Sunday, May 13, 2018

मन की बात

मन की बातें
बताने में है,
मान की बात.
मनाने की बात.
उम्र का बात.
उलझनों की बातें
ऊधम मचाने की बातें
उत्तम बातें
अधम बातें
बडों की बातें.
छोटों  की बातें.
चोरों की बातें.
बूढों की बातें.
ठगों की बातें.
राजनैतिक बातें.
राजनीतिग्ञ की दुरंगी बातें.
मोह की बातें.
प्यार की बातें.
बच्चों की तुतली बातें
वात्सल्य भरी बातें
मनोरंजन  का बातें
हास्य-व्यंग्य  की बातें
रोचक बातें
अरुचि बातें
सब के सब कीअंतरंग बातें
सहकर्मी  की  बातें.
सहपाठी  की बातें
योग -ध्यान  की बातें.
भोग विलास की बातें
ऐश आराम की बातें
इन सब बातों  में अच्छी लगती
अगजग के कल्याण  की बाते़
दुख भुलाने की तुतली बातें.







Saturday, May 12, 2018

पकौडा

पकोड़ा  बनाना रोजगार , सही या गलत ,
चुप रहने से  कुछ करना  बेहतर.
अचार बनाना ,मसाला चूर्ण बनाना
कितने लोग  रईश बने हैं ?
क्रिकट खेलना  अब फेशन बन गया.
क्रिकट मैं कोच से सिखा,पर क्रिकट में नौकरी नहीं ,
यह खेल  केवल मनोरंजन  के  लिए.
इन्जनीयर  कालेज  में केम्पस इंटरव्यू में ही नौकरी पानेवले ,
कोइल पिच्चाई जैसे  बड़े पद पर रहनेवाले,
केवल मासिक दो हज़ार  पाकर काम  करनेवाले बी.ई.,
परंपरागत  संपत्ति  और दहेज़ की संपत्ति से
सानंद रहनेवाले, कितने भाग्यवान.
  जो  भी सरकार हो इन्जनीयर स्नातक जितने  हैं
सब को कोई भी सरकार हो ,नौकरी देना असंभव.
कितने माँ -बाप  अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं,
कितने बच्चे भीख मांगते जी रहे  हैं ,
पकौड़ा बेचना कोई अपमानित  काम  नहीं,
उदहारण  बता दिया, कोई न  कोई व्यापार करना.
खेती कर सकते हैं , स्नातक कीचड में उतरना अपमान नहीं,
कितने स्नातक ऑटो चला  रहें है,
भाजापा   के शासन और कांग्रस के शासन
दोनों के शासन काल  में स्व व्यवसाय ,भारतीय कुछ बनाओ
आत्म निर्भरता  ,आत्म विशवास,  किसकी  सरकार दे रही  है
सोचिये  पता चलेगा पकोड़ा बेचना , आत्म निर्भर  धंधा करना.

समाज.

प्रातःकालीन प्रणाम.
अति कालै वणक्कम.
 समाज धनि यों की है.
समाज खुशामदियें का है.
समाज स्वार्थियों का है.
समाज नम्रता से प्रेम  से
ठगनेवलों का समर्थक  हैं.
समाज प्रशासक, शासक,
आदि की गल्तियों  को,
अपराधों को सह लेता है.
स्वार्थ मय संसार  में
निस्वार्थ  स्वयं सेवकों  को
ईमानदारियों को
अधिकारियों   को

भी
कमी नहीं है.
इसलिए  प्राकृतिक प्रकोप
 कभी कभी  होता है.
निस्वार्थी  के कम  होते  होते
 प्राकृतिक संतुलन
बिगड़ता जाएगा.
 देश  सूखा पडेगा,
 पानी नहीं मिलेगा.
लोग दाने दाने के लिए
 तरसेंगे.
दुखी रहेंगे.

माँ

माँ!   ममता का प्रतीक.
हर दिन पूजनेलायक. .
अंग्रेजों को माँ अलग हो जाती.
पिता अलग हो  जाते.
हमारी संस्कृति  स्वर्ग वास के बाद
हर साल दिवस पूजा.
ज़िंदा माता पिता को
खुश रखना ,
दैनंदिन  का कर्तव्य है.
अतः माता -पिता पूजनीय
वंदनीय प्रतिदिन, प्रशिक्षण.
माँ को  प्रणाम.



माँ

माँ अपूर्व,
माँ निराली,
माँ ममतामयी,
माँ त्याग का  प्रतिबिंब.
माँ   रक्षिका.
भगवान ने सब में
अपवाद, गुणदोष
 की रचना की है.
माँ में कैकेयी,
कर्ण की माँ कुमति,
कबीर की माँ,
 यह क्यों पता नहीं.

समाज

प्रातःकालीन प्रणाम.
अति कालै वणक्कम.
 समाज धनि यों की है.
समाज खुशामदियें का है.
समाज स्वार्थियों का है.
समाज नम्रता से प्रेम  से
ठगनेवलों का समर्थक  हैं.
समाज प्रशासक, शासक,
आदि की गल्तियों क को,
अपराधों को सह लेता है.
स्वार्थ मय संसार  में
निस्वार्थ  स्वरों, गाडियों, ईमानदारियों को भी
कमी नहीं है.
इसलिए  प्राकृतिक प्रकोप  कभी कभी  होता है.
निस्वार्थी  के कम  होते  होते
 प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जाएगा.
 देश  सूखा पडेगा, पानी नहीं मिलेगा.
लोग दाने दाने के लिए  तरसेंगे.
दुखी रहेंगे.

खुशामद

प्रातःकालीन प्रणाम.
கா லை வணக்கம்.
प्रेम भरी दुनिया में,
खुशामदयों  और  चम्मचों को
जितना सम्मान
उतना कटु सत्य बोेलनेेवालों  को नहीं.
 शासक, अधिकारी तटस्थ  नहीं,
 केवल चाहते अपनी अमीरी.
अपने ही आमदनी.
शाश्वत सत्य भूल जाता,
अमीरी गरीबी  का दहन या गाढन
एक ही श्मशान में या एक ही कब्र में ही.