नमस्ते वणक्कम्।
साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को नमस्कार वणक्कम्।
१५-१२-२४.
विषय --झुकने से कभी छोटा नहीं होता।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली
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झुकना विनम्रता के प्रतीक।
राजा के सामने झुककर प्रणाम करते हैं।
झुकना आदर से तो वह आदरणीय व्यक्ति।
झुकना अपमान के कारण तो वह अनादरणीय।
पेड़ सिर तानकर खड़ा है तो बाढ़ में गिरता है।
विनम्र घास झुककर बाढ़ के बाद भी
सिर तानकर खड़ा है।
विद्या विनयं दताती।
विनयशीलता महानों के लक्षण।
विष्णु भगवान को भृगु मुनि ने लात मारी।
छिमा बडन को चाहिए छोटन का उत्पात्।।
विष्णु का नाम घटा नहीं बढ़ा।
झुकना गर्व है पर मनसा वाचा कर्मणा
श्रेष्ठ सोच विचार दान धर्म से।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता
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