प्रेमी हूँ मैं देश का ,
भारतीय संस्कृति और
त्यागमय जीवन का.
भोग माय जीवन , यथार्थता
के आधार पर बने पाश्चात्य सभ्यता,
उनमें कंचन की इच्छा नहीं ,
बच्चे भी महसूस करते हैं
मृतयु निश्चित ,
पतिव्रता के आड़ में अफवाहें
उनके लिए ला परवाही,
न छोड़ते पत्नी को जंगल में ,
न पीटते -मारते ,कष्ट देते जोरू को
जोरू राक्षशी हो तो उसके इच्छानुसार छोड़
अपने मन पसंद से जीवन बिताना
तीन -तीन शादियाँ , पारिवारिक कलह
धर्म युद्ध के नाम से ,
अपने बदले चुकाने
अधर्म -धर्म की बात नहीं ,
जिओ खुशी से आदाम -एवाल के
एक ही संतानें हम .
पाश्चात्य दृष्टिकोण में
जीवन का वह आदर्श नहीं.
एक गुण मुझे वहाँ का पसंद हैं ,
आत्म निर्भरता.
क्षमता का सम्मान.
कौशल की प्रशंसा.
धार्मिक आडम्बर कम ,
धर्म के नाम लूटना कम.
जादू -टोंका ,
मन्त्र-तंत्र ,
हवन -यज्ञ नहीं ,
आविष्कार, जाना-कल्याण ,
यहाँ के मंदिरों के उत्सवों में
बदमाशों के दल का
जबरदस्त वसूल.
धर्म कर्म के नाम लुटेरों का ,
पियक्कड़ों के अश्लील नाच -गान
ईश्वर के जुलूस पर सब के हाथ में लाठी -हथियार,
मनमाना अश्लीली संकेत ,
यह धर्म बाह्य अश्लीली
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