Friday, October 6, 2017

देश प्रेमी

प्रेमी हूँ मैं देश का ,
भारतीय संस्कृति और
त्यागमय जीवन का.
भोग माय जीवन , यथार्थता
के आधार पर बने पाश्चात्य सभ्यता,
उनमें कंचन की इच्छा नहीं ,
बच्चे भी महसूस करते हैं
मृतयु निश्चित ,
पतिव्रता के आड़ में अफवाहें
उनके लिए ला परवाही,
न छोड़ते पत्नी को जंगल में ,
न पीटते -मारते ,कष्ट देते जोरू को
जोरू राक्षशी हो तो उसके इच्छानुसार छोड़
अपने मन पसंद से जीवन बिताना
तीन -तीन शादियाँ , पारिवारिक कलह
धर्म युद्ध के नाम से ,
अपने बदले चुकाने अधर्म -धर्म की बात नहीं ,
जिओ खुशी से आदाम -एवाल के एक ही संतानें हम .
पाश्चात्य दृष्टिकोण में जीवन का वह आदर्श नहीं.
एक गुण मुझे वहाँ का पसंद हैं ,
आत्म निर्भरता. क्षमता का सम्मान. कौशल की प्रशंसा.
धार्मिक आडम्बर कम , धर्म के नाम लूटना कम.
जादू -टोंका , मन्त्र-तंत्र , हवन -यज्ञ नहीं ,
आविष्कार, जाना-कल्याण ,
यहाँ के मंदिरों के उत्सवों में बदमाशों के दल का जबरदस्त वसूल.
धर्म कर्म के नाम लुटेरों का , पियक्कड़ों के अश्लील नाच -गान
ईश्वर के जुलूस पर सब के हाथ में लाठी -हथियार,
मनमाना अश्लीली संकेत , यह धर्म बाह्य अश्लीली
भारतीय धार्मिक आचरण मुझे ज़रा भी पसंद नहीं .



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