देश है भारत महान.
Saturday, March 11, 2023
देश है भारत महान.
प्रेम
Friday, March 10, 2023
नारी ।
[10/03, 7:09 pm] sanantha.50@gmail.com: नारी लिखी है।और नशामुक्त भारत अभियान भी। यहाँ तमिलनाडु में हिंदी किताब की बिक्री मुश्किल है। मैं बुढापे खरीद नहीं सकता। सहयोग राशी भेजूँगा।
[10/03, 7:15 pm] sanantha.50@gmail.com: मेरा परिचय -- नाम है एस.अनंतकृष्णन. तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक. जन्म की तारीख --8-7--1950.शैक्षणिक योग्यता स्नातकोत्तर हिंदी स्नातकोत्तर शिक्षा . अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक. स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक. अनुवादक. अपनी हिंदी अपनी शैली लेखक. कवि
[10/03, 8:52 pm] sanantha.50@gmail.com: नयी लिखनी है क्या ?भाग १ में मेरी कविता है । नशा मुक्त भारत अभियान।
तीन सौ रूपयों की मज़दूरी,
दो सौ की नशीली चीजें,
पत्नी बच्चे भूखों तडपते।
सुध बुध खोकर लडकटाते।
अंग्रेज पाश्चात्य प्रभाव।
ठंड प्रदेश कम पीते वे।
भारत है गरीब देश।।
गरम देश ,
पूर्वजों ने ऋषि मुनियों ने
मानसिक शांति के लिए,
ध्यान का मार्ग दिखाया,
योग प्रणायाम जप तप का
मार्ग दिखाया.
मधुशाला लौकिक माया.
मानसिक बेचैनी मधु द्वारा अस्थाई!
बेचैनी आना हमारी भूल!
लौकिक माया मोह,
स्वास्थ्य के लिए हानियाँ।।
अल्पायु के मूल कारण।।
मधु मुक्त भारत अभियान।।
सोचो-समझो, आगे बढो।।
नशीली चीजें तजो,
परेशानी में भगवान का शरणार्थी बनो।
भगवान है प्रमाण है बुढापा,रोग, मृत्यु।
स्वरचनाकार, स्वचिंतक ,अनुवादक
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक ।
एस. अनंतकृष्णन ।
[10/03, 9:34 pm] sanantha.50@gmail.com: नारी एक गृह -प्रबंधक.
१९७० तक की नारी केवल गृह -प्रबंधक ।
सास की इच्छानुसार खाद्य-पदार्थ ।
ससुर,देवर,पति की माँग के अनुसार रसोई ।
सास का पैर दबाना, बेगार नारी ।
तडके उठना,आंगन की सफाई.
रात ग्यारह बजे तक एक एक घर के रिश्तेदार को परोसना,
बर्तन माँजना,कपडे धोना,
न ग्रैंडर,न मिक्सि,न वाशिंग मिशन ।
ससुराल ही आश्रय स्थल ।
मायके का दायित्व बेटी की शादी तक।.
आधुनिक नारियाँ स्नातक,स्नातकोत्तर।
पति के समान पदाधिकारी ,कमानेवाली ।
स्वाश्रित,स्वावलंबी।
कानूनी सुरक्षा। मातृसत्तात्मक हकदारी ।
सवरचित कविता ।
स्रचनाकर,स्वचिंतक, अनुवादक.
[10/03, 10:01 pm] sanantha.50@gmail.com: बहूु पत्नी
--------
एस. अनंतकृष्णन, तमिलनाडु
------------------------
रामायण काल से आज तक।
बहु पत्नी प्रथा.
आजकल कानूनी सुरक्षा ,नालायक।
तलाक की तादद बढती जाती ।
सब्रता नहीं किसी में ।
पाश्चात्य प्रभाव, पति बदलना,
पत्नी बदलना साधारण बात।
संयम्,जितेंद्रियता चित्रपट में नहीं ।
चंचल मन,चंचल तन,शिक्षा में अनुशासन नहीं ।
पुत्र -पुत्री के रहते उनको अनाथ बनाकर
दूसरा निक्काह ,तलाक
भारतीय सनातन की सीख नहीं ।
शारीरिक सुख ही प्रधान नहीं,
यही सीता,अनुसुया,नलायिनी की सीख,
पुरुषों में भी लागू न होना, बेचैनी का मूल् ।.
Tuesday, March 7, 2023
नारी और अन्य कविताएँ
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै। तमिलनाडु ।
नमस्ते वणक्कम्।
शीर्षक --नारी
विधा --अपनी हिंदी अपनीशैवी
नर दो लघु
नारी तो गुरु।
नर दो मात्राएँ।
नारी चार मात्राएँ।
नारी न तो
नर मात्रा ।
न माता की ममता।
न बहन का स्नेह।
न भाई, न भाभी,
न बुआ, न मामी ।
न दादा न दादी।
न नाना न नानी।
न परिवार।
मादा न तो न पशुओं की भीड।
रिश्तों का ताना बाना न तो
न समाज ,न देश ।
राधा के बगैर कृष्ण नहीं।
न रामायण ,न महाभारत।
न अहलिया, न शकुंतला।
न इंद्र को शाप। न मोहिना अवतार।
न शिव तांडव। न ताजमहल।
न प्यार न अंतर्राष्ट्रीय मिलन।
न पूर्ण जीवन।
स्वरचित रचना ।
----------------------------------
----------------------------------
------------------------------------
भारत भक्ति से ही सुरक्षित।
भारत भक्ति से ही सुरक्षित।
भक्ति ही त्याग का मार्ग।
भक्ति धारा में एकाग्र चित्त से बहते रहेंगे तो हमारा मन अचंचल बन यह भावना बस जाएगी कि जगत मिथ्या है।
शरीर में बसी आत्म प्राण उड़ जाएँगे।
काम,क्रोध,मंद,लोभ
मानव चरित्र को
पशु चरित्र बना देगा।
हम मानव के गुणों की विशेषता अक्सर पशु-पक्षियों की तुलना में करते हैं। सिंह की चाल,बाज की दृष्टि, लोमड़ी की चालाकी,
भेडिये की क्रूरता,
नेवले की पकड़,
मगरमच्छ आँसू,
हाथी का बल,
नाग- सा बदले लेने की भावना,
साँप सा विषैला,
मृगनयनी,कमल नयन,
कोकिलवाणी,
स्वर्ण लता, कोमलवल्ली,
कुत्ते की कृतज्ञता,
मीन लोचनी,
बगुला भगत।
नदी पेड़ समान निष्काम जीवन,
मधु मक्खी समान परिश्रम,
चींटी सा कतार बंद अनुशासन,
कामधेनु ।
सिंहवाहिनी,
ऋषभ देव,
मयुरवाहन,
मूशिकवाहन,
गरुड़ वाहन।
सभी गुणों से मानव सुरक्षित और मिश्रित
मोम पत्ती सा त्याग,
तब तो मानव को सभी आहार,पानी,हवा,
प्रकाश,कायाकल्प,
जडी बूटियाँ प्रकृति से ही संभव है तो
हमें अपने पर्यावरण का संरक्षण सतर्कता से करना चाहिए।
प्राकृतिक संरक्षण के लिए ही ऋषि मुनि साधु संत, वन भोज,वनदर्गा,कापाली आदमखोर जानवर,जटिबूटियाँ
मंदिर आश्रम सब बने,बनाये,बनवाते।
पर स्वार्थ मानव
अपनी अस्थाई जिंदगी के ईश्वर सृष्टित सुंदर डरावने जंगल ,पशु,पक्षी ,नदी,नाले झील सबके विनाश में लगा है।
ये सभी योजना
बनाने वाले बड़े बड़े अभियंता, स्वार्थ भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरी
राजनीतिज्ञ, प्रशासक अधिकारी,शिकारी, मांसाहारी।
जनसंख्या निरोधक बड़े पापी धूल, कुरान, बाइबिल तीनों में नसीहतें हैं।
पर्यावरण संरक्षण नहीं करेंगे तो भावी पीढ़ी
दाने दाने के लिए,
पानी की बूंदों के लिए
तडपेंगी इसमें कोई शंका नहीं है।
कारखाना, शहरीकरण,
नगरविस्तार आदि शैतानियों की शक्ति का कुप्रभाव है जिसके संबंध में ही
कहानी "चैन नगर के चार बेकार".
कहानी का अंत पहले नगर में अमन चमन,एकता, प्रेम, भाईचारा, सहानुभूति,मानवता,
सत्य, ईमानदारी, वचन का पालन आदि दिव्य गुण थे, शैतान की कुदृष्टि पड़ते ही डकैती,चोरी,खून,
बेरहमी आदि बढ़ गये।
पहले परीश्रमी सुखी थे,अब बेकार सुखी,
मेहनती दुखी,भूखे।
अतः विचार प्रदूषण,
पर्यावरण प्रदूषण आदि का संरक्षण अनिवार्य है।
पैसे वकील को खूनी की रिहाई में,ठेका रिश्वत से, नौकरी जाति के आधार पर,
आजादी के सत्तर साल के बाद भी वोट के लिए पिछड़ी ,अति पिछडीऔर आदिवासी
सूची बढ़ाना,शिक्षक अमीरों का गीलाम बनना, अस्पताल के लूट, पुलिस का रिश्वत में सब विचार प्रदूषण ।
विचार प्रदूषण सभी प्रदूषणों के मूल हैं।
स्वरचित, स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
नशा मुक्त भारत अभियान।
तीन सौ रूपयों की मज़दूरी,
दो सौ की नशीली चीजें,
पत्नी बच्चे भूखों तडपते।
सुध बुध खोकर लडकटाते।
अंग्रेज पाश्चात्य प्रभाव।
ठंड प्रदेश कम पीते वे।
भारत है गरीब देश।।
गरम देश ,
पूर्वजों ने ऋषि मुनियों ने
मानसिक शांति के लिए,
ध्यान का मार्ग दिखाया,
योग प्रणायाम जप तप का
मार्ग दिखाया.
मधुशाला लौकिक माया.
मानसिक बेचैनी मधु द्वारा अस्थाई!
बेचैनी आना हमारी भूल!
लौकिक माया मोह,
स्वास्थ्य के लिए हानियाँ।।
अल्पायु के मूल कारण।।
मधु मुक्त भारत अभियान।।
सोचो-समझो, आगे बढो।।
नशीली चीजें तजो,
परेशानी में भगवान का शरणार्थी बनो।
भगवान है प्रमाण है बुढापा,रोग, मृत्यु।
स्वरचनाकार, स्वचिंतक ,अनुवादक
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक ।
एस. अनंतकृष्णन ।
नशा मुक्त भारत अभियान।
तीन सौ रूपयों की मज़दूरी,
दो सौ की नशीली चीजें,
पत्नी बच्चे भूखों तडपते।
सुध बुध खोकर लडकटाते।
अंग्रेज पाश्चात्य प्रभाव।
ठंड प्रदेश कम पीते वे।
भारत है गरीब देश।।
गरम देश ,
पूर्वजों ने ऋषि मुनियों ने
मानसिक शांति के लिए,
ध्यान का मार्ग दिखाया,
योग प्रणायाम जप तप का
मार्ग दिखाया.
मधुशाला लौकिक माया.
मानसिक बेचैनी मधु द्वारा अस्थाई!
बेचैनी आना हमारी भूल!
लौकिक माया मोह,
स्वास्थ्य के लिए हानियाँ।।
अल्पायु के मूल कारण।।
मधु मुक्त भारत अभियान।।
सोचो-समझो, आगे बढो।।
नशीली चीजें तजो,
परेशानी में भगवान का शरणार्थी बनो।
भगवान है प्रमाण है बुढापा,रोग, मृत्यु।
स्वरचनाकार, स्वचिंतक ,अनुवादक
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक ।
एस. अनंतकृष्णन ।
Sunday, March 5, 2023
अगस्त्य ज्ञान
बुद्धि द्वारा जानने -पहचाननेवाले पुण्य आत्मा ।
भूमि में वे करोडों में एक होंगे ।
भक्ति में मन नियंत्रण रखनेवाले स्थिर रहेंगे ।
मनको व्यर्थ भगानेवाले परम ज्ञानी ।
सूक्ष्म ज्ञानी का मन चलायमान नहीं होता ।
सुष्मना स्थिर हो तो मोक्ष ही है न ?
मोक्ष को जाने मैंने सूक्ष्म मार्ग बताया ।
ठगना,लूट -मार हत्या न किया करो ।
आग -बबूला होने को स्थगित रखो ।
जग में केवल पुण्य कर्म ही करो ।
जग में जीने की राहें जानने
चार वेदों की हुई सृष्टियाँ ।
मार्गदर्शिका ।
सोचो -विचारो,जानो -समझो ।।
वेद हैं चार,पढो,देखो,
आसक्त रहने बंधन अनेक ।
हर एक को जीने का मार्ग हैं,
वेदों के मात्र के पारायण से
ईश्वरीय अनुग्रह नहीं मिलता ।
गली गली रथ की बातें करेंगे, पर
ईश्वरीय स्थिति प्राप्त नहीं करेंगे ।
कौन अमर स्थिति प्राप्त करेंगे?
करोडों में एक ही होंगे ,
इसमें आश्चर्य की बात क्या ?
ईश्वर एक ही मानकर
प्रार्थना करनी चाहिए ।
भूमि में उत्तम बनकर जीना चाहिए ।
मौसमी फसल उगाना चाहिए ।
व्यर्थ ही मन न बहकाने वाले,
परम ज्ञानी होता है ।
करोडों चोर चलते फिरते रहेंगे ।
देश में करोडों चोर ।
कई करोड चोर आएँगे ही,
वाग्जाल करनेवाले भी चोर डाकू है न ?
खुदको अपने को ईश्वर मानकर,
माता-पिता संभोग करते समय,
मैं हूँ कहकर गर्भ धारण करनेवाले,
लोक नाथ की स्तुति करो ।
शासक चोर को मालूम है ,
करोडों में एक होगा ही ।
मन में सवाल करके समझना चाहिए,
लोगों की अमरता मोक्ष ही है ।
मोक्ष प्राप्त करने का सूक्ष्म पूछो।
पूर्वजों से पूछो। कुल गुरुओं से पूछो ।
सबके शरीर और प्राण कहाँ गये ?
जो कुछ बोलते हैं सब के सब हैं माया ।
जो बकते हैं ,विलाप करते हैं ,
कोई भी यहाँ स्थाई नहीं ।
साँस के रुकते ही शरीर के साथ
सब चले गये ।
प्राण चले गये,उसे किसीने
न देखा न जाना।
नश्वर शरीर , नश्वर जग
वेद शास्त्र का ज्ञान
सब बेकार ।
प्रोण पखेरु उड जाने को
कोई ज्ञान रोकता नहीं ।
सूक्ष्म ईश्वर की क्रीडा जान,
उसी के नाम जप में लीन होना बेहतर ।.
देखो, संसार में सृष्टियाँ अनेक करोड ।
विविध सृजन सृजनहार की लीलाएँ।
कोई भी शाश्वत नहीं, यही सत्य शाशवत।
मनुष्य है तो सत्य बोलना चाहिए ।
भूल मत करना,
चांडाल का काम मत करना
नित्य कर्म अनुष्ठान न तजना ।
बुद्धि भ्रष्ट करने न देना ।
झूठ मत बोलना ।
पुण्य कर्म करना न भूलना।न लडना , न झगडना।
कंजूस बनकर न चलना - न घूमना ।
मन पवित्र हो तो मंत्र जपो ।
मन पवित्र होने वायु का नियंत्रण करो ।
वायु नियंत्रण से प्राण नियंत्रण ,
प्राण के नियंत्रण से मन नियंत्रण,
मन की पवित्रता से तेरा ही शब्द मंत्र हो जाता ।
மூலமதை யறிந்தக்கால் யோக மாச்சு
முறைமையுடன் கண்டக் கால் வாதமாச்சு;
சாலமுடன் கண்டவர்முன் வசமாய் நிற்பார்
சாத்திரத்தைச் சுட்டெறிந்தாலவனே சித்தன்;
சீலமுள்ள புலத்தியனே! பரம யோகி
செப்புமொழி தவறாமல் உப்பைக் கண்டால்
ஞானமுள்ள எந்திரமாஞ் சோதி தன்னை
நாட்டினால் சகலசித்தும் நல்கும் முற்றே.
பாரப்பா சீவன்விட்டுப் போகும் போது
பாழ்த்தபிணங் கிடக்கு தென்பார்; உயிர்போச் சென்பார்;
ஆரப்பா அறிந்தவர்கள்? ஆரும் இல்லை
ஆகாய சிவத்துடனே சேரு மென்பார்;
காரப்பா தீயுடன் தீச் சேரு மென்பார்
கருவறியா மானிடர்கள் கூட்ட மப்பா!
சீரப்பா காமிகள்தா மொன்றாய்ச் சேர்ந்து
தீயவழி தனைத்தேடிப் போவார் மாடே.
மாடுதா னானாலும் ஒருபோக் குண்டு
மனிதனுக்கோ அவ்வளவுந் தெரியா தப்பா!
நாடுமெத்த நரகமென்பார்; சொர்க்க மென்பார்
நல்வினையோ தீவினையோ எண்ண மாட்டார்;
ஆடுகின்ற தேவதைகள் அப்பா! கேளு
அரியதந்தை யினஞ்சேரு மென்றுந் தோணார்;
சாடுமெத்த பெண்களைத்தான் குறிப்பா யெண்ணித்
தளமான தீயில்விழத் தயங்கி னாரே;
தயங்காமற் பிழைப்பதற்கே இந்த ஞானம்
சார்வாகப் பாராட்டும் ஞானம் வேறே;
மயங்குதற்கு ஞானம்பார் முன்னோர் கூடி
மாட்டினார் கதைகாவ்ய புராண மென்றும்
இயலான ரசந்தனிலீப் புகுந்தாற் போலும்
இசைத்திட்டார் சாத்திரங்க ளாறென் றேதான்;
வயலான பயன்பெறவே வியாசர் தாமும்
மாட்டினார் சிவனாருத் தரவினாலே.
உத்தார மிப்படியே புராணங் காட்டி
உலகத்தில் பாரதம்போல் கதையுண் டாக்கிக்;
கர்த்தாவைத் தானென்று தோண வொட்டாக்
கபடநா டகமாக மேதஞ் சேர்த்துச்
சத்தாக வழியாகச் சேர்ந்தோர்க் கெல்லாஞ்
சதியுடனே வெகுதர்க்கம் பொருள்போற் பாடிப்
பத்தாகச் சைவர்க்கொப் பனையும் பெய்து
பாடினார் சாத்திரத்தைப் பாடினாரே.
பாடினதோர் வகையேது? சொல்லக் கேளு
பாரதபு ராணமென்ற சோதி யப்பா!
நீடியதோர் ராவணன்தான் பிறக்க வென்றும்
நிலையான தசரதன்கை வெல்ல வென்றும்
நீடியவோ ராசனென்றும் முனிவ ரென்றும்
நிறையருள்பெற் றவரென்றுந் தேவ ரென்றும்
ஆடியதோர் அரக்கரென்றும் மனித ரென்றும்
பாடினார் நாள்தோறும் பகையாய்த் தானே.
கழிந்திடுவார் பாவத்தா லென்று சொல்லும்
கட்டியநால் வேதமறு சாத்தி ரங்கள்
அழிந்திடவே சொன்னதல்லால் வேறொன் றில்லை
அதர்ம மென்றுந் தர்மமென்றும் இரண்டுண் டாக்கி
ஒழிந்திடுவா ரென்றுசொல்லிப் பிறப்புண் டென்றும்
உத்தமனாய்ப் பிறப்பனென்று முலகத் தோர்கள்
தெளிந்திடுவோர் குருக்களென்றுஞ் சீட ரென்றும்
சீவனத்துக் கங்கல்லோ தெளிந்து காணே!
பூரணமே தெய்வமென உரைத்தா ரையா
பூரணத்தை யின்ன தென்று புகல வேண்டும்
காரணத்தைச் சொல்லுகிறேன்; நினைவாய்க் கேளு
கலையான பதினாறும் பூரணமே யாகும்.
மாரணமா முலகத்தில் மதிம யங்கி
மதிகெட்டுப் பூரணத்தை யிகழ்ந்தா ரையா!
வாரணத்தை மனம்வைத்துப் பூரணத்தைக் காத்தால்
வாசியென்ற சிவயோக வாழ்க்கை யாச்சே.
ஆச்சப்பா இந்த முறை பதினெண் பேரும்
அயன்மாலும் அரனோடுந் தேவ ரெல்லாம்
மூச்சப்பா தெய்வமென்றே யறியச் சொன்னார்
முனிவோர்கள் இருடியரிப் படியே சொன்னார்;
பேச்சப்பா பேசாமல் நூலைப் பார்த்துப்
பேரான பூரணத்தை நினைவாய்க் காரு;
வாச்சப்பா பூரணத்தைக் காக்கும் பேர்கள்
வாசிநடு மையத்துள் வாழ்வார் தானே.
தானென்ற பெரியோர்க ளுலகத் துள்ளே
தாயான பூரணத்தை யறிந்த பின்பு
தேனென்ற அமுதமதைப் பானஞ் செய்து
தெவிட்டாத மவுனசிவ யோகஞ் செய்தார்;
ஊனென்ற வுடலைநம்பி யிருந்த பேர்க்கே
ஒருநான்கு வேதமென்றும் நூலா றென்றும்;
நானென்றும் நீயென்றும் சாதி யென்றும்
நாட்டினா ருலகத்தோர் பிழைக்கத்தானே.
பிழைப்பதற்கு நூல்பலவுஞ் சொல்லா விட்டால்
பூரணத்தை யறியாம லிருப்பா ரென்றும்
உழைப்பதற்கு நூல்கட்டிப் போடா விட்டால்
உலகத்திற் புத்திகெட்டே யலைவா ரென்றும்
தழைப்பதற்குச் சாதியென்றும் விந்து வென்றும்
தந்தைதாய் பிள்ளையென்றும் பாரி யென்றும்
உழைப்பதற்குச் சொன்னதல்லாற் கதிவே றில்லை
உத்தமனே யறிந்தோர்கள் பாடி னாரே.
பாடினா ரிப்படியே சொல்லா விட்டால்
பரிபாடை யறியார்கள் உலக மூடர்;
சாடுவார் சிலபேர்கள் பலநூல் பார்த்துத்
தமைமறந்து படுகுழியில் விழுவார் சாவார்;
வாடுவார் நாமமென்றும் ரூப மென்றும்
வையகத்திற் கற்செம்பைத் தெய்வமென்றும்
நாடுவார் பூரணத்தை யறியா மூடர்
நாய்போல குரைத்தல்லோ வொழிவார் காணே.
காணாமல் அலைந்தோர்கள் கோடா கோடி
காரணத்தை யறிந்தோர்கள் கோடா கோடி;
வீணாகப் புலம்பினதா லறியப் போமோ?
விஞ்ஞானம் பேசுவதும் ஏதுக்காகும்?
கோணாமற் சுழுமுனையில் மனத்தை வைத்துக்
குருபாத மிருநான்கில் நாலைச் சேர்த்து
நாணாம லொருநினைவாய்க் காக்கும் போது
நாலுமெட்டு மொன்றாகும் நாட்டி யூதே;
ஊதியதோ ரூதறிந்தா லவனே சித்தன்
உத்தமனே பதினாறும் பதியே யாகும்
வாதிகளே யிருநான்கும் பதியின் பாதம்
வகைநான்கு முயிராகும் மார்க்கங் கண்டு
சோதிபரி பூரணமும் இவைமூன் றுந்தான்
தூங்காமற் றூங்கியங்கே காக்கும்போது
ஆதியென்ற பராபரைய மரனு மொன்றாய்
அண்ணாக்கின் வட்டத்துள் ளாகும் பாரே.
பாரப்பா உதயத்தில் எழுந்தி ருந்து
பதறாமற் சுழுமுனையில் மனத்தை வைத்துக்
காரப்பா பரிதிமதி யிரண்டு மாறிக்
கருவான சுழுமுனையில் உதிக்கும் போது
தேரப்பா அண்ணாக்குள் நின்று கொண்டு
தியங்காமற் சுழுமுனைக்குள் ளடங்கும் பாரு;
சீரப்பா பதினாறில் எட்டும் நான்கும்
சிதறாமல் மூன்றும் ஒன்றாய்ச் சேர்ந்து போமே.
ஒன்றான பூரணமே யிதுவே யாச்சு
உதித்தகலை தானென்று மிதுவே யாச்சு
நன்றாகத் தெளிந்தவர்க்கு ஞானஞ் சித்தி
நாட்டாமற் சொன்னதனால் ஞான மாமோ?
பன்றான வாதிகுரு சொன்ன ஞானம்
பரப்பிலே விடுக்காதே பாவ மாகும்;
திண்டாடு மனத்தோர்க்குக் காணப் போகா
தெளிந்தவர்க்குத் தெரிவித்த வுகமை தானே.
உகமையின்னஞ் சொல்லுகிறேன் உலகத் துள்ளே
உவமையுள்ள பரிகாசம் நனிபே சாதே;
பகைமை பண்ணிக் கொள்ளாதே; வீண்பே சாதே
பரப்பிலே திரியாதே; மலையே றாதே;
நகையாதே சினங்காதே யுறங்கி டாதே
நழுவாதே சுழுமுனையிற் பின்வாங்காதே;
செகமுழுதும் பரிபூரண மறிந்து வென்று
தெளிந்துபின் யுலகத்தோ டொத்து வாழே!
வாழாமல் உலகம்விட்டு வேடம் பூண்டு
வயிற்றுக்கா வாய்ஞானம் பேசிப் பேசித்
தாழ்வான குடிதோறும் இரப்பான் மட்டை
தமையறியாச் சண்டாளர் முழுமா டப்பா!
பாழாகப் பாவிகளின் சொற்கே ளாதே
பதறாதே வயிற்றுக்கா மயங்கிடாதே;
கேளாதே பேச்செல்லாங் கேட்டுக் கேட்டுக்
கலங்காதே யுடலுயிரென் றுரைத்தி டாதே.
உடலுயிரும் பூரணமும் மூன்று மொன்றே
உலகத்திற் சிறிதுசனம் வெவ்வேறென்பார்;
உடலுயிரும் பூரணமும் ஏதென் றக்கால்
உத்தமனே பதினாறு மொருநான் கெட்டும்
உடலுயிரும் பூரணமும் அயன்மா லீசன்
உலகத்தோ ரறியாமல் மயங்கிப் போனார்;
உடலுயிரும் பூரணடி முடியு மாச்சே
உதித்தகலை நிலையறிந்து பதியில் நில்லே.
பதியின்ன இடமென்ற குருவைச் சொல்லும்
பரப்பிலே விள்ளாதே தலையிரண்டாகும்
விதியின்ன விடமென்று சொல்லக் கேளு
விண்ணான விண்ணுக்கு ளண்ணாக் கப்பா!
மதிரவியும் பூரணமுங் கண்வாய் மூக்கும்
மகத்தான செவியோடு பரிச மெட்டும்
பதியவிடஞ் சுழுமுனையென் றதற்குப் பேராம்;
பகருவார் சொர்க்கமும் கயிலாச மென்றே.
கயிலாசம் வைகுந்தந் தெய்வ லோகம்
காசின்யா குமரி யென்றுஞ் சேது வென்றும்
மயிலாடு மேகமென்றும் நரக மென்றும்
மாய்கையென்றும் மின்னலென்றும் மவுன மென்றும்
துயிலான வாடையென்றும் சூட்ச மென்றும்
சொல்லற்ற இடமென்றும் ஒடுக்கம் என்றும்
தயிலான பாதமென்றும் அடி முடி என்றும்
தாயான வத்துவென்றும் பதியின் பேரே.
பேருசொன்னேன்; ஊர்சொன்னேன் இடமும் சொன்னேன்;
பின்கலையும் முன்கலையும் ஒடுக்கம் சொன்னேன்;
பாருலகிற் பல நூலின் மார்க்கஞ் சொன்னேன்;
பலபேர்கள் நடத்துகின்ற தொழிலும் சொன்னேன்;
சீருலகம் இன்னதென்று தெருட்டிச் சொன்னேன்;
சித்தான சித்தெல்லாம் சுருக்கிச் சொன்னேன்;
நேருசொன்னேன் வழிசொன்னேன் நிலையுஞ் சொன்னேன்;
நின்னுடம்பை யின்னதென்று பிரித்துச் சொன்னேன்;
பிரித்துரைத்தேன் சூத்திரமீ ரெட்டுக்குள்ளே
பித்தர்களே! நன்றாகத் தெரிந்து பார்க்கில்
விரித்துரைத்த நூலினது மார்க்கஞ் சொன்னேன்;
விள்ளாதே இந்த நூலிருக்கு தென்று
கருத்துடனே அறிந்துகொண்டு கலைமா றாதே
காரியத்தை நினைவாலே கருத்திற் கொள்ளு;
சுருதிசொன்ன செய்தியெல்லாம் சுருக்கிச் சொன்னேன்;
சூத்திரம்போற் பதினாறும் தொடுத்தேன் முற்றே.
கற்பமென்ன வெகுதூரம் போக வேண்டா!
கன்மலையில் குவடுகளில் அலைய வேண்டா;
சர்ப்பமென்ன நாகமதோர் தலையில்நின்று
சாகாத கால்கண்டு முனை யிலேறி
நிற்பமென்று மனமுறுத்து மனத்தில்நின்று
நிசமான கருநெல்லிச் சாற்றைக் காணு;
சொற்பமென்று விட்டுவிட்டால் அலைந்து போவாய்;
துரியமென்ற பராபரத்திற் சென்று கூடே.
கூடப்பா துரியமென்ற வாலை வீடு
கூறரிய நாதர்மகேச் சுரியே யென்பார்;
நாடப்பா அவள் தனையே பூசை பண்ணு;
நந்திசொல்லுஞ் சிங்காரந் தோன்றுந் தோன்றும்;
ஊடப்பா சிகாரவரை யெல்லாந் தோன்றும்;
ஊமையென்ற அமிர்தவெள்ளம் ஊற லாகும்;
தேடப்பா இதுதேடு காரிய மாகும்;
செகத்திலே இதுவல்லோ சித்தி யாமே.
ஆமென்ற பூர்ணஞ்சுழி முனையிற் பாராய்;
அழகான விந்துநிலை சந்த்ர னிற்பார்
ஓமென்ற ரீங்காரம் புருவ மையம்
உத்தமனே வில்லென்ற வீட்டிற் காணும்;
வாமென்ற அவள்பாதம் பூசை பண்ணு;
மற்றொன்றும் பூசையல்ல மகனே! சொன்னேன்;
பாமென்ற பரமனல்லோ முதலெ ழுத்தாம்;
பாடினேன் வேதாந்தம் பாடினேனே.
பாடுகின்ற பொருளெல்லாம் பதியே யாகும்;
பதியில்நிற்கும் அட்சரந்தான் அகார மாகும்;
நாடுகின்ற பரமனதோங் கார மாகும்;
நலம் பெரிய பசுதானே உகாரமாகும்;
நீடுகின்ற சுழுமுனையே தாரை யாகும்;
நின்றதோர் இடைகலையே நாதவிந்தாம்;
ஊடுகின்ற ஓங்கார வித்தை யாகும்
ஒளியான அரியெழுத்தை யூணிப் பாரே.
ஊணியதோர் ஓங்காரம் மேலு முண்டே
உத்தமனே சீருண்டே வூணிப்பாரே;
ஆணியாம் நடுநாடி நடுவே மூட்டும்
ஆச்சரிய வெழுத்தெல்லாம் அடங்கி நிற்கும்
ஏணியா யிருக்குமடா அஞ்சு வீடே
ஏகாந்த மாகியவவ் வெழுத்தைப் பாரு;
தோணிபோற் காணுமடா அந்த வீடு;
சொல்லாதே ஒருவருக்குந் துறந்திட்டேனே.
துறந்திட்டேனே மேல்முலங் கீழ்மூ லம்பார்;
துயரமாய் நடுநிலையை யூணிப் பாராய்;
அறைந்திட்டேன் நடுமூலம் நடுநா டிப்பார்;
அப்பவல்லோ வரைதாக்கும் தாரை காணும்;
உறைந்திட்ட ஐவருந்தான் நடனங் காணும்
ஒளிவெளியும் சிலம்பொலியு மொன்றாய்க் காணும்
நிறைந்திட்ட பூரணமு மிதுதா னப்பா!
நிசமான பேரொளிதான் நிலைத்துப் பாரே.
சும்மா நீ பார்க்கையிலே மனத்தை யப்பா
சுழுமுனையி லோட்டியங்கே காலைப் பாராய்;
அம்மாநீ தேவியென்று அடங்கிப் பாராய்;
அப்பவல்லோ காயசித்தி யோகசித்தி;
உம்மாவும் அம்மாவும் அதிலே காணும்;
ஒருமனமாய்ச் சுழுமுனையில் மனத்தை யூன்று;
நம்மாலே ஆனதெல்லாஞ் சொன்னோ மப்பா!
நாதர்களி லிதையாரும் பாடார் காணே!
காணுகின்ற ஓங்கார வட்டஞ் சற்றுக்
கனலெழும்பிக் கண்ணினிலே கடுப்புத் தோன்றும்;
பூணுகின்ற இடைகலையில் பரம்போ லாடும்
பொல்லாத தேகமென்றால் உருகிப் போகும்
ஆணவங்களான வெல்லா மழிந்து போகும்
அத்துவிதத் துரியாட்ட மாடி நிற்கும்;
ஊணியதோ ரெழுத் தெல்லாந் தேவி யாகும்;
ஓங்காரக் கம்பமென்ற உணர்வு தானே.
உணர்வென்றாற் சந்திரனி லேறிப் பாவி
ஓடியங்கே தலையென்ற எழுத்தில் நில்லே;
அணுவென்றால் மனையாகுஞ் சிவனே யுச்சி
அகாரமென்ன பதியுமென்ன சூட்ச மாகும்;
கணுவென்ன விற்புருவ மகண்ட வீதி;
கயிலாய மென்றதென்ன பரத்தின் வீடு;
துணுவென்ற சூரியன்றன் நெருப்பைக் கண்டு
தூணென்ற பிடரிலே தூங்கு தூங்கே.
மூவெழுத்தும் ஈரெழுத்தும் மாகி நின்ற
மூலமதை யறிந்துரைப் போன் குருவுமாகும்;
ஊவெழுத்துக் குள்ளேதா னிருக்கு தப்பா
உணர்வதுவே கண்டறிந்தோன் அவனே ஆசான்;
யாவருக்குந் தெரியாதே அறிந்தோ மென்றே
அவரவர்கள் சொல்வார்க ளறியா மூடர்;
தேவரோடு மாலயனுந் தேடிக் காணார்
திருநடனங் காணமுத்தி சித்தியாமே.
ஈரெழுத்து மோரெழுத்து மாகி யாங்கே
இயங்கிநிற்கும் அசபையப்பா மூலத்துள்ளே
வேரெழுத்தும் வித்தெழுத்தும் இரண்டுங் கொண்டு
வித்திலே முளைத்தெழுந்து விளங்கி நிற்கும்
சீரெழுத்தை யூணிநல்ல வாசி யேறித்
தெரு வீதி கடந்தமணி மண்டபத்துச்
சாரெழுத்தி னுட்பொருளாம் பரத்தை நோக்கிச்
சார்ந்தவர்க்குச் சித்திமுத்தி தருமே தானே.
ஏகமெனு மோரெழுத்தின் பயனைப் பார்த்தே
எடுத்துரைத்து மிவ்வுலகி லெவரு மில்லை.
ஆகமங்கள் நூல்கள்பல கற்றுக் கொண்டே
அறிந்தமென்பார் மவுனத்தை அவனை நீயும்
வேகாச்சா காத்தலைகால் விரைந்து கேளாய்;
விடுத்ததனை யுரைப்பவனே ஆசா னாகும்;
தேகமதி லொரெழுத்தைக் காண்போன் ஞானி;
திருநடனங் காணமுத்தி சித்தி யாமே.
குருவாக உமைபாக னெனக்குத் தந்த
கூறரிய ஞானமது பத்தின் மூன்று
பொருளாகச் சொல்லி விட்டேனப்பா நீதான்
பொருளறிந்தாற் பூரணமும் பொருந்திக் காணே
அருளாகா திந்நூலைப் பழித்த பேர்கள்
அருநரகிற் பிசாசெனவே அடைந்து வாழ்வார்
அருளாக ஆராய்ந்து பார்க்கும் பேர்கள்
ஆகாயம் நின்றநிலை அறியலாமே.
agasthiyar Couplet,அகஸ்தியர் சித்தர் பாடல்,சித்தர் பாடல்கள்,Siddhar Couplet,Tamil Tutorial,Siddhar Songs,Tamil Songs,agathiyar padalgal in tamil lyrics,devotional songs,Poet agathiyar siddhar,agasthiyar siddhar
- சித்தர் பாடல்கள்
- அகஸ்தியர்
- அழுகணிச் சித்தர்
- அகப்பேய்ச் சித்தர் பாடல்
- இடைக்காட்டுச் சித்தர் பாடல்
- கடுவெளிச் சித்தர் பாடல்
- காகபுசுண்டர்
- * காகபுசுண்டர் உபநிடதம்
- * காகபுசுண்டர் காவியம்
- * காகபுசுண்டர் குறள்
- கொங்கணச் சித்தர் பாடல்
- குதம்பைச் சித்தர்
- சட்டை முனி ஞானம்
- * முன் ஞானம்
- * பின் ஞானம்
- சிவவாக்கியர்
- பத்திரகிரியாரின் மெய்ஞ்ஞானப் புலம்பல்
- பட்டினத்தார்
- பட்டினச் சித்தர் ஞானம்
- பாம்பாட்டிச் சித்தர்
இவ்வலைத்தளத்தில் குக்கீஸ்(cookies) பயன்படுத்தப்படுகிறது. மூன்றாவது நபராகிய கூகுள் நிறுவனத்தின்(Google Analytics, Google Adsense, Youtube) சேவை மற்றும் விளம்பரத்தின் பொருட்டு குக்கீஸ்(cookies) பயன்படுத்தப்படுகிறது. மேலும் விவரமறிய வலைத்தளத்தின் உரிமை இணைப்பை சென்று பார்வையிடவும்.
भारत भक्ति से ही सुरक्षित।
भारत भक्ति से ही सुरक्षित।
भक्ति ही त्याग का मार्ग।भक्ति धारा में एकाग्र चित्त से बहते रहेंगे तो हमारा मन अचंचल बन यह भावना बस जाएगी कि जगत मिथ्या है।
शरीर में बसी आत्म प्राण उड़ जाएँगे।
काम,क्रोध,मंद,लोभ
मानव चरित्र को
पशु चरित्र बना देगा।
हम मानव के गुणों की विशेषता अक्सर पशु-पक्षियों की तुलना में करते हैं। सिंह की चाल,बाज की दृष्टि, लोमड़ी की चालाकी,
भेडिये की क्रूरता,
नेवले की पकड़,
मगरमच्छ आँसू,
हाथी का बल,
नाग- सा बदले लेने की भावना,
साँप सा विषैला,
मृगनयनी,कमल नयन,
कोकिलवाणी,
स्वर्ण लता, कोमलवल्ली,
कुत्ते की कृतज्ञता,
मीन लोचनी,
बगुला भगत।
नदी पेड़ समान निष्काम जीवन,
मधु मक्खी समान परिश्रम,
चींटी सा कतार बंद अनुशासन,
कामधेनु ।
सिंहवाहिनी,
ऋषभ देव,
मयुरवाहन,
मूशिकवाहन,
गरुड़ वाहन।
सभी गुणों से मानव सुरक्षित और मिश्रित
मोम पत्ती सा त्याग,
तब तो मानव को सभी आहार,पानी,हवा,
प्रकाश,कायाकल्प,
जडी बूटियाँ प्रकृति से ही संभव है तो
हमें अपने पर्यावरण का संरक्षण सतर्कता से करना चाहिए।
प्राकृतिक संरक्षण के लिए ही ऋषि मुनि साधु संत, वन भोज,वनदर्गा,कापाली आदमखोर जानवर,जटिबूटियाँ
मंदिर आश्रम सब बने,बनाये,बनवाते।
पर स्वार्थ मानव
अपनी अस्थाई जिंदगी के ईश्वर सृष्टित सुंदर डरावने जंगल ,पशु,पक्षी ,नदी,नाले झील सबके विनाश में लगा है।
ये सभी योजना
बनाने वाले बड़े बड़े अभियंता, स्वार्थ भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरी
राजनीतिज्ञ, प्रशासक अधिकारी,शिकारी, मांसाहारी।
जनसंख्या निरोधक बड़े पापी धूल, कुरान, बाइबिल तीनों में नसीहतें हैं।
पर्यावरण संरक्षण नहीं करेंगे तो भावी पीढ़ी
दाने दाने के लिए,
पानी की बूंदों के लिए
तडपेंगी इसमें कोई शंका नहीं है।
कारखाना, शहरीकरण,
नगरविस्तार आदि शैतानियों की शक्ति का कुप्रभाव है जिसके संबंध में ही
कहानी "चैन नगर के चार बेकार".
कहानी का अंत पहले नगर में अमन चमन,एकता, प्रेम, भाईचारा, सहानुभूति,मानवता,
सत्य, ईमानदारी, वचन का पालन आदि दिव्य गुण थे, शैतान की कुदृष्टि पड़ते ही डकैती,चोरी,खून,
बेरहमी आदि बढ़ गये।
पहले परीश्रमी सुखी थे,अब बेकार सुखी,
मेहनती दुखी,भूखे।
अतः विचार प्रदूषण,
पर्यावरण प्रदूषण आदि का संरक्षण अनिवार्य है।
पैसे वकील को खूनी की रिहाई में,ठेका रिश्वत से, नौकरी जाति के आधार पर,
आजादी के सत्तर साल के बाद भी वोट के लिए पिछड़ी ,अति पिछडीऔर आदिवासी
सूची बढ़ाना,शिक्षक अमीरों का गीलाम बनना, अस्पताल के लूट, पुलिस का रिश्वत में सब विचार प्रदूषण ।
विचार प्रदूषण सभी प्रदूषणों के मूल हैं।
स्वरचित, स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।