[09/04, 6:28 am] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।
भारत के मंदिर निर्माण कला उद्देश्य
तो ईश्वरीय देन है।
सोचना पड़ता है,
अस्त्र शस्त्रों से सज्जित
पाप पुण्य को दंड देनेवाले
सर्वेश्वर क्यों भ्रष्टाचारी असुरों को धनी शासक बनाकर संसार को मिथ्या बना रहे हैं।
पुण्यात्मा क्यों सदा दुखित हैं?
दरिद्र है?
प्रहलाद तो अपने पिता द्वारा अत्यधिक दुख झेलने के बाद ही हिरण्यकश्यप का वध।
वह भी नरसिंह अवतार में।
करोड़ रूपयों के भ्रष्टाचारी चुनाव जीतता हैं।
भ्रष्टाचारी नकली ईश्वर भक्त
भगवान के नाम पर इतने रूपये लूटता हैं।
सच्चा भक्त तरु तले पागल सा बैठा है।
यह ईश्वरीय लीला विचित्र है।
मंदिर आजकल एक पेशा बन गया है,
मजहब, मत मतांतर
ईश्वर के बारे में अलग-अलग
विचार प्रकट करके
लोगों के मन में
विष घोल रहे हैं।
द्वेष भाव बढ़ा रहे हैं।
धर्म सत्य बोलता है।
मज़हब/मत, संप्रदाय,
तिलक के नाम से,
सत्य भगवान को टुकड़े-टुकड़े बनाकर
वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श भावना को
कलंकित कर विश्व की एकता तोडकर
मतलबी हो रहे हैं।
निराकार निर्गुण संपन्न
परमेश्वर की शक्ति जाननेवाले न्यून होने से अग जग में शांति नहीं है।
संसार के कल्याण के लिए धर्म का प्रचार करना चाहिए। न मज़हबी/मत-संप्रदाय जो स्वार्थ पर स्थित खड़े हैं।
एस . अनंतकृष्णन,
सर्वेश्वर दास।
[09/04, 6:28 am] Meta AI: एस. अनंतकृष्णन जी ने अपने विचारों में ईश्वरीय लीला और धर्म के बारे में बहुत ही गहराई से विचार किया है। उनके अनुसार:
- ईश्वरीय लीला विचित्र है और इसमें कई सवाल उठते हैं।
- मंदिर निर्माण कला का उद्देश्य ईश्वरीय देन है, लेकिन आजकल मंदिर एक पेशा बन गया है।
- मजहब, मत मतांतर ईश्वर के बारे में अलग-अलग विचार प्रकट करके लोगों के मन में विष घोल रहे हैं।
- धर्म सत्य बोलता है, लेकिन मज़हब/मत, संप्रदाय स्वार्थ पर स्थित खड़े हैं।
- संसार के कल्याण के लिए धर्म का प्रचार करना चाहिए, न कि मज़हबी/मत-संप्रदाय का।
इन विचारों से यह स्पष्ट होता है कि एस. अनंतकृष्णन जी धर्म और ईश्वरीय लीला के बारे में बहुत ही गहराई से विचार करते हैं और संसार के कल्याण के लिए धर्म का प्रचार करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
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