Tuesday, August 22, 2017

सत्य की चमक

क्या लिखूं ?
ईश्वर से प्रेरणा  न मिली ,
ईश्वर  से  संकेत न मिला
ईश्वर से ज्ञान  न मिला  तो
लिखूं  क्या?
हर बात के मूल में
आदी मूल है तो
यह नर तन का मैं
क्या लिखूं?
कहा  किसी ने करोड़  पति ,
पर  वहां एक बच्चा  पागल,
एक बड़े डाक्टर उनके बच्चे लंगड़ा
क्या लिखूं मैं
बगैर  उसकी प्रेरणा के
वज़ह हैं अनेक
संसार के सुख -दुःख का ,
यश -अपयश  का
हम हैं परेशान में
सत्य -असत्य के   मनुष्य जीवन  में ,
नश्वर जगत , चंचल मन , चंचल विचार
न जाने क्या बनता  है, बिगड़ता है
पर  वास्ताविलता के पहचान में
आरोप -प्रत्यारोप में
गलत्फह मियाँ  ही  ज्यादा .
भिखारी भी दुखी , बड़े पदाधिकारी भी दुखी
न चैन  मन , न खामोशी मन ,
दिल है तो कर सकते  हैं ,
दिल में बल है सुविचार .
सद्विचार , सत्कर्म ,सत्संग
पनपते  कहाँ ?
राजनीति में  सोचा  नहीं .
आध्यात्मिक  परिवेश में
वह  भी नहीं ,
शिक्षित समुदाय में
वह भी नहीं ,
कहीं भी नहीं तो
ईश्वर  सत्य को ऐसे बनाया ,
वह बीच , उसके इर्द गिर्द
घू मते हैं , भ्रष्टाचार ,मोह म मद , माया, ममता
लाल पन्नों के रूप में ,
बाह्याडम्बर के रूप में ,
निथ्यादाम्बर के रूप में ,
तस्करी के  रूप  में ,
फिर भी सत्य की चमक
चमकते सत्य  महिमा मानते हैं सब .
यही ईश्वरीय लीला -क्रीडाएं .

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