Thursday, May 3, 2018

भद्रगिरियार -प्रलाप --२.

भद्रगिरियार


 ८.पेय्पोल तिरिन्तु पिनाम्पोल किडन्तु   पे णनै
     ताय पोल निनैत्तुत    तव मुदिप्पतु एककालं .

भाव :
भूत -सा  भटककर ,(भूत के  लिए निश्चित  समय नहीं  है )

शव - सा  लेटकर ,,(  किसी प्र कार  के चिंता  स्मरण  रहित }
 तेरी     याद  कर ,
तपस्या  अंत करने का   समय
 कब  प्राप्त  होगा?
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९.   काल   काट्टी,कै  काट्टी, कणकल    मुकम  काट्टी
     
      माल काट्टू  मंगैयरै    मरंतिरुप्पतु  एककालं ?

    अपने  पैर,हाथ ,आँखें ,चेहरा  आदि के  अंग चेष्टाओं  के  द्वारा ,
      नशा उत्पन्न करनेवाली महिलाओं को  भूल,
      तेरी ही याद में जीने  का समय
     कब  प्राप्त  होगा ?

१०.   पेन्निन   नल्लार   आसैप पिरमैयिने  वित्टोलित्तु
       कन्निरेंडू  मूडिक   कलंतिरुप्पतु  एककालं ?

   नारियों  पर होने वाली इच्छाओं को तजकर ,
   आँखें बंदकर    तेरे  ब्रह्मानंद में डुबकी  लगाने  का समय कब  प्राप्त   होगा ?

११.  वेट्टुंड    पुण पोल    विरिन्त  अल्कुल पैतनिले 
     
       तट्टूण्डु    निर्कई  तविर्वतुवुम   एककालं.?

  नारी  योनी   काटे हुए घाव के   सामान  घृणित ,
  उसका मोह तज  जीने का   वक्त कब  प्राप्त होगा ?

१२.  आरात  पुण निल   अलिन्तिक किडवामल
       तेरात   सिन्तई तनैत  तेट्रूवतु   एककालं ?

  कभी न भरनेवाले  घाव-सा जो योनी है ,
 उसकी हीनता    जान  ज्ञान पाकर मन को
तेरे ही स्मरण में रखने  का समय    कब  प्राप्त होगा ?

१३.  तंतै-ताय   मक्कळ सकोतररुम  पॉय एनवे कंडु तिरुक्करुप्पतु एककालं.?

     माता-पिता   ,संतान आदि  न  स्थायी सहायक  यों अनुभव ज्ञान पाकर
 उनके प्रेम-माया मोह छोड़ ,तेरी ही याद  में जीने का  समय कब प्राप्त होगा.




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