Sunday, May 6, 2018

समाज की दशा.. गलत दिशा.

 गुजरात कोर्ट  का फैसले के बाद
  अनुशासन  ,संयम तोड़े  कोरट.
मेरे विचार

वेश्यागमन  सही हैं ,
विनोद की रिहाई ,
मन मानकर गलती करना ,
माननीय है . यह तो सोचनीय हैं .
वैवाहिक व्यक्ति पत्नी के रहते ,
रखैल रखना  या दूसरी शादी करना
यह तो गैर -कानूनी.
पर  पैसे देकर वेश्या से संपर्क  रखना
न अपराध .
आहा! न्यायाधीश .
वह वेश्या मानकर लेती  या  किसी के डराने -धमकाने से
या गरीबी की विवशता  में
या बदमाशों के चंगुल से
जो भले ही पेशेवर हो
वैवाहिक पुरुष से संपर्क ,
उस शादी शुदा  स्त्री के प्रति का द्रोह .
परिवार का नाश.
पुत्र-पुत्री का धर्म संकट
किसी की परवाह नहीं ,
पुरुष को अपने शारीरिक सुख प्रधान.
वह मनुष्य नहीं , मनुष्य के रूप का
ज्ञान चक्षु  विहीन  पशु ही है.
इसकी रिहाई का न्यायाधीश की पत्नी अपनी इच्छा से
पर-पुरुष गमन  सहेंगे क्या ?
यह ऐसी नीति  को अपनाने
दशरथ  , द्रौपती, भीष्म के पिता ,
शाहजहान   ऐसे पौराणिक उदाहरण
वाली का शुग्रीव पत्नी का  अपहरण
ऐसी गलत दृष्टांत
गुजरात के न्यायाधीश ने लिया होगा.
उनकी पुतुत्रियों  को यों ही  छोड़ेंगे क्या ?
विनोद की रिहाई , विनोद फैसला.
रंडी को दंड ,
रंडे  को रिहाई
डंडे को काटे बिना
यही जबर्दश्ती का मूल .
क़ानून भी साथ.
नारियों की सुरक्षा दल चुप.
इच्छित नारी सी वैवाहिक पुरुषों के गमन की छूट
पारिवारिक जीवन को शोकमय बनाना.
हे न्याधीश! आप  अपनी इच्छा से वेश्यागमन करते तो
अपनी पत्नी के प्रति द्रोह या नाहीं.
सोचकर न्याय सुनाना.

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