साहित्य बोध जम्मू-कश्मीर इकाई को नमस्ते। वणक्कम्।
शीर्षक --आशा ही निराशा करती।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र।
6-1-25.
रत्नाकर डाकू राम राम करके
आदी कवि वाल्मीकि बना।
यह उनका ही जन्मफल है।
उनके जैसे राम राम जपने से
सब के सब महा कवि बन नहीं सकते।
आशा निराशा हो सकती है।
कर्वव्य करो , भरोसा रखो
भगवान देगा साथ।
यह है गीता सार।
हर एक को एक शक्ति है
कवि चित्रकार नहीं बन सकता।
चित्रकार कवि नहीं बन सकता।
अपने को पहचानो,
अपने पर आशा रखो।
अपनी क्षमता, अपना कौशल जानो।
आशा रखो निराशा असंभव।
आत्मनिर्भरता देंगी आत्मविश्वास।
तन मन धन ईश्वरीय देन।
पर कर्म करना मानव धर्म।
कैवल आशा निराशा ही देगी।
आशा की कामयाबी,
अध्यवसाय से संबंधित।
आशा हवामहल बनाने से
निराशा ही होगी जान।
करत करत अभ्यास करत जगमति होत सुजान ।
आशा रखो अभ्यास पर
कभी न वह निराशा होगी।
गुप्त जी का संबोधन --
नर हो न निराशा करो मन को।
कुछ करो , निराशा न होगी आशा
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।
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