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Thursday, November 14, 2019

प्रेम और तपस्या

नमस्ते।वणक्कम।
प्रेम स्थाई या अस्थाई
पर व्यस्त ,
तपस्या का उददेश्य
प्रेम  लक्ष्य।
तपस्या करने
गुरु चाहिए।
प्रेम स्वत:सिद्ध।
राम नाम उपदेश तपस्या।
बगैर उपदेश प्रेम।
क्षणिक प्रेम।
स्थाई प्रेम
तन प्रेम।
धन प्रेम
मन प्रेम।
देश प्रेम।
स्वार्थ प्रेम
निस्वार्थ प्रेम।
लेन देन प्रेम।
एक पक्ष प्रेम।
द्वि पक्ष प्रेम।
त्याग्मय प्रेम भोगमय प्रेम ।
तपस्या कहीं अन्धेरे में।
ईश्वर साक्षात्कार के लिए।
प्रेम की कथा प्रचलित।
तपस्वियों की कथा अप्रचलित।
प्रेम संकीर्ण फिर भी मोहक।
तपस्या जग कल्याण
  पर मोहता सोहता नहीं।
लाली मेरे लाल की
जित देखो तित लाल।
पर तपस्या आँखें  मूंद।
प्रेम क्रिया प्रधान।
तपस्या  में
अकेलापन /एकान्त।
प्रेम संकीर्ण।
ऋषी गण पर प्रेमगण  नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

बाल दिवस

प्रणाम।
बाल दिवस।
आज के बालक
भविष्य के शासक,
प्रशासक,
अभियंता,
चिकित्सक,
देश के रक्षक
देश के निर्माता
अत:चाचा नेहरू ,
अब्दुल कलाम
कर्मवीर काला गाँधी कामराज
आदि दूरदर्शी नेताओं का ध्यान
बच्चों की प्रगति केंद्रित।
आजकल चित्रपट प्रधान
अश्लील नाच
उत्तर भारत कैसा है
स्कूल के वार्षिकोत्सव पता नहीं
तमिलनाडू में चित्रपट गीत  नाच।
स्कूल-कालेज के कार्यक्रमों में
चित्रपट के संवाद।
मूल उद्देश्य भूल
अनुशासन हीन  शिक्षा।
बाल दिवस बालों की उन्नति  के लिए
चरित्र अनुशासन की प्राथमिकता।
पैसे को ही शिक्षा
पैसे दिखाओ  शिक्षक दास।
नकली छात्र परीक्षा देने
खेद के समाचार।
शिक्षक को मारना,
शिक्षक का अपमान।
शिक्षकों का बद व्यवहार।
आज के बाल दिवस ऐसा
मनाना जिससे बालकों की
चाल चलन सुधर जाएं ।
अनुशासन हीन समचार न प्रकाशित हो
बालकों को सुभाशीष।

Monday, November 11, 2019

बचपन

प्रणाम।वणक्कम

पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।

Friday, November 8, 2019

अभिमान की बात

चार आदमी
आज चार चक्र
 एक आदमी।
शव उठाने काल परिवर्तन ।
 कन्धा देने
कन्धा बदलने की
जरूरत नहीं।
सम्मिलत परिवार नहीं,
सोचते हैं पर वानप्रस्थ,
सन्यासी जीवन हैं  हमारा।
 ऐसी परम्परागत विचार में,
वृद्धाश्रम तो बढिया।
वह सन्तान
 बहु, बेटी, प्रशंसा के पात्र हैं ,

जो अपने वृद्ध माता -पिता को
वृद्धाश्रम में  छोडकर
 मासिक शुल्क अदा करके
कभी कभी मिलने आते हैं।
घर में रखकर सताने से
यह तो वृद्धों के लिए
अभिमान की बात ।

अभिमान

प्रणाम।
भगवान से प्रार्थना।
भवसागर  पार करने
भगवान का अनुग्रह चाहिए।
जन्म,जीवन,मरण ।
अभिमान क्या है?
स्वाभिमान !⁹
मनुष्य का सक्रिय जीवन
साठ  साल तक।
सब में  अपवाद हैं।
हज़ोरों में दस-बीस अपने बुढापे भी
सक्रिय रह्ते हैं।
जीवन में बीस साल
ज्ञानार्जन में बीत जाता हैं।
इस काल में
आत्म संयम,आत्मानुशासन ,
जितेंद्रियता अत्यंत आवश्यक हैं।

  आधुनिक वैज्ञानिक मनोरंजन के साधन
भलाई बुराई मिश्रित चित्रण में,
बुराई ज्यादा,भलाई कम ।

तब मनुष्य स्वभाव
बुराई को आसान से
पकड लेता है।
तब चरित्र निर्माण में बाधाएं होती हैं।
25 साल में ही युवा युवती अपनी
शक्ति खो बैठते हैं।
तीस साल की शादी में
अतृप्त गृहस्थ जीवन
गैर कानूनी  सम्बंध रखने में विवश।
तलाक के मुकद्दमे बढते जाते हैं।
हत्या,आत्महत्या,तेजाब फेंकना आदि
खबरें निकलती रह्ती हैं।
  शासक,आश्रमके आचार्य,शिक्षक,शिक्षार्थी
सब में आत्म संयम की कमी के
समाचार निकलते रहते हैं।
ये सब त्रेतयग,
द्वापर युग,
कलियुग तीनों में
पाते हैं।
पर कलियुग में संख्या ज्यादा हो रही हैं ।
रावण सीता को ले जाना - रामायण।
शिव,विष्णु,कार्तिक का प्रेम विवाह पुराण,
भीष्म का तीन राज्कुमारियो को
 जबर्दस्त उठालाना महाभारत।
आधुनिक काल में
ऐसी बातें रोज समाचार पत्र में।
  अस्थिर जीवन,नश्वर दुनिया, मरण निश्चित जीवन।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
अपना अपना भाग्य
यही मानव जीवन।
 आज सुबह मन में उठे विचार।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंत कृष्णन।

Thursday, November 7, 2019

फुल और काँटा

प्रणाम।
फूल और काँटा।
पुष्पलता अतिसुंदर।
पुष्प काँटा अति दर्द।
यही है जीवन का सुख -दुख।
ईस्वरीय सृष्टियों में
कोमल एक है तो कठोर अधिक।
छिपकली एक कीडे अनेक।
 एक बूंद शहद एक चम्मच कडुवीदवा।
सुख दुख में  सुख एक फूल।
दुख असंख्य है मानव जीवन में।
सहना सामना करना
सावधानी से तोड़ना,जोडना
तभी आनन्द असीम।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन

Wednesday, November 6, 2019

भारतीयता अपनाना

प्रणाम ।
प्रात:काल की प्रार्थना।
शुभ-कामना।
विदेशी तोडे मन्दिर।
अद्भूत शिल्पकला
निर्दयी तोडे हजारों मन्दिर।
अलग देश माँगकर ही छोडा।
आजादी के बाद के भारतीय शासक
भारतीयता छिपाने,
भारतीय भाषाओं को मिटाने,
विदेशी मजहब की  जनसंख्या बढाने
कितने अन्याय किये?
सत्तर साल में भारतियों के दिल में
यह भाव जम गया,
बगैर अंग्रेजी के
 तरक्की नहीं
 अपनी
और देश की।
भूल गये इतिहास।
अद्भूत किले,
चमत्कार मन्दिर
अजंता,एल्लोरा,
मदुरै,चिदंबरम,तिरनेलवेली,श्रीरंगमन्दिर।
कर्नाटक के मन्दिर,
कश्मीर की हस्तकलाएँ ,
बनरशी रेशम साड़ियाँ।
काली मिर्च,इलायची,लवन्ग और जडी बूटियाँ।
पकवान के कितने प्रकार।
कल्कत्ता रस्गुल्ला,तिरुप्पती लड्डू,
पलनी पंचामृत,विष्णु मन्दिर के स्वादिष्ट इमली भात।
कच्चे मांस खाए पश्चिमी परदेशी के शàन में
हम भी कच्चे-अधपकके हो गये।
आहार में भी  आ गये परिवर्तन।
भारतीय महत्व के प्रचार में न लगे शासक।
वैज्ञानिक साधन की तरक्की,विदेशी दिमाग,
भारत को बना दिया,
चेन नगर के चार बेकार।
मेहनती,सच्चे,ईमानदारी भूखों मरते हैं,
आलसी  भ्रष्टाचारी  सुखी मालामाल।
सोचिये भारत्वादीयों!जागिये।
अपने निजित्व का शान मानिये।
भारत भारतीयता अपनाकर आगे बढें ।
विदेशी पूंजी,विदेशी मालिक,विदेशों को लाभ।
भारतीय केवल नौकर यह रीति नीति बदल जायें।
करोडों की सम्पत्ति हमारे युवक -युवतियाँ।
 स्वचिंतक स्वरचित
यस।अनंतकृष्णन।वणक्कम