आज के विचार.
भारत में मजहब नहीं,
धर्म है. मजहबी स्वार्थ होते हैं.
स्वार्थता दूर होने
मजहब का पैगाम या संदेश
ईश्वर से मिलते हैं.
पर जिस महान के द्वारा
जग में शांति ,प्रेम,
इनसानियत की
स्थापना हुई,
उनके स्वर्ग वास या जीवन मुक्ति के होते ही
उनके चेले नये सुधार लाना चाहते हैं,
मूल गुरु के उपदेश से कुछ लोग
जरा भी परिवर्तन लाना नहीं चाहते.
जो परिवर्तन लाना चाहते हैं,
वे नया संप्रदाय
नया मार्ग या नयी शाखा
बनाने में सफल हो जाते हैं.
हिंदु धर्म एक सागर है.
इसमें अघोरी को देखते हैं.
सिद्ध पुरुषों के देखते हैं,
आचार्यों के देखते हैं,
नाना प्रकार के संप्रदाय देखते हैं.
भोगी धनी आश्रमों को देखते हैं,
पागल सा फुटपाथ पर
भटकनेवाले
ईश्वर तुल्य भविष्यवाणी
बतानेवाले
दैविक पुरुष देखते हैं,
लोगों में फूट पैदा करनेवाले
विरोध भाव उत्पन्न करनेवाले,
शैव- वैष्णव संप्रदाय देखते हैं.
अंध विश्वासों को दूरकर
मानव मानव में एकता, प्रेम, परोपकार,
सहानुभूति ,हमदर्दी आदि शाश्वत भाव
की ओर चलनेवाला कबीर जैसे
वाणी का डिक्टेटर देखते हैं.
मनको कलुषित रखने से
आदर्श सेवा या
ईश्वरत्व नहीं के बराबर का
भाव ही होगा.
भगवान विराट रुपी,
जन्म मरण
ही सत्य हैं
पाप कर्म का दंड,
पुण्य कर्म का पुरस्कार.
पर जग में किसी को शांति नहीं,
आत्म संतोष नहीं
बडे बडे राजा- महाराजाभी दुखी,
गरीब भी दुखी,
अधिकारी भी दुखी.
राम कहानी सुनाना तो
केवल दुख का वृत्तांत सुनाना है.
महाभारत तो बदला लेने के लिए ,
दुखांत ही है.
कबीर की वाणी स्मरणीय है.
मिथ्या संसार में सुख ही सुख का भोगी
कोई भी नहीं है.
हमें जितना सुख मिला ,
वह हमारे सद्करम का फल है.
जितना दुख मिला, हमारे दुष्कर्म का फल है.
ईश्वरावतार राम, कृष्ण सभी दुखी ही रहे.
मुहम्मद नबी को पत्थर का चोट लगी तो
ईसामसीह को रक्त बहाना पडा.
हिंदू भाव भूमि सगुण निर्गुण को मानता है.
अहम् ब्रह्मास्मि खुद को
भगवान मान कर चलने का
अद्वैत सिद्धांत.
हर आदमी ईश्वर है.
वही स्पष्ट है.
पर मृत्यु उसके हाथ में नहीं.
तब मनुष्य अपने से परे,
दूसरी शक्ति वही ईश्वर मानता है.
द्वैत भावना जगती है.
मनुष्य मनुष्य में जाति संप्रदायों से दूर
मानव सेवा अपनाने विशिष्टाद्वैत .
इन सब में गोता लगाकर,
खोदकर तराशकर
मोती, हीरा लाना
मानव धर्म है.
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