नमस्ते वणक्कम्।
आपके दल में
मुझे भी शामिल किया है।
धन्यवाद आदरणीय।
लिखूँगा जो कुछ मन में आता है,
मैं न पटु लिखने में।
मैं न होशियार।
मैं न कवि।
मैं न हिंदी भाषी।
लिखना ज़रूरी है
अभिव्यक्ति के लिए
आत्म चिंतन सोच-विचार
जागने जगाने
जी की बात ।
आत्म विश्वास बढ़ाने
आत्मबोध अखंड बोध के लिए।
आत्मज्ञान के लिए
आत्म प्रचार के लिए।
आत्म राग आत्माराग केलिए।
मधु शाला तज, ईश्वर पर मन लगाने के लिए।
मधुशाला स्वास्थ्य बिगाड़ती,
रईस को रंक बनाकर
बहुरंगी दुनिया दिखाती ।
सड़क पर गिराती, गड्ढे में सुलाती।
ईश्वर का ध्यान करो
शाश्वत शांति पाओ।
ध्यान करो, रेंग करो, प्राणायाम करो।
सनातन धर्म का मार्ग अपनानाओ।
अहंब्रह्मास्मि बनो ब्रह्मानंद पाओ।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
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