Thursday, December 19, 2024

नर हो न निराशा करो मन को

 साहित्य बोध दिल्ली इकाई को  एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार वणक्कम्।

20-12-24.

विषय :---- जिंदगी वही जीता है,

               जिसे खुद पर विश्वास होता है।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली।

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 नर हो न निराशा करो मन को,

राष्ट्र कवि का नारा।

 नर  में ज्ञान है,

 नर में सत्य -असत्य,

  न्याय अन्याय,

  सुख -दुख,

 सबल -दुर्बल 

 भाग्य -दुर्भाग्य 

 सब के दाता ईश्वर का पहचान है।

 ईश्वर के जप तप पर विश्वास रखना

 जिसने सिरोरेखा लिखकर 

 मानव और अन्य असंख्य 

जीवों की सृष्टि की  है।

 बदकिस्मती को सद्किस्मति से

 परिवर्तन करने की शक्ति 

 तप जप ध्यान में।

 मन चंगा तो कठौती में गंगा।

 ईश्वर पर विश्वास खुद पर विश्वास मानो।

 अहंब्रह्मास्मी मानो।

 मानव मन में  विश्वास है तो

 गौरीशंकर की चोटी पर रखता कदम।

 नये नये आविष्कार,

 चिकित्सा प्रणालियाँ,

 ज्ञान के मार्ग दर्शक,

 मानव ही है मान।

 खुद पर विश्वास ईश्वरीय योगदान।

 करत करत अभ्यास करत,

 जडमति  होता सुजान।

  अपने को पहचानो,

 अपने पर भरोसा रखो,

 बनोगे महान।

 कम से कम अपने दायरे में 

 पाओगे नाम।

 अपने परिवार संभालने में 

 अपने जीवन को सार्थक बनाने में 

 आत्माभिमान आत्मविश्वास 

 साथ देगा, जागो जगाओ,

  विश्वास के बल कुछ चमको।

  सूर्य एक चंद्रमा एक।

 दृश्य अदृश्य नक्षत्र, ग्रह असंख्य।

 अदृश्य नक्षत्र बनो,

 विवास रखो, एक दिन  कोई तेरा पता लगाएगा।

 नर हो न निराशा करो मन को।

एस . अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता।

Tuesday, December 17, 2024

स्वर्ग लोक

 [17/12, 9:23 pm] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।

नील गगन --विषय।

विधा---अपनी हिंदी अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति।

17-12-24.

 नील गगन,

  सूर्योदय सूर्यास्त लाल गगन।

 वर्षा इंद्रधनुष सतरंगी।

 काले बादल, उजाले बादल

 चमकते सूर्य, चंद्र, टिमटिमाते नक्षत्र।।

 बिजली का चमकना,

 दहकते अंगारों सी धूप।

 शीतल चांदनी चमक।।

 

 ये न तो न हरियाली,

 न खेती, न अनाज सब्जियाँ,

 न पानी, न लहरें।

 न धूप,न छांव।

 न मरुभूमि,न मृग मरीचिका।

 न नंद वन  न समृद्धि।।

नबरफ न ध्रुव प्रदेश।

 नील गगन के अद्भुत परिवर्तन।।

 अतः कहते हैं 

 स्वर्ग लोक आकाश में।

 नील गगन में सब चलायमान।

 स्थिर है  ईश्वरीय शक्ति।

 सातवें आसमान में एक ईश्वर।

 विश्व के धर्म , मज़हबी सब का भरोसा,

 आसमान के ऊपर के लोक में है

 भगवान/खुदा/ईश्वर।

नील गगन में नीलकंठ।

 नील गगन में नीलांभुज 

श्यामल कोमलांगम।

 काले बादल में कन्हैया।

 देव लोक इंद्रलोक 

 नरक स्वर्ग 

उसके पार।

नील गगन स्थाई।

 बाकी सब परिवर्तन शील।।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता।

[17/12, 9:23 pm] Meta AI: आपकी कविता "नील गगन" बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण है। आपने आकाश के विभिन्न रूपों और परिवर्तनों का वर्णन किया है, जो बहुत ही आकर्षक और प्रेरणादायक है।


आपकी कविता में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:


आकाश की सुंदरता और परिवर्तनशीलता

प्रकृति की शक्ति और सौंदर्य

ईश्वरीय शक्ति और स्थिरता

मानव जीवन की परिवर्तनशीलता और अस्थायित्व


आपकी कविता में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:


"नील गगन, सूर्योदय सूर्यास्त लाल गगन।"

"वर्षा इंद्रधनुष सतरंगी।"

"काले बादल, उजाले बादल चमकते सूर्य, चंद्र, टिमटिमाते नक्षत्र।"

"नील गगन में नीलकंठ। नील गगन में नीलांभुज श्यामल कोमलांगम।"


आपकी कविता हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि हम अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं और कैसे हम अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बना सकते हैं।


धन्यवाद आपकी इस सुंदर कविता के लिए।

Monday, December 16, 2024

ईश्वरीय योगदान

 [17/12, 8:17 am] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।

तमिल भी! हिंदी भी!


 कुशल हैं? नलमा?

 नाना नलम्! मैं कुशल हूँ।

आज सोमवार है।

इन्रु तिंगळ किऴमै।



मन  सुख के कारण कर्ता है।==

मनम् सुकत्तिन कार्यकर्ता।

 मन दुख का मूल। 

मनम् दुख्कत्तिर्कु मूलम्।

 तन ईश्वरीय देन।

उडल् कडवुळ कोडुत्ततु।

 धन भी भाग्य का खेल।

धनममुम   भाग्यत्तिन विळैयाट्टु

 तन सबल , उडल् बलम् 

मन सबल   मन वलिमै

 तो धन प्रबल। पण बलम् 

 धन से तन स्वस्थ  -- धनत्ताल वुडल आरोग्यं,

 धन से ज्ञान स्वस्थ--- धनत्ताल ज्ञानम् आरोग्यं

 ऐसी बात नहीं --इप्पडि अल्ल,

 सब  सिरोरेखालिखा है

 ऍल्लामे तलै ऍऴुत्तु।


  उस दिन ही जब माता-पिता 

ताय- तंदै पिऱक्कुम चेयलिल्

   जन्म लेने देने की क्रिया में लगते। ईडुपडुम् पोते।

 एक मार्कंडेय  भाग्य बदला। ---ऒरु

 मार्कंडेयन विधियै माट्रिनान्


 पर उनकी क्रिया  --आनाल् अवन चेयल्


 आशिकळिन् बलत्ताल्

आशीषों के बल  से।


  सब सर्वेश्वर के अनुग्रह से।

ऍल्लामे सर्वेश्वर निन् अनुग्रहत्ताल।


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

[17/12, 8:17 am] Meta AI: आपका लेख बहुत ही प्रभावशाली और विचारोत्तेजक है। आपने तमिल और हिंदी दोनों भाषाओं में अपने विचारों को व्यक्त किया है, जो बहुत ही अद्वितीय और प्रेरणादायक है।


आपके लेख में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:


मन की शक्ति और उसके प्रभाव

ईश्वरीय देन और भाग्य का महत्व

धन, ज्ञान, और स्वास्थ्य के बीच का संबंध

सर्वेश्वर के अनुग्रह और आशीषों का महत्व


आपके लेख में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:


"मन सुख के कारण कर्ता है।"

"मन दुख का मूल।"

"तन ईश्वरीय देन।"

"धन भी भाग्य का खेल।"

"सर्वेश्वर के अनुग्रह और आशीषों के बल से।"


आपका लेख हमें सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं और कैसे हम अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बना सकते हैं।


धन्यवाद आपके इस सुंदर लेख के लिए।

Saturday, December 14, 2024

झुकना

 नमस्ते वणक्कम्।

साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को नमस्कार वणक्कम्।

 १५-१२-२४.

विषय  --झुकने से कभी छोटा नहीं होता।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली 

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  झुकना विनम्रता के प्रतीक।

  राजा के सामने झुककर प्रणाम करते हैं।

   झुकना आदर से तो वह आदरणीय व्यक्ति।

  झुकना अपमान  के कारण तो वह अनादरणीय।

  पेड़ सिर तानकर खड़ा  है तो बाढ़ में गिरता है।

 विनम्र घास झुककर बाढ़ के बाद भी

 सिर तानकर खड़ा है।

 विद्या विनयं दताती।

विनयशीलता महानों के लक्षण।

विष्णु भगवान को भृगु मुनि ने लात मारी।

छिमा बडन को चाहिए छोटन का उत्पात्।।

 विष्णु का नाम घटा नहीं बढ़ा।

 झुकना गर्व है  पर  मनसा वाचा कर्मणा 

 श्रेष्ठ सोच विचार दान धर्म से।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता

Tuesday, December 10, 2024

ज्ञानी का महत्व

 3701. ज्ञानी समाज से भ्रष्ट  होते समय समाज ज्ञान न पाएगा।  लेकिन यथार्थ ज्ञानी कर्मयोग में भीउनको

अज्ञान  समाज के साथ रहकर,   अज्ञानी समाज को उनके विश्वास ओर संकल्प ईश्वरीय भक्ति को, निष्कलंक  करके,
अज्ञानियों के साथ अज्ञानी -सा व्यवहार करके , उनको आत्मबोध का एहसास कराएँगे। कुछ  ज्ञानी  चमत्कार दिखाकर
उनको निस्वार्थ सेवा करके आत्मबोध को उद्धार करेंगे। वैसे ज्ञानी नित्य संतुष्ट रहेंगे।वे दूसरों से याचना न करेंगे।जिस समाज में  ज्ञानी  ऐसा क्रियावान होते हैं, उस समाज में ही शांति और आनंद होगा।इसलिए दुखी सामाजिक जीवियों  को चाहिए कि  ज्ञानियों को समाज से भ्रष्ट होने नहीं देना।  तभी सभी दुखों से विमोचन पाकर आनंद का अनुभव कर सकते हैं।जिस समाज के लोग ज्ञानियों को समाज से भ्रष्ट  करना सिखाते हैं या समाज ज्ञानियों से दूर हो जाता है, वह समाज दुख का पात्र बनता है।

Wednesday, December 4, 2024

भगवान का योगदान

 [05/12, 5:10 am] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।


भाग्य  भगवान की देन।

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वृक्ष सहोदर

 कल्प वृक्ष

 मानव शरीर वर प्रधान।

 कुछ मन में उच्च विचार।

 कुछ में निम्न विचार 

 मन में हम ज्वार-भाटा।

 जो  भी हो आत्मा 

छूटने के वक्त तक 

 मन डांवा डोल।

 यही मानव लीला,

ईश्वर प्रदत्त।

स्वस्थ शरीर 

 अस्वस्थ शरीर

  जो भी हो साल नश्वर जगत।

 जगत् मिथ्या।। 

ब्रह्म सत्य 

  जीवन है

अपना अपना भाग्य।।

 बदलना मानव ज्ञान के पार।

 तमिल में एक कहावत 

 गौरैया गरुड नहीं बन सकता।

 उड़ान अपनी अपनी शक्ति।

शक्ति ईश्वरीय देन।

 मानव प्रयत्न में 

 लता मंगेशकर नहीं।

 रविशंकर चित्रकार नहीं।

 ईश्वरीय योगदान।

 एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

[05/12, 5:10 am] Meta AI: आपका लेख बहुत ही प्रभावशाली और विचारोत्तेजक है। आपने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है, जैसे कि:


भाग्य और भगवान की देन

वृक्ष और मानव शरीर की तुलना

मन की उच्च और निम्न विचारधाराएं

आत्मा और मानव लीला

स्वस्थ और अस्वस्थ शरीर की महत्ता

जगत की मिथ्या और ब्रह्म की सत्यता

भाग्य और ज्ञान की सीमाएं

ईश्वरीय योगदान और मानव प्रयत्न


आपके लेख में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:


"भाग्य भगवान की देन।"

"वृक्ष सहोदर कल्प वृक्ष मानव शरीर वर प्रधान।"

"मन में हम ज्वार-भाटा।"

"यही मानव लीला, ईश्वर प्रदत्त।"

"ब्रह्म सत्य जीवन है अपना अपना भाग्य।"


आपका लेख हमें सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं और कैसे हम अपने भाग्य को बदल सकते हैं।


धन्यवाद आपके इस सुंदर लेख के लिए।


Sunday, December 1, 2024

जन और विश्व-कल्याण

 नमस्ते। वणक्कम्।

 हवन यज्ञ का तात्पर्य है 

 जगत रक्षा, जगत कल्याण।

 हर काम की कामयाबी के लिए 

 वेदों के काल से आजतक 

 हवन होम यज्ञ  प्रचलित।

 मानव मन में मानवता लाने,

 मानव मन को पवित्र करने

 त्याग, बलिदान,शुभ कर्म की     ओर ले चलने   पवित्र परिस्थितियों को बनाये रखने

सकारात्मक ऊर्जा मिलने

 नकारात्मक ऊर्जा जलने चलने

 हर बात में हवन

 यज्ञ  करने

 एक एक  मंत्र योजना।

  संतान पाने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ।

 वीरता दिखाने अश्वमेध यज्ञ।

 रोग दूर करने  धन्वंतरि  होम।

  नवग्रहों से बचने  नवग्रह होम।

 कीटनाशक के लिए होम।

 वर्षा होने अनावृष्टि दूर करने ।

 आजकल लौकिकता के बीच 

 अलौकिक शक्ति प्राप्त करने

  इष्टदेव कानाम जप  प्रधान।

 स्वच्छ वातावरण ,

  वायु, जल, भूमि,  अग्नि,आकाश

 प्रदूषण दूर करने

  दिव्य शक्ति साहस पराक्रम 

 सामूहिक भलाई के लिए चाहिए 

 हवन होम यज्ञ।

 ये मानव मात्र के लिए नहीं,

 पशु पक्षी वृक्ष पौधै नदी नाले

 मन की चंचलता दूर करने के लिए।

चाहिए  हवन में निहित पर्यावरण  संरक्षण।


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता।