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Saturday, May 12, 2018

समाज

प्रातःकालीन प्रणाम.
अति कालै वणक्कम.
 समाज धनि यों की है.
समाज खुशामदियें का है.
समाज स्वार्थियों का है.
समाज नम्रता से प्रेम  से
ठगनेवलों का समर्थक  हैं.
समाज प्रशासक, शासक,
आदि की गल्तियों क को,
अपराधों को सह लेता है.
स्वार्थ मय संसार  में
निस्वार्थ  स्वरों, गाडियों, ईमानदारियों को भी
कमी नहीं है.
इसलिए  प्राकृतिक प्रकोप  कभी कभी  होता है.
निस्वार्थी  के कम  होते  होते
 प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जाएगा.
 देश  सूखा पडेगा, पानी नहीं मिलेगा.
लोग दाने दाने के लिए  तरसेंगे.
दुखी रहेंगे.

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