भारत में सनातन धर्म जो है ,धर्म नहीं आचरण का विज्ञान है।
सर्वशक्तिमान ईश्वर के भय से आधारित यह आचार ऋषि-मुनियों के द्वारा सब को मार्ग दिखाने सूक्ष्म ज्ञान के दर्शन है.
मनुष्य को शिष्टाचार और पारिवारिक आचरण पर ध्यान दें तो सभी भगवान की पत्नी या द्वि-पत्नियाँ होती हैं;
धार्मिक होम यज्ञ आदि के अवसर पर पति के साथ पत्नी का रहना शुभ -लक्षण माना जाता है.
प्राचीन मंदिर के नियम अति स्वच्छता के आधार पर हुआ था.
जातियों का उतना महत्त्व नहीं ,जितना ज्ञान का.
जन्म रहस्य ऋषिमुनियों के जीवन में कहा गया कि ऋषिमूल और नदी मूल न देखना चाहिए.
रामायण काल के जाति -भेद मिटाने गुह -शबरी के पात्र हैं तो
महाभारत में जन्म सम्बन्धी -तर्क तो आचार -विचार -और तर्क से
कलंकित ही हैं. खासकर भीष्म के अपहरण और विचित्रवीर्य की संतानोत्पत्ति की असमर्थता, कुंती द्वारा जन्म कारण का जन्म ,
इतना होते हुए भी संयम और पतिव्रता और पत्नी व्रत का अपना भारतीय धर्म की महानता और अन्य धर्म में नहीं दर्शाया गया है.
मन को वश में रखने और संयम के महत्त्व पर ज़ोर ,फिसलने पर
स्वर्ग-नरक ,कर्म-फल का प्रलोभ ,भय मनुष्य को न्याय और सत्य पथ पर से खिसकने न देते.
सेक्स एजुकेशन की जो चर्चा और सीख पर आजकल विचार कर रहे हैं ,उससे सौ गुणी महत्त्व भारतीय सनातन धर्म ने ध्यान दिया है.
इसी ईश्वर -ईश्वरी के बिना मंदिर नहीं है; हर मंदिर में देवी और देव की मूर्तियां हैं.
गोपुर और स्तम्भों में ईश्वरीय प्राकृतिक उद्वेग की सेक्स सम्बन्धी मूर्तियां हैं तो आत्म संयम के लिए माया भरी संसार पाश से बचने के लिए संयम बुद्धि का प्रयोग अस्थायी संसार ,अशाश्वत जिंदगी ,अस्थिर संपत्ति रोग बुढ़ापा आदि के द्वारा सद्व्यवहार की सीख पर बल दिया गया है.
थोड़े में कहें तो मनुष्यता निभाने का मार्ग धर्म विशिष्ट है,इसीलिये
प्रलोभन ,डराने धमकाने के अन्य धार्मिक हमलों के बाद भी सनातन धर्म की अपनी विशेष प्रगति अग जग को विस्मित कर के श्रद्धा पैदा कर रहा है.