Monday, July 8, 2013

प्रश्नवाचक शब्द : तमिल भाषा बोलने आप प्रश्नवाचक शब्द पर ध्यान दीजिये:
. कहाँ -- एंगे
'ए" का ह्रस्व रूप.
जैसे elephant men" ए" के उच्चारण जैसे.
कितना =एव्वलवु , एत्तनै ,
कितने रूपये =एत्तनै रूपाय.
कितने बजे =एत्तनै मणिक्कू.
कितनी दूर= एव्वलवु दूरम.
कितने लोग =एत्तनै पेर.
"ए : का ह्रस्व रूप.
कैसा ,कैसे ,कैसी --एप्पडि ;
किसलिए = एतर्काक.
किसकेलिए==यारुक्काक.
क्या =एन्न ;
इसमें सभी "ए" का उच्चारण ह्रस्व ही हैं.
कब =एप्पोलुतु
प्रश्न वाचक शब्दों को सीखिए. अगले पाठ प्रश्न और उत्तर  के वाक्य होंगे.
तमिल पाठ --२.
तमिल में दो रूप मिलते हैं.
इसलिए लोग ज़रा कठिनाई महसूस करते हैं.
बोलचाल और लिखित. आगे बो,चा./लिख. में आप समझ लें कैसे बोलना है और लिखित भाषा कैसी है.
नी काफी कुड़ी.==तुम काफ़ी पीओ. .....आप काफी पीजिए ===== नींगल काफ़ी कुडियुंगल. (लि). नींग काफी कुडिंग.( बो.चा.)
नी -तुम . आप =नींगल बोलचाल में नींग काफी है.
वैसे ही आप --विधि वाक्यों में इए हिंदी में धातु के साथ जोड़ते हैं.
तमिल में -इंगल जोड़ते हैं.
बोलचाल में इंग काफ़ी है,
तुम बैठो.=नी वुट्कार. आप बैठिये==नींगल वुट्कारुंगल.--/- वुट्कारुंग.
तुम पूछो --नी केळ. आप पूछिए.=नींगल केलुंगल./ नींग केलुंग .
तुम सुनो.= नी केळ. आप सुनिए =नींगल केलुंगल./ नींग केलुंग.
तुम मांगो.=नी केळ . आप माँगिए.==नींगल केलुंगल./नींग केलुंग .
पूछो.सुनो ,मांगो. तीनों के लिए तमिल में एक ही धातु है. =केळ .

Thursday, June 27, 2013

मौन अर्थशास्त्री,शोर मचाती महंगाई' खामोश जनता; जहाँ देखो, वहां नेता हैं भ्रष्टाचारी; आम जनता है मजबूरी; लाचारी -बेचारी सहती हैं सब-कुछ ; जो ज़ोर से बोलने लगते हैं आम तौर से वे भी काले धन के अधिकारी; माया है,ममता है न देश-भक्ति कहीं नहीं; जो देश पर अधिक बोलता हैं , उसका लापता हो जाता है; भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलनेवाले भ्रष्टाचारी दोनों ही संभालते कुर्सी;यही मतदाताओं की मर्जी.

मौन अर्थशास्त्री,शोर मचाती महंगाई'
खामोश  जनता;
जहाँ देखो,
वहां नेता हैं भ्रष्टाचारी;
आम जनता है मजबूरी;
लाचारी -बेचारी सहती हैं
सब-कुछ ;
जो ज़ोर से बोलने लगते हैं
आम तौर  से  वे भी काले धन के अधिकारी;

माया है,ममता है  न देश-भक्ति कहीं नहीं;
जो देश पर अधिक बोलता हैं ,
उसका लापता हो जाता है;
भ्रष्टाचार के विरुद्ध  बोलनेवाले भ्रष्टाचारी
दोनों ही संभालते कुर्सी;
मौन अर्थशास्त्री,शोर मचाती महंगाई'
खामोश  जनता;
जहाँ देखो,
वहां नेता हैं भ्रष्टाचारी;
आम जनता है मजबूरी;
लाचारी -बेचारी सहती हैं
सब-कुछ ;
जो ज़ोर से बोलने लगते हैं
आम तौर  से  वे भी काले धन के अधिकारी;

माया है,ममता है  न देश-भक्ति कहीं नहीं;
जो देश पर अधिक बोलता हैं ,
उसका लापता हो जाता है;
भ्रष्टाचार के विरुद्ध  बोलनेवाले भ्रष्टाचारी
दोनों ही संभालते कुर्सी;यही मतदाताओं की मर्जी.

Tuesday, November 13, 2012

satya ka mahatv

मनुष्य    और जानवर  में कोई फर्क नहीं है। पर मनुष्य बहुत सोचता है। वर्तमान से उसको भविष्य की चिंता सताती  है। जो कुछ  उसको मिलता है, उससे संतुष्ट  नहीं  होता।  इसी प्रवृत्ति के कारण वह सभ्य बनता जा रहा है;
सभ्य मनुष्य  असभ्य मनुष्य  से ज्यादा दुखी है। वह कम्  परिश्रम पर  ज्यादा से  ज्यादा  सुख  अनुभव करना चाहता ही रहता है।उसकी कल्पनाएँ साकार होती  जा रही है।उन सुखों को भोगना सब के वश  में नहीं है।उसके लिए धन की जरूरत होती है।क्या धन काफी  है। नहीं।स्वास्थ्य की जरूरत है।क्या स्वस्थ्य ठीक होना पर्याप्त है। नहीं।फिर,ज्ञान की खोज में लगता है। बेवकूफ भी धन और बल प्राप्त  कर सकता है; पर ज्ञान। तभी समस्या उठती है।
मनुष्य में भेद-भाव उत्पन्न होते है।धन -बल का सहीप्रयोग  बुद्धि  के आधार पर ही होता है। धन और बल आसुरी प्रवृत्ति है। वह अशाश्वत संसार को शाश्वत मानती है।बड़ेबड़े ज्ञानि  को भी  धन और बल के बिना जीना दुश्वार हो जाता है।  पहले भूख की समस्या।फिर  कपडे ;फिर मकान। आहार तो आकार बढाने के लिए नहीं,जिन्दा रहने  के लिए आवश्यक है।वह प्राकृतिक है।  सूक्ष्मता से सोचने पर व्यस्त आदमी पेट की चिंता नहीं करता;वह काममें ही लगा  रहता है।जब आराम मिलता है,तब थोडा  खालेता है।  खाने-पीने की चिंता रखनेवालों से दुनिया बनती नहीं है।  जितने भी संत  शाश्वत सत्य छोड़कर गए हैं, वे तपस्वी हैं। वे खान-पान छोड़कर  विश्व हित के  ज्ञान -कोष 
छोड़ गए  है। उस ज्ञान कोष की आलोचना  और प्रति आलोचना  करके स्नातक बन्ने वाले  ,धन जोड़नेवाले लालच में  पड़कर  मनुष्य  में फूट डालकर आपस में  लडवाकर  अपने को अगुवा  अगुवा स्थापित करके अपने ही स्वार्थ लाभ के तरीके में संसारको  अलग अलग कर लेते  है।इसी को  सभ्य मानते है।  बुद्धिबल मानते हैं।  दूसरों को भिडाकर,दूसरों को बलि देकर  जीनेवाले अहंकारी के कारण  इंसानियत  नष्ट हो जाता है।कई सम्प्रदाय,कई राजनैतिक दल,लडाई -झगडा
के मूल में सिवा स्वार्थ के  अहम् के कुछ नहीं है। इसे सोचकर आम जनता चलेगी तो स्वार्थ,लोभी  नेता चमक नहीं सकते। एक नेता के जीने के लिए  हज़ारों मरते है;नेता अच्छे ,ईमानदार हो तो ठीक हैं,आजकल भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए  ईमानदारी अधिकारियों को  ही सजा मिलती है।यहाँ तक कि  अपने हत्याचार  और भ्रष्टाचार छिपाने हत्याएं भे करते हैं।ऐसे स्वार्थ नेता  या अधिकारी  के मानसिक परिवर्तन और जन हित के कार्य में लगाने -लगवाने के लिए ही मृत्यु है।रोग है।सत्य एक न एक दिन प्रकट होगा ही।


Sunday, July 22, 2012

तिरुवल्लुवर  में बड़ी कौशल  थी।उनके  हर कुरल  को पढ़ते समय  जो आनंद मिलता  है ,वह वर्णनातीत है।संघ काल के कवियों  से लेकर आज के कवी पावेंदर तक  सभी कवियों ने उनकी तारीफ  की थी।हर कुरल के अध्ययन से उनकी तारीफ  की सार्थकता  का पताचलेगा .

क्या एक कार्य के करते समय दूसरे  कार्य  को कर सकते हैं? औसत  बुद्धिवाले इस का जवाब नकारात्मक देंगे। वास्तव में ऐसे  करनेवाले संसार में रहते हैं।वल्लुवर  कहते है  कि   जैसे हम एक हाथी की सहायता से दुसरे हाथी को  पकड़ते  हैं, वैसे ही  एक कार्य  करते समय दूसरे  कार्य को भी  कर सकते हैं।ऐसे करनेवालों के लिए हार का सामना नहीं करना पडेगा।

रत्नकुमार:--once a project succesfully completed  use it to win new contracts  like capturing wild elephants by using  a trained elephnt one that is on  heat.

G.U.POPE:-TO MAKE ONE UNDERTAKING THE MEANS OF ACCOMPLISHING ANOTHER

IS  LIKE MAKING ONE RUTTING ELEPHANT THE MEANS OF CAPTURING ANOTHER.

वल्लुवर का उद्देश्य  कार्य को ठीक -ठीक करना चाहिए। आज के युग  में जीवन सघर्षमय  हो गया।पति -पत्नी  दोनों को कमाना पड़ता है।पत्नी  दफ्टर से आते समय  तरकारियाँ ले आती है;पति  सबेरे पैदा चलने जाता है  तो वापस  आते  समय   दूध  लाता  है। एक कार्य  करते समय दूसरा कार्य करते हैं। इसे ही वल्लुवर कुमुकी  हाथी  के द्वार जंगली हाथी  पकड़ना  कहते  हैं।इक्कीसवीं  सदी की बातों  को वल्लुवर ने दूसरी सदी में ही बताया है।

वल्लुवर के कुरल सचमुच  अद्भुत   और ज्ञानप्रद  है। उनका  शब्द प्रयोग  बड़ा ही शक्तिशाली  है।
शासक  और उनके   सहायक मंत्री  दोनों  को कार्रवाई  के दौरान क्या  करना चाहिए? इस की सीख  कार्रवाई
के   अधिकारं में मिलती  है।  एक प्रशासन  सठीक  चलने-चलाने  के सभी लक्षण इस अधिकारम  में मिलते हैं।
मुडिवुम   इडैयुरुम   मुत्ट्रीयांगू   एय्तुम  पडू पयनुम   पार्तुच  चेयल।


एक शासक को एक कार्य शरू करते ही उसे पूरा करने  के लिए सारा  प्रयत्न  करना  चाहिए।उस कार्य को  करने में  आनेवाली  बाधाओं  को  दूर  करके  कार्य की सफलता  होने पर  आनेवाले  लाभ पर ध्यान देना चाहिए।

जिस काम में अधिक लाभ  होता है ,वही करने  की कोशोश  करनी चाहिए।बधावों का सामना करना चाहिए।
रत्नकुमार इसे  अंग्रेजी में ' course  of   action ' कहते है।

the benefits the constraints and the resource  requirements  of a task must be identified   before starting to work on it.

g.u.pope:--the method of acting.

AN ACTING IS TO BE PERFORMED  AFTER CONSIDERING  THE EXERTION REQUIRED THE
OBSTACLES  TO THE ENCOUNTERED  AND THE GREAT PROFIT TO BE GAINED.



वल्लुवर  बहुत बड़े  ज्ञानी  थे।अर्थ  के महत्व  को बताते हुए  उन्होंने  कहा  है  कि  अतिथिसत्कार और परोपकार

करते समय  अपनी आर्थिक दशा  पर भी ध्यान  रखना  चाहिए।अगर अपनी  आय के विपरीत दान या अथिति  सत्कार   में लगें  तो धन  का विनाश  जल्दी  हो जाएगा।  यही वल्लुवर  ने कहा कि  अतिथि  सत्कार   में कोई  हानि होगी तो उसकी  बिना परवाह  किये  घाटा  सहकर अतिथि  सत्कार को प्रधानता  देनी चाहिए।

यह  तो  वैचारिक भेद  नहीं  है,  वल्लुवर  इसमें एक सतर्कता  आर्थिक  विषमता  पर ध्यान रखकर देते  हैं।यह उनके अनुभव ज्ञान  की सूक्ष्मता  का सूचक है।

रत्नकुमार:-IF ONE GIVES MORE HIS INCOME HIS WEALTH WILL SOON DEMINISH.

G.U.POPE:  THE MEASURE OF HIS WEALTH WILL QUICKLY  PERISH WHOSE LIBERALITY WEIGHS NOT THE MEASURE OF HIS PROPERTY.