसका न रहा.
कहीं से गीत ..
जिंदगी और कुछ भी नहीं,
कुछ खोकर पाना है,
कुछ पाकर खोना है.
शैशव पाकर, खोकर बचपन.
बचपन पाकर खोकर जवानी
जवानी पाकर खोकर बुढापा
बुढापा पाकर खोकर मुक्ति.
स्वरचित अनंतकृष्णन द्वारा

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