Thursday, February 22, 2018

धोखा

धोखा /ठगाना भी कहते हैं ;
धोखा देना /धोखा खाना 
दोनों में दया के पात्र 
धोखा खानेवाले हैं,
पर धोखा देनेवाले 
अति चतुर होते हैं ;
चतुर लोग भी धोखा खाते हैं.
ऐसे लोग हँस मुख होते हैं.
मधुर वचन बोलते हैं,
क्रोध न करते हैं ,
देखने में भोले भाले होते हैं .
उनका अभिनय ऐसा हैं ,
चेहरे ऐसे हैं ,
उनपर दया आती हैं ,
चतुर भी धोखा खाते हैं.
हार की जीत ,
सुदर्शन की कहानी .
साधू के घोड़े को
डाकू खड्ग सिंह
रोगी के छद्म वेश में
ले लेता है.
धोखा देता हैं.
तब साधू बाबा उससे
कहते हैं --मेरे प्रिय घोड़ा तुम्हीं रख लो .
पर किसी से न कहना --
रोगी के वेश में ठगा है;
क्योंकि कोई भी दुखी को
मदद न करेंगे.
यह तो कहानी ही रह गयी;
अब पता माँगकर ,चोरी करते हैं;
बिकुत देकर धोखा देते हैं.
मदद देकर धोखा देते हैं .
तमाशा दिखाकर धोखा देते हैं.
दस रूपये नोट नीचे डालकर
लाखों रूपये चोरी कर लेते हैं.
भगवान के नाम , प्रायश्चित के नाम भी
धोखा देते हैं;
किसी कवि ने लिखा है -
कदम कदम पर फूँक=फूंककर चलना है;
दुनिया तो अजब बाज़ार हैं.
सिनेमा का गाना याद आती है -
धोखा शब्द पढ़ते ही ,
हरे भाई ! देखते चलो,
दाए भी नहीं ,बाएं भी नहीं ,
ऊपर भी नहीं ,नीचे भी .
आगे भी नहीं ,पीछे भी .
पग -पग पर सतर्क चलना है.
चुनाव धोखा देने का परिणाम है.
उनकी होशियारी हैं ,
पिछले चुनाव के वादे को
नया जैसा बताना.
शासक दल न करते ,
विपक्षी दल आरोप लागाते
हमें चुनो, पूरा करेंगे.
पर वादा न निभाते,
पक्ष-विपक्ष दोनों ऐसे ही
ठग ते हैं , चाँदी के चंद टुकड़े लेकर
मत दाता भी उन्हीं के पिछलग्गू बनते हैं.
ठगने /ठगाने मत दाता तैयार.

No comments:

Post a Comment