Tuesday, October 24, 2017

चलायमान मन अचल हो जाएं

अनंत प्रेम भगवान पर
अनंत ध्यान भगवान पर 
पर मन है अति संचल. 
मन है अति विह्वल. 
मन में ज्वार भाटा, 
टेढे मेढे विचार,
शिखर पर के विचार
घाटी के विचार,
चलायमान मन
अचल हो जाएं तो
पर्वतेश्वर,
 अरुणाचलेश्वर .
बस जाएँगे मन में
.|

Sunday, October 15, 2017

ॐ नमः शिवाय


Anandakrishnan Sethuraman प्रातःकालीन प्रणाम.
பெற்ற தாய் தனை மக மறந்தாலும்                              भले ही बेटी माँ को भूल जाएँ 


பிள்ளையைப் பெரும் தாய் மறந்தாலும்                          बेटे को माँ भूल जाएँ 


உற்ற தேகத்தை உயிர் மறந்தாலும்                                 शरीर को प्राण भूल जाएँ 


உயிரை மேவிய உடல் மறந்தாலும்                                 प्राण रक्षक शरीर भूल जाएँ 


கற்ற நெஞ்சகம் கலை மறந்தாலும்                                 सीखी कला भूल जाएँ 


கண்கள் நின்றிமைப்பது மறந்தாலும்                         आँखों के पलक तड़पना भूले ,पर 


நற்றவத்தவர் உள்ளிருந்தோங்கும்                                      सुतपी अंतर मन से उत्तुंग करने 
वाले 
நமச்சிவாயத்தை நான் மறவேனே!                        नमः शिवाय को मैं सदा याद रखूंगा . भूलूंगा नहीं.

Thursday, October 12, 2017

कुम्हार से सीखो (स)


s
कुमहार के चित्र
जो कार्यरत देकर
उड़ान मुख्पुस्तिका में
कुछ लिखने को कहा
तो मेरे विचार :--



देखा ,यादें आयी,

प्राचीन भारतीय कितने परिश्रमी
,
कितने सहन शील कच्ची मिट्टी ,

पक्की घड़ा,

नारियां कितने सहन शील ,

रसोई मिट्टी के बर्तन में ,

जरा सी लापरवाही ,

पकाई पकवान

घड़े टूटने से बरबाद.

भू सी सहन शीलता ,

बर्तन बनानेवालों में ,

उसके उपयोग करनेवालों में ,

लकड़ी के न जलने पर

आँख के जलन

कितनी सहन शीलता उनमें

आज कठिनतम बर्तन भी टूट जाती,
ज़रा रसोई वायु बेलन खतम हुयी
न रसोई. बिजली नहीं न चलता कोई काम

छोटी-सी बात में दाम्पत्य अलग ,
अदालत में मुकद्दमा,
हमें ऐसे प्राचीनता से सीखना चाहिए

सहनशीलता, कच्ची को पक्की बनाना ,
सावधानी से चीज़ों का उपयोग प्रयोग ,
उड़ान के प्रबंधकों को सलाम
जिन्होंने ऐसे चित्र से ,
मेरे विचार प्रकट करने ,
प्रेरक बने.

Friday, October 6, 2017

देश प्रेमी

प्रेमी हूँ मैं देश का ,
भारतीय संस्कृति और
त्यागमय जीवन का.
भोग माय जीवन , यथार्थता
के आधार पर बने पाश्चात्य सभ्यता,
उनमें कंचन की इच्छा नहीं ,
बच्चे भी महसूस करते हैं
मृतयु निश्चित ,
पतिव्रता के आड़ में अफवाहें
उनके लिए ला परवाही,
न छोड़ते पत्नी को जंगल में ,
न पीटते -मारते ,कष्ट देते जोरू को
जोरू राक्षशी हो तो उसके इच्छानुसार छोड़
अपने मन पसंद से जीवन बिताना
तीन -तीन शादियाँ , पारिवारिक कलह
धर्म युद्ध के नाम से ,
अपने बदले चुकाने अधर्म -धर्म की बात नहीं ,
जिओ खुशी से आदाम -एवाल के एक ही संतानें हम .
पाश्चात्य दृष्टिकोण में जीवन का वह आदर्श नहीं.
एक गुण मुझे वहाँ का पसंद हैं ,
आत्म निर्भरता. क्षमता का सम्मान. कौशल की प्रशंसा.
धार्मिक आडम्बर कम , धर्म के नाम लूटना कम.
जादू -टोंका , मन्त्र-तंत्र , हवन -यज्ञ नहीं ,
आविष्कार, जाना-कल्याण ,
यहाँ के मंदिरों के उत्सवों में बदमाशों के दल का जबरदस्त वसूल.
धर्म कर्म के नाम लुटेरों का , पियक्कड़ों के अश्लील नाच -गान
ईश्वर के जुलूस पर सब के हाथ में लाठी -हथियार,
मनमाना अश्लीली संकेत , यह धर्म बाह्य अश्लीली
भारतीय धार्मिक आचरण मुझे ज़रा भी पसंद नहीं .



Tuesday, October 3, 2017

विमान मन मान स)

मन पंख लगाकर विमान सा उड रहा है,
अनंत आकाश, असीम गहरा सागर,
तीनों लोक की कलपनामें गोता लगा रहा है,
पर मनुष्य मन की गहराई तक जाना
असंभव -सा लग रहा है,
हर मनुष्य का चित्त डांवाडोल,
स्वार्थ सिद्ध करने मौन तमाशा
धर्म युद्घ कुरूक्षेत्र में भी
अधर्म की चर्चा चल रही है,
क्या करें मन को हवा महल बाँध
आकाश में हवाई जहाज -सा
ऊपर ही उड रहा है, अतः
भू पर अन्याय हो रहा है.
न्याय तो कभी कभी चमकता है,
पर न्याय का यशोगान दिन दिन हो रहा है.
मन तो आकाश विमान में उड रहा है.

उसे जाते देखा है.

अपनी आँखों से उसे दूर जाते देखा है, 
शीर्षक उसे माने क्या? 
सुंदर प्रेमी या प्रेमिका या मित्र 
विमान, कार जाने कितनी कविताएँ.

मैं जब छोटा था, मुझे कितनों का प्यार मिला

बडा बना तो उसे दूर होते देखा.

कम कमाई, पर नाते रिश्ते के आना जाना

खुशी से मिलना दुलारना,
उन सब को

अधिक कमाई ,
बडा घर पर नाते रिश्ते की 

आना जाना मिलना जुलना
सब को   
अब बंद होना देखा था.


गुरु जन मुफ्त सिखाते,
अब बोलने के लिए तैयार 
पैसे
गुरु शिष्य वात्सल्य मिलते देखा. 


हर बात हर सेवा नेताओं का त्याग 
सब दूर कर्तव्यपरायणता सब मिटते
दूर होते  देख रहा हूँ,
क्या  करूँ? 

स्वच्छ जल की नदियाँ ,
जल भरे मंदिर के तालाब 

उन सबके दूर होते देख रहा हूँ.
क्या करूँ? 

अब मेरी जवानी मिट
दूर होते देख रहा हूँ. 

हृष्ट पृष्ट शरीर में झुर्रियां
देख रहा हूँ. 

उसे दूर जाते देखा है,

अस्थायी जग में सब के सब
दूर जाते देखा है.

Saturday, September 30, 2017

रावण के चित्र पर कुछ लिखने "उड़ान " ने कहा तो मेरे विचार,

रावण लोगों के ग्ञाता, 
वीर सूर अहंकारी, 
तभी हमें एक सीख दी, 
काषाय पहने सब दया और दानी के पात्र नहीं, 
लकीर लाँघना, वचन छोडना, सीता की गल्ती. 
वहाँ रावण उठाकर ले गया, पर
न उनके पतिव्रता का भंग किया.
विभीषण कुल कलंक, भाई छोड,
राम की साथ दिया, पर वह राम अग्नि में
नहाकर अपने पतिव्रता धर्म रक्षिका सीता को
जंगल में छोड आया़. दो बच्चे एक असली,
दूसरा नकली. कुश तोडना ये जन्मा.
भीष्म पितामह जिसे कह करते हैं मर्यादा.
तीन राजकुमारियों को जबरदस्त उठा ले आया.
वह भा नाम था विचित्र वीर्य,
जो वैवाहिक जीवन का अयोग्य.
उन तीनों के पुत्र अवैध, पतिव्रता है नहीं.
कुंती के तीन पुत्र उसके नहीं.
विदुर को रखा दूर, यह तो धर्म नहीं,
अब सोचो विचारे राम से रावण निर्दयी नहीं.