Friday, February 10, 2023

परिपाडल

 




  परिपाडल एक परिचय.

शोध सार —-
संघ काल का परिचय,परिपाडल का विवरण, विष्णुदेव का वर्णन, बलदेव का रूप,वराह कल्प का ज्ञान, नदी वैगै का वर्णन, बाढ के आते ही सबको नदी में नहाने जाना,जल-क्रीडाएँ,-प्राकृतिक वर्णन -


परिपाडल—--

    परिपाडल के कवि हैं तेरह.
परिपाडल कविताओं के संकलन कर्ता हैं
उ.वे.स्वामिनाथऐयर ।इसकी व्याख्या परिमेलअळकर ने किया है।
परिपाडल के कवि :-
१.कटुवन इल ऍयिननार,२.इलंपेरुवळुतयर कीरत्तैयार,३.नल्लंतुवनार ४. करुंपिल्ळ्ळै भूतनार ५मैयोडक्कोवार ६ कुरुंभूतनार ७.नलवलुतियार ८.नलवलुसियार९.कुन्ऱमभूतनार १०.नप्पण्णनर ११.नल्लच्चुदनार १२.केसवनार १३.नल्ललिसियार


  संघकाल :---   

तमिल़ साहित्य भारतीय भाषाओं के साहित्यों में अति प्राचीन और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भारतीय एकता का प्रतीक होते हैं। तमिल़ साहित्य  का संघ काल तमिल साहित्य का स्वर्ण  युग होता है। संघकाल के साहित्य पत्तुप्पाट्टु,एट्टुत्तोकै है । तोकै का मतलब है संकलन।
 
 
दस ग्रंथों का संकलन पत्तुप्पाट्टु,आठ ग्रंथों का संकलन एट्टुत्तोकै ।
एट्टुत्तोकै में परिपाडल को विशेष स्थान मिला है। उस के संबंध में एक गीत है ।

ग्रंथ की विशेषता :-
"नट्ऱिनै नल्ल कुरुंतिणै ऐंगुरु नूरु ,
ओॅत्त पतिट्रुप्पत्तु ओंगु परिपाडल ।"


ओंगु का मतलब है ऊँचा । इसमें इयल,इसै,नाटक अर्थात आम तौर पर व्यवहारिक भाषा,संगीत और नाटक की भाषा इन तीनों के रूप परिपाडल में मिलते हैं।

यह विष्णु भक्त ग्रंथ है। वैष्णव , शैव और विश्वधर्मों का समन्वयत्मक ग्रंथ है।प्रकृति के कार्यकलापों में ईश्वरीय शक्ति का आधार का महत्व मिलता है ।

        तमिळ छंदों में परिपाडल छंद केवल इस ग्रंथ  में है।तमिल के चार प्रसिद्ध छंद आसिरियप्पा,वेण्बा,कलिप्पा,वंचिप्पा आदि से छूट्कर उन चारों के आम छंद के रूप में परिपाडल है ।
परि का अर्थ होता है अश्व।कुछ शोध कर्ताओं का कहना है कि अश्व की चाल जैसे संगीत होने से यह परिपाडल है.(अश्वगीत)।
इस ग्रंथ की और एक विशेषता है कि धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष आदि चारों का वर्णन तुलना आदि ।
यह ग्रंथ ताडपत्र में था, माननीय विद्वान उ.वे.स्वामिनाथ अय्यर ने ताड पत्रों की खोज की और१९१९ में इस ग्रंथ का प्रकाशित किया ।
  परिपाडल कुल सत्तर होते हैं।

विष्णु भगवान का यशोगान में आठ, 

भगवान कार्तिकेय के यशोगान में  इकतीस,

कोट्रवै (काली) के लिए एक,

वैगै नदी पर छब्बीस,

मदुरै शहर पर चार । कुल सत्तर ।

ये सारे के सारे अब नहीं मिलते ।ये गीत गाने योग्य होते  हैं।

    अभी इन सत्तर गीतों में बाईस ही मिलते हैं।
  विष्णु के छे,

मुरुगन (कार्तिकेय) के आठ,

वैकै नदी के आठ।
गीत कारों के कारण गीतों  के शब्दों में तोडमरोड अधिक होते हैं ।इनमें संस्कृत की पौराणिक कथाएँ अधिक होने से ई.पू. के बीच के माननेवाले विद्वान भी होते हैं ।
परिपाडल ही तमिळ भाषा  का सर्वप्रथम  गीत ग्रंथ हैं.
परिपाडल की बडी विशेषता आंतरिक और बाह्य ,काम और भक्ति की विशेषताएँ मिलती हैं ।
प्रकृति में ईश्वरत्व का वर्णन इसकी विशिष्टता है।

विष्णुदेव का रूप वर्णन :---(बलदेव )
आयिरम् विरित्त अणंकुडै अरुंतलै
ती उमिळ तिरळोडु मुडिसै अणवर
मायुडै मलर मार्पिन मै इळ वाळ वळै मेनिच
चेय उयर पणै मिसै ऍळिल वेळम एंतिय
वाय वांगुम वळै नांचिल ओॅरु कुलै ओॅरु वनै ।

  हे विष्णु! 

सभी जीवों को भयभीत करानेवाले
आदी शेष नाग अपूर्व हजारों सरवाले ,
क्रोधागनि उगालते हुए तेेरे सिर पर छाया दे रहा है ।
श्री लक्ष्मी देवी ,तेरी चौडी छाती पर विराजमान है ।
बढिया बाँस के ऊँचे खंभ पर
बाँधे हाथी के झंडे जो "हल" जैसे है,
उसे उठाकर श्वेत रंग के तू,
एक कान में कर्णाभूषण पहनकर
बलदेव सम दीख पडता है।
आगे भगवान के कमल नयन को जलनेवाली लाल ज्वाला की तुलना करते हैं ।

परिपाडल के प्रार्थना गीत में कवि अगजग के हर कार्य में ईश्वर की देन का वर्णन करते हैं ।
  हे  विष्णु ,
ब्राह्मण द्वारा रक्षित धर्म तू है,
भक्तों का प्यार तू है।
अधर्मियों के रक्षक तू है ।
शिव तू है ,
ब्रह्मा तू है,
सृष्टियों के कर्ता तू है ।
बादल तू है,
आकाश तू है,
भूमि तू है,
हिमाचल तू है।


खगोल शास्त्र ज्ञान —-
  दो हजार वर्ष के इस पुराने ग्रंथ में,

  भूमि कैसे बनी का वर्णन है।
इससे तमिल कवियों के वैज्ञानिक ज्ञान विशिष्टता का पता चलता है।
  कवि कटुवन इल एयिननार ने   प्रकृति में   विष्णु के गुणों को देखते हैं।

निन वेम्मैयुम विलक्कमुम ञायिट्रिल उळ --तेरी गर्मी और उज्ज्वलता सौरमंडल में
निन तण्मैयुम सायलुम तिंगल उळ– –   तेरी करुणा और कोमलता चंद्रमंडल में
निन करत्तलुम वण्मैयुम मारि उलतेरी -    तेरा अनुग्रह और दानशीलता बादल में ।
निन पुरत्तलम नोन्मैयुम ञालत्तु उळ —   तेरी सहनशीलता और आश्रयशीलता भूमि में ।
निन नाट्ऱमुम ओॅण्मैयुम पूवै उळ – –     तेरा सुगंध और प्रकाश पुष्प में
निन तोट्रमुम अकलमुम नीरिन उळ—   -   तेरा रूप और बडप्पन सागर में

निन उरुवमुम ओलियुम आकायत्तु उळ   -   तेरा आकार और ध्वनियाँ आकाश में
निन वरुतलुम ओडुक्कमुममरुत्तिन उळ —---तेरा जन्म और मृत्यु वायु में
अतनाल इव्वुम उव्वुमिरउम एमम आर्त्त —-  इसलिए तू इत्र तत्र सर्वत्र और सभी में व्यापित
निऱ पिरिन्दुमेवल चान्रन एल्लाम —--------सब में विद्यमान  रहकर 

अपना काम करवाने के                                                          मूलाधार तू है।

अगजग की उत्पत्ति कैसे हुई? :---

      दो हजार वर्ष  के पहले ही परिपाडल में कवि कीरंदैयार ने जिक्र किया है ।
    तमिल मूल :-

   तोलमुऱै इयऱकैयिन मतियॊ

—-मरबिट्रु

विसुंबिल ऊऴि ऊऴ ऊऴ चेल्लक

करु वळर वानत्तु इसैयिन तोन्रि

उरु अऱिवारा ऒन्ऱन ऊऴियुम

चेंतीच चुडरिय ऊऴियुम पनियोडु

तण पेयजल तलैइय ऊऴियुम अवैयिट्रु 

उळ मुरै वेळ्ळम मूऴकि आर तरुपु।

 अर्थ :--

 कई युग बीत गये।

उसके बाद मूल प्रकृति से

 अपने गुण तेज ध्वनि के साथ
वायु जैसे भूत गणों के परिवर्तन  करनेवाले सूक्ष्म कण बढने का स्थान बना।
आकार हीन आकाश में पहला युग,
उस आकाश से वस्तुओं की गति देनेवाली

 हवा बही,
फिर हवा से दूसरे युग का भूतगण 

लाल अग्नि,

उस आग से तीसरे भूत गण जल ,बर्फ,

ठंडी वर्षा के साथ चौथे युग का भूत गण,
फिर चौथे भूत गणों के सूख जाने से 

भूमि भूत गण
पाँचवाँ भूत गण का उदय हुआ।
पेड़ पौधे कमल जैसे फूल,
सागर तट की भूमि,
फिर अंधकार मय भूमि में से
  तेरा वराहावतार ,
  श्वैत वराह कल्पम संस्कृत में उल्लिखित है।

 ऐसे महान शक्ति शाली विष्णु को प्रणाम।।

 आधुनिक वैज्ञानिक बातें दो हजार साल पहले ही वर्णित है तो तमिऴ भाषा के कवियों का ज्ञान वर्णनातीत है।

   वैगै नदी के प्रवाह वर्णन में पता चलता है कि 

   कवि ने कितने प्राकृतिक  दृश्यों का अध्ययन किया है।

  और नायक नायिका वेश्या के वर्णन में 
  भावनात्मक वर्णन में अति पटु होते हैं।

  परिपाडल में हर पद्य में अद्भुत भक्ति चमकती है।
  ईश्वरीय महक महकता है।
  यह अपने आप एहसास करने का ग्रंथ है।

  वेदों के महत्व में चतुर्वेद,
  श्रुति, मौखिक, आंतरिक,बाह्य आदि प्रशंसा का महत्व मिलते हैं।

  वेदों के आंतरिक अर्थ ही ईश्वरीय रूप होता है।

  परिपाडल में उपमेय -उपमा  : —

  वैगै नदी के वर्णन में ,
  नायक-नायिका के संयोग -वियोग रूठ में,
  नदी के बाढ़ में,
  नहाते समय की क्रीड़ा में
  हर बात में कई उपमाएंँ मिलती हैं।

 दो किनारों में टकराकर बहनेवाली नदी की आवाज  की तुलना
  मेघ गर्जन से की गती है। 

 "उरु इडि चेर्न्द मुऴक्कम पुरैयुम।

वैगै नदी का प्रवाह आकाश से निकलने वाली गंगा के समान है –

" मिन आरमपूत्त वियन गंगै नंदिय

वानम पेयर्न्त मरुंगु ओऑत्तल" (वै_१६,चरण ३६,३७)

समुद्र उमड़ने के जैसे बाढ़ की वैगै नदी लगती है –"

नळि कडल् मुन्नियतु पोलुम थीम नीर वळि वरल वैयै वरउ "।

  वैगै नदी के बाढ़ को बाढ़ देखने आते आम लोगों की इच्छाओं की तरह की उपमा देते हैं।

 "वैयै नीर, वैयैक्करैतर वंदन्रु,

काणपवर ईट्टम् निवंदतु,

नीत्तुम करै मेला नीत्तम कवर्न्तदुपोलुम काण्पवर कातल।(वै१२,चरण ३२-३५).

नायक नायिका की रूठ दूर करने अति वेग से जैसा आता है,
वैसा है की तुलना नायिका की रूठ जल्दी दूर करने के सहज प्रयत्न का उल्लेख है।

 

"उणर्त्त उतरा ॵळ इऴै मातरैप् पुणर्तिय इच्चत्तुप् पेरुक्कत्तिन तुनैन्तु"(.वै ७ चरण ३६-३७).

 मानव के मनोभावों की तुलना नदी के बाढ़ से करना अन्यत्र कहीं ‌नहीं मिलती।

नायक के मनोवेग के समान नदी के बाढ़ का वेग
कैसी मनोवैज्ञानिक कल्पना दुर्लभ है।

नहाने की क्रीड़ाएँ :--

 नदी में नये बाढ के आते ही लोग नहाने आते हैं। उनके हाथ में नाना प्रकार के जल क्रीड़ाओं के साधन होते हैं। पिचकारियाँ हाथ में एक दूसरे पर छिटकाने, रंगबिरंगे गोल गोल थालियाँ, आनंद से जल क्रीडाएँ, युवक युवतियों की अठखेलियाँ  और नदी के बहाव का दृश्य पांडव राजा के रणक्षेत्र के समान दिखाई देता है।

 नल्लऴिसियार के गीत सौंदर्य:--
    परिपाडल में विष्णु,कार्तिक,वैगै नदी के दिव्यात्मक वर्णन.
मदुरै को समृद्धियाँ देनेवाली वैगै,तिरुप्परंकुन्रम में असुरों को वध कर विजेता बने कार्तिकेय,
विष्णु पधारे अलकर कोयिल ,
तीनों  का मानवानुकरण,दिव्यानुकरण,प्रकृति का मानवीकरण आदि
परिपाडल ग्रंथ की विशेषताएँ होती हैं ।

कार्तिकेय —

  प्राकृतिक उपमेय उपमान के साथ अतिरोचक ढंग से किया गया है।
  मुरुगन, विष्णु,वैगै नदी  के  भक्ति रस पूर्ण परिपाडल में चेव्वेऴ के बारे में
नल्लऴिसियार ने एक दिलचस्प गीत गाया है।
  इसके संगीतकार है नल्लच्चुदनार।
तिरुप्परंकुन्रम के भगवान कातिकेय के दर्शन के लिए जब कवि  जा रहे थे,
तब उन्होंने इस कविता की रचना की है ।

तेंपडु मलर कुऴै पूंतुहिल वडि मणि

एंतु इवै सुमंतु चांतम विरै इस

विडै अरै असैत्त वेलन कटिमरम
पाविनर उरैययोडु पण्णिय इसैयिनर
विरिमलर मधुविन मरम ननै कुन्रत्तु (चेव्वेल -१- ५)
मशाला,वाद्य यंत्र ,चंदन जैसे सुगंधित वस्तुएँ तोरण झंडेेे आदिएक ओर ले आनेवाले  लोग,
शहद की बूंदें टपकनेवाली सुमन भरी शाखाएँ,
अति आनंदित प्राकृतिक सुंदरता भरी तिरुप्परंकुनरम दिव्य क्षेत्र है।

परिपाडल में ईश्वर की आराधना करने सपरिवर मंदिर जाने की बात कही गयी है।
            तैयलवरोडुम तंतावरोडुम

   कैम्मकवोडुम कातलवरोडुम

   तेय्वम  पेणिततिसै तोलुतिनर चेल्मिन ”

घर की महिलाएँ ,पत्नी,माता-पिता,बच्चों के साथ चलना।

तिरुप्परंकुन्रम का प्राकृतिक वर्णन –
ओरु तिरम कण आर कुळलिन करैपु य़ेळ
ओरु तिऱम पण आर तुंपि परंतु इसै ऊत
ओरु तिरम मण आर मुलविन इसै एल
ओरु तिरम अण्णल नेडु वरै अरुवि नीर ततुंब
ओरु तिरम पाडल नल विरलियर ओल्कुु नुडंग
ओरु तिऱम वाडै उलरवयिन पूंकोडि नुडंग ओरु तिरमपाडिनी मुरलुम पालै अम कुरलिन
नीडुकिलर किलमै निरै कुऱै  तोन्ऱ
ओरु तिरम आडु चीर मञ्ञै अरिक्कुरल तोन्ऱ
मारु मारु उट्रन पोल मारु एतिर कोडल।
भावार्थ –
शत्रु  असुरों की सफलता के बाद श्री मुरुगन का तिरुप्परंकुन्ऱम .
वहाँ एक ओर गायक की वीणा की मधुर ध्वनी,
एक ओर फूलों पर भ्रमरों की गुंजन ध्वनी ,
दूसरी ओर पति के बाँसुरी वादन,
और एक ओर ढोल का गर्जन,
अन्य दिशा में पहाड पर से गिरनवले जलप्रपात की जोर  की कल कल आवाज़,
दूसरी ओर नर्तकियों  का गाना,

पायल ध्वनी,
मयूर  का किलकारना,

इस प्रकार मदुरै में  

प्राकृतिक  संगीत

विभन्न वाद्य यंत्रों  की मधुर ध्वनियाँ बज रही हैं, बजा रहे हैं।नागरिक अति खुशी का अनुभव कर रहे हैं।

परिपाडल तमिल संघ काल के  अंतिम  समय में रचित ग्रंथ है । दो हजार साल के  पुराने ग्रंथों में  तमिलनाडु  केलोगोंकेरीति-रिवाज,खगोलीय ज्ञान,भौतिक ज्ञान,प्राकृतिक प्रेम,ईश्वरीय ज्ञान,भारत की आध्यात्मिक एकता,पौराणिक कथा,नायक-नायिकाओं की अठखेलियाँ,रूठ,वेश्यागमन,जल-क्रीडाएँ जल-क्रीडों के उपकरण आदि वर्णन आज भी ताजी लगते हैं।

संदर्भ ग्रंथ.---

1.परिपाडल --पुलियूर केसिकन,गौरा प्रकाशक,

2, परिपाडल  चेन्नै नूलकम

3.परिपाडल, निबंध.दिनममणी।

4.परिपाडल भाषण  यू ट्यूब

5. परिपाडल, आरुमुख नावलार


भारतीय एकता

    

वि षय ---

 

भारतीय भाषाओं में एकता की भावना।


भारत अत्यतं प्राचीनतम देश है। आ सेतु हिमाचल की एकता भी अति प्राचीन है।

 श्रीरामधारी सिहं दिनकर ने अपने निबधं मेंलिखा है कि भारत की विविधताएँ प्रत्यक्ष है। प्रकृति की नदियाँ, पहाड,जंगल ,भाषा,खुराक ,पोशाक, जलवायु आदि प्रत्यक्ष दीख पड़तेहैं। तमिल भाषा के महाकवि राष्ट्र कवि सब्रुह्मण्य भारती ने कहा कि "  मुप्पदु कोडी मकुमडुयाळ्

चिंतनै  ओन्रडुयै  याळ"अर्थात तीस करोड़ चेहरे के भारतवासी हैं,पर एक ही चिंतन है। भारतीय एकता पर ध्यान देते समय निम्न शीर्षक मेरे मन मेंआते हैं।

१. आध्यात्मिक एकता

२.स्वतंत्रता संग्राम 

३. दर्र्शनीय स्थल

आध्यात्मिक एकता :--
  

अखडं भारत में  भक्ति की धारा बहती है। उत्तर भारत में कहा करतेहैं--"भक्ति द्राविड़ उपजी" | केरल के आदी शकंराचार्य  और मडंन मिश्र के वाद विवाद प्रसिद्ध है। उत्तर के विद्वान दक्षिण  आते थे । तमिल का व्याकरण अगस्त्य ने  लिखा है। उत्तर सेभगवान कार्तिकेय दक्षिण आये। उनपर अव्वैयार ने गीत गाये। रामायण, महाभारत, नल दमयन्ती , हरिश्चद्रं आदि के नाटक    

 आ सेतु  हिमाचल प्रसिद्ध है। सभी भारतीय भाषाओं में भगवान शिव, राम,कृष्ण के योगदान मिलतेहैं। मुर्गा भगवान का है। उन्हें मुरुगा कहतेहैं। तमिल में" मुरुगा  को  सुंदर  कहतेहैं।

सुंदर  होने  से मरुुगा, मर्गेु र्के ध्वजा के कारण मरुुगा ऐसी आध्यात्मिक एकता है। हनुमान  चालीसा की गँजू उत्तर से कुमरी अन्तरीप तक उठती है। राम और पांडव वनवास के समय भारत भर भटकतेरहे। उनकी यादगार सर्वत्रर्व मि लती है।

जनै तीर्थंकर्थं र अपनेसि द्धांतों के द्वारा लोगों को समु ार्ग दि खानेआये। तमि ल के अनेक नीति ग्रंथों  के कवि जनै मुनि हैं।

तिरुवल्लवुर रचित तिरुक्कुरल, नालडियार त्रिकटुकम,चिरुपंच मूलम आदि ।

तमिल के प्रसिद्ध पचं महाकाव्यों के नाम संस्कृत में  हैं --- उन में बौद्ध और जैन के काव्य हैं। जीवक चिंतामणी, मणिमेखलै 

कंुडलकेशी वलयै ापति शि लप्पधि कारम सस्ं कृत के हैं। भारतीय भाषाओंमेंसस्ं कृत के तत्सम ,तद्भव शब्द आज भी चालू

है।जन्म, दि न, मरण, शव, वर्ष ,मास, वार , परि वर्तनर्त , नि र्वा ह,शाला,आलय,मत्रं , मत्रं ी, श्मशान पर्वतर्व , चल जसै ेशब्द प्रचलि त

हैं। जब तक भारत मेंसस्ं कृत भाषा का सपं र्क रहा, लोगों मेंन्याय,अन्याय का भय था।ऋष्यश्रगंृ की कहानी द्वारा ब्रह्मचर्य की

महीमा सि खाई गयी। वसधु वै कुटुंबकम,्सर्वे जना सखिुखिनो भवन्त,ुजय जगत आदि नारा भारत की सभी भाषाओंमेंअनदिूदित हैं।

स्वतंत्रता सग्रं ाम

स्वतंत्रता सग्रं ाम का नारा "भारत छोड़ो, वदं ेमातरम, इन्कलाब जि दं ाबाद , स्वतंत्रता जन्म सि द्ध अधि कार आदि भी भारतीय

भाषाओंको स्वतंत्रता संग्राम की देन है। सुभाषष चद्रं बोस, बालगगंगाधर तिलक, लाला लजपति राय, विपिनचद्रं पाल, मोहनदास

करमचदं गांधी,पं. जवहरलाल नेहरू, राजगोपालाचारी,कामराज, आदि सभी नेता भारत भर आदरणीय है। उत्तर दक्षिण भेद

भाव के बिना उनकी कथाएँबता रही हैं।चित्रपट के गायक गायिका लता मंगेश्कर, आशा भोंसले, महुम्मदराफी,एल.आर .ईश्वरी आरडी बर्मनर्म अभिनेता, अभिनेत्री अपने स्वर,संगीत,अभिनय द्वारा एकता के प्रतीक बन गयेहैं। आचार्य विनोबा

भावे भूदान यज्ञ के द्वारा हिन्दी की गूँज भारत के हर गाँव, शहर में उठी।

महात्मा करमचदं गाँधी की दूर्दर्शी के कारण हिंदी  प्रचार में ज़ोर मिला। साहित्य का आदान प्रदान होने लगा।

चद्रं शखेर आजाद, सुखदेव, भगतसिंह,वांचीनाथ, तिरुप्पूर कुमरन आदि देश भक्त भारतीय एकता के ज्योति स्तभं हैं ।

पूरे देश मेंआज गूँज रहा है--सारे जहां सेअच्छा हिंदुस्तान हमारा हमारा। भारतीयार के स्वर में "पारुक्कुळ्ळे नल्लनाडु। भारत नाडु।

जय भारत।जय भारत की एकता,


एस.अनतं कृष्णन ,चेन्नै तमिलनाडु। के हिंदी प्रेमी प्रचारक।


तिरुक्कुरल सार

 


திருக்குறள் ஆத்திசூடி    तिरुक्कुरल एकवाक्य सार 





हिंदी व्याख्या :---एस .अनंत कृष्णन , हिंदी प्रेमी ,हिंदी प्रचारक ,अनुवादक 

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक ,हिंदू उच्च माध्यमिक विद्यालय ,त्रिवल्लिक्केनी ,चेन्नै
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तिरुक्कुरल में तीन खंड हैं। 133 अध्याय है ।एक अध्याय में दस तिरुक्कुरल है ।कुल 1330 कुरल हैं ।
तीन खंड है–1.धर्म 2.अर्थ 3.काम ।
इन सब का सार रूप देने का प्रयास है  हिंदी में ।
आशा  है  अतमिल लोगों को समझने आसान होगा ।
पाठकों से निवेदन है  कि 

इस अनुवाद के गुणों-दोषों को
अभिव्यक्ति कीजिए  जिससे मेरा प्रोत्साहन बढ़ेगा और मेरी अपनी ग़लतियाँ समझ में आएगी।
और भी सुचारु रूप से लिखने में समर्थ बनूँगा ।

  मेरे तिरुक्कुरल ग्रंथ का अनुवाद notion press में 

ग्यारह भागों  में प्रकाशित  हुआ है ,जो अमेजान और notion प्रेस में मिलेगा ।
मेरा सम्पर्क –8610128658


             धर्म   

प्रार्थना 

1.अनंत शक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना  करना है। वही इस भवसागर  पार करने का मार्ग है। भगवान तटस्थ है।समरस सन्मार्ग दर्शक हैं।धर्म रक्षक है।

वर्षा 

2. वर्षा के अनुग्रह और कृषि नहीं तो जीना दुश्वार है ,जितना भी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति हो ,अंतरिक्ष पर मानव पहुँच जाए ,पर कृषि  ही प्रधान माना जाएगा । भूखा  भजन न गोपाल ।इधर उधर घूमकर अगजग को  किसान के सामने‌ नत्मस्तक करना ही पड़ेगा। 

पूर्वजों का सम्मान 

3. ईश्वर के अनन्य भक्त ,अनासक्त ,धर्म प्रिय ,तटस्थ ,संयमि महात्माओं  की  स्तुति कर ।
अधर्मियों को मृत्यु होने पर प्रशंसा  सही नहीं है ।
धर्म 

4.   धर्म सबल है। धर्म धन ,यश ,श्रेष्ठता सब देगा ।काम ,क्रोध ,मद लोभ आदि अधर्म है ।
गृहस्थ :-

5. गृहस्थ  धर्म  तभी श्रेष्ठ है जब गृहस्थ अपने पिता,माता ,पत्नी ,नाते रिश्ते ,साधु -संतों और पूर्वजों की आत्मा आदिसबकी धर्म पूर्ण सेवा करता है।
अर्द्धागनी 

6. ज़िंदगी  की सहायिका  जीवन संगिनी अर्द्धांगि्नि‌ग्नी पति की आर्थिक स्तिथि के अनुकूल अपने ससुराल की सेवा न करेगी ,पतिव्रता  और सहनशील न रहेगी तो  गृहस्थ का जीवन  में आत्मानंद और संतोष दूभर होगा।पत्नी ही  पति के सुखी जीवन का  आधार  स्तम्भ है।
संतान भाग्य 

7.  मानव जीवन की बहुत बड़ी असली सम्पत्ति सुपुत्र ही हैं । कुल की मर्यादा रक्षक है। सुपुत्रों का आलिंगन,चुंबन,

तुतली बोली,  शिशुओं के लघु करों  से मिश्रित भोजन आदि ब्रह्मानंद सम स्वर्ग तुल्य है। वही अन्य चल अचल संपत्तियों से  बढ़ी है।
प्यार 

8.प्यार की संपत्ति के लिए कोई  कुंडी नहीं है।प्यार में त्याग ही है।प्यार ही धर्म है। निस्वार्थ प्रेम में लेन -देन की बात नहीं है। प्रेमहीन लोगों को धर्म देवता वैसा जलाएगा,जैसा धूप हड्डी हीन जीवों को जलाता है।


अतिथि सत्कार 

9. .अतिथि सत्कार  ग‌हस्थ जीवन का बड़ा लक्ष्य होता है। अतिथि सत्कार करने वालों पर  सदा अष्टलक्ष्मियों की कृपा की वर्षा होगी।
मीठी बोली 

10.मधुर बोली का महत्व सर्वोपरी है। मीठी बोली सुखप्रद है। कल्याणकारी है।मधुर फलप्रद हैं।
    शत्रु को मित्र ,मित्र को शत्रु बनाने  की शक्ति  मधुर बोली में है ।

कृतज्ञता 

11. कृतज्ञता मानव जीवन का श्रेष्ठ गुण होता है।कृतघ्नता की मुक्ति नहीं है।वक्त पर की लघु मदद ब्रह्माण्ड से बडी है।
तटस्थता 

12. तटस्थता अति उत्तम धर्म है , श्रेष्ठ है ;अनासक्त जीवनप्रद है ।स्वार्थ से परे हैं।तराज़ू  समान तटस्थ रहना ही ज्ञानी का लक्षण है ।
नम्रता /आत्म नियंत्रण 

13. नम्र रहना ही ज्ञानी का लक्षण है।कछुआ समान पंचेंद्रियों को क़ाबू में रखकर विनम्र रहनेपर साथों  जन्मों  में श्रेष्ठ रहेंगे ।जीभ को क़ाबू में रखना अति अनिवार्य है।आग से लगी चोट भर जाएगी ,पर शब्दों की चोट कभी नहीं भरेगी ।
संयम  ही सज्जनता है।
अनुशासन 

14. अनुशासन का पालन करना मान -मर्यादा का आधार है । कुल गौरव रखना अनुशासन पर ही निर्भर है।चालचलन और चरित्र ही सदा मानव मर्यादा का संरक्षक है ।
परायी पत्नी की इच्छा पाप 

15. परायों की पत्नी से इच्छा करना , सम्भोग करना  बेवक़ूफ़ी  है । इससे  होनेवाला अपयश , पाप ,दुश्मनी स्थायी कलंक होगा । बदनाम कभी नहीं मिटेगा ।


 16 – सब्रता
      मानवता का श्रेष्ठ  गुण सब्रता याने  सहनशीलता है।हमें निंदा करनेवाले ,अहित करनेवाले ,हम पर क्रोध 

दिखानेवाले ,दुःख देनेवाले  आदि  सबको क्षमा करना और सहन शीलता दिखाना स्थायी यशों के मूल या आधार स्तंभ है। सहनशील मानव का यश अमर हैं। इस संदर्भ में रहीम का दोहा स्मरणीय है।
“ 

छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात। का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।


 17 – ईर्ष्यालू न होना
        ईर्ष्या  आजीवन मानव के लिए दुखप्रद है ।ईर्ष्यालु आमरण शांतिरहित  और असंतोषी  रहता है।उसके घर में वास करने लक्ष्मी देवी  कभी नहीं चाहती ।अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी को छोड़कर जाती है। ईर्ष्यालु कंजूसी होने से बदनाम और अपयश स्थायी बन जाता है ।दानी  व्यक्ति से ईर्ष्या करनेवाले का उद्धार कभी न होगा ।

18 – लालच में न पड़ना
    धर्म पथ पर जाकर सुखी जीवन बिताना है तो लालच में पड़ना नहीं चाहिए ।लोभ वश दूसरों की चीजों को चोरी करने पर लोभी ज्येष्ठा देवी का प्यार बनजाएगा ।ज्ञानी लोभ से दूर रहेंगे ।लोभी मूर्ख ही बनेगा ।
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,जब मन में लगै खान ।

तब पंडित -मूर्ख एक समान ,क़हत तुलसी विवेक ।

19 – चुग़ली करना / पीठ पीछे निंदा करना
        चुग़ली करना अधर्म है। किसी एक के सामने निंदा करना सही है पर पीठ के पीछे अपयश की बातें करना बुरों का काम है। अपने निकट दोस्त को उसकी अनुपस्तिथि में निंदा करता है तो अन्यों के बारे में क्या करेगा। अपने दोषों को पहचानकर सुधरना उत्तम गुण है।
कबीर –

"बुरा जो देखन मैं गया ,बुरा न मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।।
        अतः वल्लुवर के अनुसार चुग़ल करना मूर्खता है। 

 20 बेकार बातें न करना 

 बोलना है तो कल्याणकारी बातें ही करनी चाहिए।

घृणा प्रद  बातें करनेवाले बड़े होने पर भी नफ़रत के पात्र बनेंगे ।अनुपयोगी बुरी  बातें करनेवाले ,हानिप्रद बातें करनेवाले अनादर की बातें हैं ।

21 – बुराई करने से डरना चाहिए।

बुराई करने से होनेवाली हानियों का भय  हमेशा ही सज्जनों के दिल में रहेगा  । दुर्जन ही बुराई करेंगे ।

जो अपना कल्याण चाहते हैं ,उनको दूसरों की बुराई करनी नहीं चाहिए ।   बुराई करने पर उसका दुष्परिणाम छाया की तरह साथ आएगा ।   


 22 – समाज की  सेवा /निष्काम कर्तव्य करना
      मानव जो कुछ कमाता है ,वह दीन दुखियों की सेवा केलिए  है ।ग़रीबों की सेवा करके समरस आनंद का अनुभव ही मानव को महान बनाता है।परायों की मदद करने का गुण आदर्श लोगों में ही रहेगा। 

वे अपने लाभ -हानि पर विचार न करके परोपकार में ही लगेंगे।
         

 23 –दानशीलता –
    दूसरों की मदद करने कुछ देना ही दान शीलता है। निष्काम दान देना श्रेष्ठ सज्जन का लक्षण है। ग़रीबों की भूख मिटाना भी दान शीलता है। देना ही बड़ा धर्म है।


 24 – यश
      दान देकर यश कमाना ही शाश्वत यश है ।मानव जीवन में यश ही प्रधान है ।यश रहित पैदा होने से जन्म न लेना ही अच्छा है। मानव जन्म की सार्थकता यश कमाने में है।


 25 – सहानुभूति /करुणा

 मानव की श्रेष्ठ सम्पत्ति ही करुणा है ।सहानुभूति जिसमें है वही  श्रेष्ठ है  ।करुणा जिसमें  है , उसको किसी प्रकार का दुःख नहीं है। 

धन नहीं तो सांसारिक सुख नहीं है ,करुणा /दया नहीं तो ईश्वर के यहाँ स्थान नहीं है।
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२६  माँस परहेज़ 

माँस खाना अधर्म है। अपने शरीर पालन करने दूसरे जीव का माँस ज्ञानी नहीं खाएँगे ।मांसाहारी मनुष्य नरक से बाहर नहीं आएँगे। उनमें दया नहीं रहेगी ।
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२७ तपस्या —
अपने कष्टों को सहना ,परायों को कष्ट न देना ही तपस्या है।तपस्या के लिए मनोबल चाहिए। तपस्वी की हर अभिलाषा पूरी होगी ।
मन  की चंचलता दूर होगी ।तपोबल से अगजग की भलाई  होगी ।तपस्यों की सेवा करने के लिए ही मानव गृहस्थ जीवन में लगते हैं।

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२८ -पाखंडता –
  अधर्मी ,ठगी ,बदचलन ,स्वार्थी ,घमंडी  आदि पाखंडता है।
आदर्श धर्मावलंबित व्यक्ति को सिर्मुँड़न ,बाह्य वेष आदि  की ज़रूरत नहीं है ।उनकी चालचलन अच्छी हो तो मर्यादा मिलेगी
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२९ – मद्य निषेद —पियक्कड़ अपने कुलमार्यादा  खो बैठेगा । अपना स्वाभिमान खो बैठेगा ।माँ पत्नी के घृणा का पात्र बनेगा।अपना चरित्र भी बुरा होगा। पियक्कड़ को समाज में बेज्जती होगी । अपनी सम्पत्ति खोकर पीनेवाले को क्या कह सकते हैं। अन्य पियस्क्कडों के क़ुचाल देखकर भी पीनेवाला बड़ा मूर्ख है ।
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३०। सत्यता
सभी धर्मों  में श्रेष्ठ धर्म सत्य बोलना है। सत्यवान तपस्वी से महान है।माँ के अंधेरा हरानेवाले दीप है सत्य।सत्यवान की इज्जत सदा अमर रहेगी ।जान बूझकर झूठ बोलनेवाले की आत्मा ही उसको जलाएगी ।

लघुपंचमूल

 लघुपंच   मूल


सिरुपंच  मूल।

அச்சமே, ஆயுங்கால் நன்மை, அறத்தொடு,

கச்சம் இல் கைம்மாறு, அருள், ஐந்தால்-மெச்சிய

தோகை மயில் அன்ன சாயலாய்!-தூற்றுங்கால்

ஈகை வகையின் இயல்பு.  (206)

अच्चमे  आयुंगाल  नणमै ,अरततोड़ू
कच्चम  इल  कैमारु ,अरुळ ,ऐंताल -मेच्चिय
तोकै  मयिल  अन्न  सायलाय ! तूट रूंगाल
ईकै  वकैयिन  इयलबु।

    अधर्मकर्म करने भय खाना, सोचविचारकर  भलाई  करना, धर्मपथपर जीना, बंधन रहित मदद करना, दान-धर्म मार्ग  अपनाकर  देना  येपाँच  देन वर्ग  के सहज  गुण   होते  हैं.

கைம்மாறும், அச்சமும், காணின் பயம் இன்மை,

பொய்ம்மாறு நன்மை, சிறு பயம், மெய்ம் மாறு

அருள் கூடி ஆர் அறத்தோடு, ஐந்து இயைந்து, ஈயின்,-

பொருள் கோடி எய்தல், புகன்று.   (207)

कैममारुं    


  1. கைம்மாறாகத் திருப்பிச் செய்தல் 

  2. தீயன செய்ய அஞ்சுதல் 

  3. எதிராளிகளைக் காணின் அச்சம் கொள்ளாமை 

  4. பொய்யை மாற்றி நன்மை செய்தல் 

  5. சிறு பயன் தரக்கூடியதாயினும் உடம்பால் உதவும் அருளோடு கூடிய அறம் 


இவை ஐந்து பாங்குளோடு கொடுத்து உதவினால், பொருளைக் கோடி கோடியாகப் பெறலாம்.


 

मदद  के बदले में मदद, बुराईकरने के लिए  डरना, दुश्मनों  का  सामना करना.   झूठ  के बदले भलाई  करना,  थोड़े  से   लाभ  के लिए  शारीरिक मदद धर्म से  करना  ये   पॉंच  के पालन  से  करोड़ों  की संपत्ति  पा  सकते  हैं  लघु