Sunday, February 4, 2024

कविताएँ

 



नमस्ते वणक्कम साहित्य बोध मंच को। शीर्षक ---नाश नाश की जड़ है। नाश नाश की जड़ हैं, नशा नाश हानिकारक छपा है सही। नाश गरीब परिवारों का। पर सरकार की आमदनी की जड। जंगलों का नाश , नगरों का विकास। जंगली जानवरों का नाश , ग्रामीण जनता की सुरक्षा। समुद्र की लहरों का आहार बड़ी बड़ी इमारतें,सुंदर मंदिर।। पर लाभ खोज अनुसंधान करनेवालों को। ताज़ी खबरें छापने वाले को। तमिलनाडु में आत्महत्या, अपराध बढ़ाने राजनैतिक दलों के प्रोत्साहित रकम आत्महत्या के विरुद्ध न बोलता जनता,कानून, सरकार। हजारों झीलों का नाश, कितने कालेज, स्कूल,कारखाने, गगन चुंबी इमारतें नाश में लाभ ठेकेदारों को।। नाश नाश की जड़, एक का पतन, दूसरों का उत्थान। एक व्यापारी का घाटा , दूसरे व्यापार का लाभ। घोडागाडियों का धंधा नाश। आटो, कार,टैक्सी धंधा का जोश।। नाश में उत्थान, खड़ी बोली का उत्थान हिंदी के र…
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7:05 pm
23/09/2023
नमस्ते.वणक्कम् सुनहरा भविष्य। मौलिक विधा मौलिक रचना 23-9-2021 भविष्य किसका है सुनहरा? जो भविष्य की चिंता न करके, वर्तमान में कर्तव्य निभाते हैं, उनका भविष्य सुनहरा। भूत के संतापों को भूलकर वर्तमान में खुशी रहता है उसका है भविष्य सुनहरा।। भगवान जो पद देता है, बगैर भ्रष्टाचार व रिश्वत न लेकर फ़र्ज़ निभाते हैं,उनका भविष्य सुनहरा। भगवान की प्रार्थना, निस्वार्थ दान धर्म करता हे, उसका भविष्य है सुनहरा। जो लोभ लालच में अहंकार और काम में न पडते , उनका भविष्य है सुनहरा। स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
6:34 pm

7:48 am
27/09/2023

Edited12:27 am
नमस्ते वणक्कम,एस.अनंतकृष्णन का।। स्वच्छता आसपास की स्वच्छता पंचतत्वों की स्वच्छता थूक बगैर सड़कें, धुएं-धूल रहित वातावरण, अति अनिवार्य है सही।। मानव के तन, मन,धन अति स्वच्छ हो, आँखों द्वारा जो देखते हैं, उनके प्रति चाहिए स्वच्छता। बुरी नजरों से देखना भी मानव के लिए अति कलंग। जलन भरी दृष्टि,चाह भरी दृष्टि, घृणा भरी दृष्टि, भेद भरी दृष्टि, लोभ भरी दृष्टि ,लालच भरी स्वच्छता नहीं जान। बोली में न हो ईर्ष्या, बोली में न हो कठोरता। बोली में प्रकट न हो दर्द भरा शब्द, ईर्ष्या भरा शब्द। प्रेम भरे मधुर शब्द प्रकट हो।। न करें मन को प्रदूषित शब्द।। वातावरण की शुद्धता से सोच विचार की शुद्धता, कर्तव्य की स्वच्छता, रिश्वत भ्रष्टाचार रहित आमदनी, चाहिए मानव को, वही स्वच्छता भरा जीवन स्वस्थ मन,स्वस्थ तन,स्वस्थ धन स्वच्छ जीवन , चिंता रहित जीवन में चिंता तक।। कबीर का कहना ह…
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2:33 pm
7:40 am
30/09/2023
साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को मेरा अर्थात ऍस.अनंतकृष्णन का सादर प्रणाम।। विषय --धोखे से बड़ा कोई दुर्भाव नहीं। विधा --अपनी हिंदी अपनी भाषा अपनी शैली अपने विचार अपनी भावाभिव्यक्ति। ता.30-9-2023. ++++++++ धोखा देना , धोखा खाना, दोनों दुखी। देनेवाले अपने आनंद बाह्य जगत में मना नहीं सकता।। जिसने धोखा खाया, जब पता चलता, ठगा गया है, वह दुखी है, और अधिक दुखी हैं, जब पता चलता कि विश्वस्त ने धोखा दिया है, बखाने धोखा दिया है, प्रेमी या प्रेमिका ने ठगा है, तब दुख और बढ़ जाता है।। जिसने धोखा दिया, धोखे के लाभ, पदोन्नति,तब सबको पता चला जाएगा, छल से पद पाया है, तब अपमान का पात्र बन जाता।। धन से धोखा, तन से धोखा, मन से धोखा, वचन से धोखा, कर्म से धोखा, षड्यंत्र से धोखा। वह प्राप्त करता , अधूरा आनंद।। सब को पता चलेगा तो सर्वाधिक मान को बैठता।। लडकियाँ धोखा द…
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4:16 am
02/10/2023
Forwarded
kabir-parmeshwar.pdf
368 pagesPDF3 MB
4:56 am
04/10/2023

2:04 pm
7:53 pm
7:53 pm
30:01
7:53 pm
+8
8:28 pm
नमस्ते वणक्कम। साहित्य में सत्यता चाहिए। चित्रपट साहित्य चित्त को प्रदूषित कर देता है। पुलिस कठपुतली ऐएएस अधिकारी भयभीत। ऐसे कथानक कर देता है विचार प्रदूषण। आलिंगन चुंबन हमारे पूर्वज छिपकर करते। आजकल सार्वजानिक जगहों में आलिंगन चुंबन पशु-पक्षी सा मानव जीवन। सब है स्नातक स्नातकोत्तर। अदालत में तलाक मुकद्दमा दिन दिन बढ़ता जा रहा है। सोचना भारतीय सनातन धर्म। न उसमें जाति-संप्रदाय की मजहबी लड़ाई। त्यागमय जीवन। इच्छा रहित जीवन। ईर्ष्या रहित जीवन। ब्रह्मचर्य जीवन। संयम पंचेंद्रिय नियंत्रण।। चैन भरा जीवन जीने सब सत्य त्यागमय नेक जीवन अपनाओ। अहिंसा का पालन करो। यही है सनातन धर्म। बिताओगे संतोष भरा जीवन। आनंदमय जीवन। ईश्वरानुग्रह। प्रदूषित वातावरण। प्रदूषित शिक्षा। हर बात में प्रदूषित।। साहित्यकार का कर्तव्य सद्विचार मानव मन में लाना। स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन। तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
11:24 pm
08/10/2023
आशा का दीप जलाना है, आधुनिक शिक्षा धन प्रधान। धन लाखों खर्च करना है, तभी वाँछित विषय का स्नातकोत्तर बनना, न नैतिक शिक्षा,न मानवता विकसित शिक्षा।। अंक प्रधान उच्च शिक्षा नहीं जातियाँ प्रधान। अंक में कम ,उम्र अधिक आशा दीप जलाना। पच्हत्तर साल की आज़ादी पर न मानव में नहीं समानताएँ। असमानाताएँ बढ़ती जा रही है। पीड़ित युवकों में आशा का दीप जलाना है। नर हो न निराश करो मन को। न ध्यान दो‌ धन का, न ध्यान देना जाति धर्म का अपना कौशल क्षमता जान लो। बड़े बड़े वैज्ञानिक की जीवनियाँ पढ़ोगे तो पता चलेगा, अपने मंजिल पर अंडे रहे। न कालेज की शिक्षा , न मार्गदर्शक कर चुके नये नये आविष्कार। मानव में मानवता है तो आशा का दीप जलेगा अपने आप। आशा का दीप जलाने कालिदास, तुलसीदास, सूरदास कर्ण , कबीर, विदुर की जीवनियाँ पढ़ लो। मन चंगा तो कठौती में गंगा।। आशा के साथ आगे बढ़ना, अपना…
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Edited2:15 pm
10/10/2023

6:42 pm
13/10/2023
ॐ हरिनारायण हरिनारायण ॐ आज मेरे मन में उठे विचार। ******* स्वचिंतक - स्वरचयिता --यस। अनंतकृष्णन ++++++++++++++++++++++++++ जग देखा ,कोई जागता नहीं ; जग देखा ,कोई जगाता नहीं। जगाने के प्रयत्न में लगे लोग , जग की दृष्टि में हैं पागल। राम राज्य की स्थापना , राग अलापते लोग। राम राज्य में थे राक्षस। राम राज्य में थे स्त्री मोही ; राम राज्य में थे कामांधकारिणी। राम राज्य में थे ऐसे धोबी , सीता का हँसी उड़ाया; राम के गुण पर कलंक लगाया। अग्निप्रवेश सीता पर आरोप। जग को आदर्श दिखाने भेज दिया वन वास ; अश्वमेध यज्ञ अपने अधिकार जमाने अड़ोस -पड़ोस के राजाओं को डराने -धमकाने। अपने ही पुत्रों के साथ लड़ाई। _--------------- राम राज्य में भी गुह ,शबरी जैसे निम्न जाति के लोग; उनको गले लगाने , जूठा खाने में दिखाई अपनी महानता। नतीजा रामायण काल के मनुष्य -म…
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10:00 pm
15/10/2023
Forwarded
10:11 am
11:26 am
एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार । समानुभूति में सहानुभूति प्रधान । सर्वेश्वर की सृष्टियों में सम अनुभूति नहीं के बराबर। जहाँ आदमखोर बाघ,वहाँ साधू हिरन उसका खाना । जहाँ कोमल फूल,वहाँ चुभता काँटा। मानव सृष्टि में ही सहानुभूति है , मनुष्यता नहीं है तो मानव अति भयंकर । मानव सर्वभभक्षी,न एक खास गुण । सम अनुभूति कैसे,इन्सानियत न होने पर। सभी मानव तो लिखित संविधान में बराबर । व्यवहार में कितने भेद । सब में नहीं नायकत्व गुण । सबमें नहीं बुद्धि लब्धि बराबर। सबके सब न त्यागी,न भोगी। सब निस्वार्थी नहीं सब स्वार्थी भी नहीं। सबके सब पुण्यात्मा नहीं,पापात्मा भी नहीं। सम अनुभूति नहीं, मानवता है तो सहानुभूति। स्वरचित भावाभिव्यक्ति एस. अनंतकृष्ण का।
12:31 pm
एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार। सम +अनुभूति सम अनुभूति का मानव मिलना, संभव हो या असंभव, पता नहीं । तमिल साहित्य में एक सिद्ध पुरुष रामलिंग अडिकळार । जिन्होंने समरस सन्मार्ग की स्थापना की। उन्होंने सूखे पौधे को देखकर समानुभूति प्रकट की, जब नीर बिन, सूखा पौधा देखता हूँ, तब मेरा मन भी सूख जाता है। पौधे दुख को अपना दुख सम एहसास करना समानुभूति है। पारी नामक एक राजा था, वह बड़ा दानी था, एक दिन वह अपने रथ पर जा रहा था तो देखा, एक मोगरे की लता, फैलने के लिए सहारा नहीं, तब समानुभूति वश अपने रथ को ही लता मंडप बनाकर पैदल चला। यह तो समानुभूति, वनस्पति जगत के प्रति।। नाते रिश्ते भाई बहन दोस्त के दुख को अपना दुख मानकर पीड़ित होना समानुभूति है।। अब इसरऐल के युद्ध में जिन बच्चों को घायल देख संताप का महसूस करना सहानुभूति न समानुभूति।। समानुभूति में दूसरों के …
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12:32 pm
17/10/2023
बढ़िया अनुवाद है।के. रामनाथन जी।आपकी मन:प्रेरणा से निम्न पंक्तियांँ। ++++++±++++++++++ मैं हूँ शरणार्थी माँ अभिरामी! तेरा ही सृजन हूँ मैं। तू तो सर्वज्ञ हैं, जो कुछ भी आए, भला -बुरा का प्रभाव। तेरे ही के कारण। मैं तो भोलाभाला नादान।। मैं तेरा शरणार्थी।। तू शरणार्थी रक्षिका। भक्तवत्सला। जैसा चाहो , वैसा नचाओ। मेरी उद्धारिका, तेरे चरण वंदन।। अनंत सुख, तेरी देन। अनंत दुख तेरा खेल। न किसी की परवाह, मैं तेरा शरणार्थी! जैसा भी नचाओ, मैं तेरे चरण कमल का दास! तेरा ही सृजन मेरा। यश अपयश की जिम्मेदारिनी। मैं हूँ तेरा शरणार्थी। नाम है अनंत कृष्णन।
7:28 am
என்னைப் பற்றி. मेरा विवरण नाम :-एस., अनंतकृष्णन சே.அனந்தகிருஷ்ணன். पिता का नाम –पि.वि.सेतुरामन भाषा –तमिल भाषी தமிழ் கல்வித் தகுதி --M.A.,M.Ed., Dip. In Journalism. பிறந்த தேதி जन्म की तारीख -8-7-1950 शैक्षणिक योग्यता –स्नातकोत्तर हिंदी और शिक्षा। राष्ट्रभाषा प्रवीण प्रचारक। பணி மற்ற சேவை 1967 முதல் 1977 வரை ஹிந்தி எதிர்ப்பு காலத்தில் ஹிந்தி பரப்புனர்.பழனி. १९६८ से १९७७ तक मुफ्त हिंदी प्रचार, पलनी केंद्र दिंडुक्कल। 1977-81. வெஸ்லி உயர்நிலைப் பள்ளியில் பட்டதாரி ஹிந்தி ஆசிரியர். 1981 முதல் 2006 வரை முதுகலைப் பட்டதாரி ஹிந்தி ஆசிரியர். 2006 முதல்2008 வரை தலைமை ஆசிரியர் ஹிந்து மேல் நிலைப்பள்ளி திருவல்லிக்கேணி.சென்னை १९७७ से २००८ तक स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक, प्रधान अध्यापक। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के बी.एड., विद्यालय के प्राध्यापक தக்ஷிணை பா…
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1:12 pm
18/10/2023

2:53 pm
pm
19/10/2023
नमस्ते। माता बरसा दो अपनी कृपा। जानता हूँ, भाग्य रेखा, सिरो रेखा लिखकर ही धरती पर मेरा जन्म दिया है। कर्मफल, पूजा फल, पूर्वजों के पुण्य पाप बल भोगना ही सर्वेश्वर के कानून नियम। इसमें से कोई भी छूटता माँ। ये पाप हमने जान -बूझकर या अनजान में या विवशता के कारण, नाते रिश्तों के कारण, मित्र , लंगोटी यारों के कारण, शासकों के कारण, ऊपर अधिकारियों के कारण, लोभ वश या ईर्ष्या वश या गलतफहमी से या अहंकार से, पूर्व जन्म के असर के जो भी हो माफ़ करना, माता का गुण। पाप या पुण्य विधि की विडंबना तेरे ही के कारण। तूने माया मोह की सृष्टियाँ की है। मानव को ज्ञान दिया है, बुद्धि दी है पर माता यह माया महा ठगनी, तेरी सूक्ष्म लीला, मानव को संताप देना। अमीर के यहाँ , असाध्य रोगी संतान। दीर्घ रोगी,लंबी आयु।। अति चतुर अति बुद्धिमान अल्पायु में स्वर्ग सिधारना, अड़चनें भर…
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6:39 pm

1:35 pm

1:36 pm
21/10/2023
माता दुर्गाजी शक्ति देना। लक्ष्मी माताजी धन देना। सरस्वती जी विद्या देना। अष्टलक्ष्मी जी अष्ट ऐश्वर्य देना।। नव निधियाँ देना। नव ज्ञान, नव अनुभूति, नव शक्ति देना।। नव रात्रि पर्व में त्रिदेवियों के चरण कमलों पर सादर प्रणाम।। शरणार्थी मैं, शरणागत वत्सलाए आप।। स्वस्थ तन मन धन देना।।
Edited1:40 pm
22/10/2023


मेरी अभिव्यक्तियाँ

  साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को 

एस. अनंतकृष्णन का नमस्ते वणक्कम।

विषय ---समयबद्धता जीवन में करिश्मा पैदा करती है।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।


समय  घूमता चक्र है,

चलता रहना उसका गुण है,

आगे आगे जाना,

पीछे न मुडना,

उनका स्थाई सहज क्रमबद्ध जीवन।

अमूल्य समय बेकार ही चला जाता तो

पछताना ही मानव सिरोलेखा।।

मानव चंद सालों का मेहमान,

धरती माता का।

यम के हाथ में सदा नियंत्रित।।

यम की रस्सी गले में,

कब खींचेगा पता नहीं।

फाँसी  पर  चढ़ाने  सन्नद्ध।,

पल में प्रलय होगा,

तब पछताने से लाभ नहीं।

अच्छे दिन चलेगा,तो

सर्वेश्वर भी वापस नहीं दे सकता।

 कालांतर में शैशव,बचपन,लड़कपन, जवानी

प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था, बस शिथिलता मृत्यु।।

न ईश्वरीय अनुग्रह,न डाक्टर की बुद्धि

न धन दौलत, न पद अधिकार,पुण्य पाप

लोकप्रसिद्धता,लोकप्यार न रोक सकता समय गति।।

हर कोई अ…

[06:27, 23/01/2024] sanantha.50@gmail.com: हर किसी का मन

हर्षोल्लास  में

यह न सोचता

यह सुख है अस्थाई।।

स्थाई सुख मानव जन्म में

किसी को भी नहीं।

 राजा भी रंक भी 

एक एक अपने अभावों को लेकर

 रोता ही रहता है,

राम भी रोया,कृष्ण भी रोया।

शिव भी, लक्ष्मी पार्वती भी।

 सरस्वती की कृपा प्राप्त

 आत्मज्ञानी कभी न रोता,

उसके मन में  अभेद तटस्थ।

न सुख न दुख 

न जन्म मरण की चिंता।

एस. अनंत कृष्णन
 नमस्ते वणक्कम

मानव में तनाव,दुख,काम,क्रोध,ईर्ष्या,अहंकार

तन प्र्धान,मन प्रधान,

लौकिकता प्रधान ये ही सामाजिक माध्यम ,

आत्मा प्रधान,परमात्मा प्रधान अति कम।

सोचो,समझो,ये सब नश्वर।यह दुनिया नश्वर ।

सर्वेश्वर और आत्मा की प्रधानता

शांति का संतोष का मार्ग जान।

Friday, January 19, 2024

हिंदी औरईश्वर

 ईश्वर मेरे जीवन में प्रत्यक्ष प्रमाण है। तमिलनाडु में हिंदी विरोध का आंदोलन चल रहा था। प्रांत भर में बसें जलाना, रेल रोकना, हिंदी अध्यापिकाओं के बाल काटना, हिंदी किताबें जलाना आदि सर्वत्र हो रहा था। तभी ईश्वर ने मुझे हिंदी प्रचार में लगाया। सबेरे बस चलानेवाले, पत्थर फेंकने वाले शाम को मेरे यहाँ हिंदी सीखने आते थे।

एक बड़े क्रांतिकारी दल ने मुझे घेर लिया, मैंने कहा विदेशी अंग्रेज़ी भाषा अति मुश्किल ,वह हमारी भारतीय भाषाओं को निगल रही है। तमिल में बोलना भी अपमान समझा रहे हैं। अंग्रेज़ी मिश्रित तमिल बोलने में गर्व का अनुभव कर रहे हैं। हम तो देश के कल्याण के लिए हिंदी का प्रचार मुफ्त में  कर रहे हैं। कोई भी अंग्रेज़ी मुफ्त में नहीं सिखाएँगे। आप आइए। मैं मुफ्त में सिखाऊँगा। संस्कृत को विरोध करनेवाले  दल का चिन्ह उदय सूर्य तमिल नहीं है।

हिंदी संस्कृत की बेटी है।

तमिल भाषी रोज़  हजारों संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्द बोल रहे हैं। अधिकांश लोगों के नाम संस्कृत के हैं। जैसे जयललिता, रामचंद्र, करुणानिधि, दयानिधि,दयआलू अम्मा आदि।

इन नामों के तमिल अर्थ जानने पर हजारों हिंदी संस्कृत शब्द सीख जाएँगे।

 आप में दिनकर, प्रभाकर,रवि, ‌नाम है, इनके तमिल अर्थ कतिरवन,परिधि है।

कमला,सरोजा,पद्मा,जलजा,

नीरजा का अर्थ तामरै।

 वार है तमिल में वारम् कहते हैं।

दिन को दिनम् कहते हैं।

संदेह को संदेहम् कहते हैं।

विश्वास को विश्वासम् कहते हैं।

  शामको की हिंदी विरोधी हिंदी सीखने आये।

 मेरे साहस और समयोचित भाषण ईश्वरीय देन है।

एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु के हिंदी प्रेमी प्रचारक।

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक,

हिंदू हायर सेकंडरी स्कूल,तिरुवल्लिक्केणी, चेन्नई 5.

 नमस्ते वणक्कम।

श्रद्धालु भक्त ईश्वर पर 

 दृढ़ विश्वास करके

 आत्मा को पहचानकर 

आत्मबोध और आत्मज्ञान पाते हैं।

तब मनुष्य मनुष्य में भेद नहीं देखते।

 समदृष्टि से सुख दुख को है देखते।

 प्यार शारीरिक सुख के लिए नहीं,

आत्मानंद के लिए करके

 परमानंद की अनुभूति करते हैं।

जग कल्याण के लिए,

मनुष्य को सत्यमार्ग पर लाने के लिए

अपने तन मन को लगाते हैं।

जय श्रीराम आत्माराम बनते हैं ।

- भक्ति के रंग।

 जम्मु-कश्मीर  इकाई को

नमस्ते वणक्कम।।

18-1-24.

विषय-- भक्ति के रंग।

विधा -अपनी हिंदी अपनी भाषा अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

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भक्ति के रंग अनेक,

भगवान तो एक।

सनातन धर्म की बात यही।

पर अपने अपने विश्वास

अपने अपने देश काल वातावरण

भगवान के रूप अनेक।

 देवेन मनुष्य रूपेन।

अजनबी आदमी भी समय पर

 हमारी मदद करता तो

 हम यही कहते कि

 आपने भगवान सम मदद की है।

कई राजनीतिज्ञ  नेता के लिए

मंदिर भी बनवाते हैं,

अपने मालिक की तस्वीर की भी

हाथ जोड़ वंदना करते हैं।

 आदी काल में गुरु वंदना।

माता-पिता, गुरु ईश्वर।

कबीर का ज्ञान मार्ग,

जायसी का प्रेम मार्ग

सूरदास का कृष्ण मार्ग

तुलसीदास का राम मार्ग

भक्ति के मार्ग  अनेक,

 भगवान तो एक।

मानव मन की शांति के लिए,

 मानव जगत के कल्याण के लिए

मानव की एकता के लिए,

 प्रकृति ही भगवान।

मजहब तो मानव मानव में

 संप्रदाय का भेद बढ़ाते।

 पर जय जगत,

 सर्वे जना सुखिनो भवंतु

 वसुधैव कुटुंबकम्

 सनातन धर्म की देन।

 संप्रदाय मानव को 

संकुचित भक्ति दिखाता।

गेरुआ कपड़ा,

हरे कपड़े,

श्वेत कपड़े

तिलकों में फर्क

पूजा पाठ में फर्क

 आकार में फर्क

 पर पंच तत्व

 आकाश,हवा,आग,जल, भूमि

 ये समदर्शी जान।

 न हवा किसी मजहब के नाम।

न प्राकृतिक कोप मजहब के नाम।

 प्राकृतिक प्रदूषण न देखता

 मजहबी, संप्रदाय, 

देश काल वातावरण।

 सोचो समझो प्राकृतिक भक्ति 

 प्राकृतिक आराधना

भूमि प्रदूषण से

जल प्रदूषण से

हवा प्रदूषण से

 विचार प्रदूषण से

 प्रपंच को बचाता,

 एकता का संदेश देता।

 सनातन धर्म के अनुसार

 अद्वैत भावना,

अहं ब्रह्मास्मी,

हर एक में एक शक्ति,

 बद्बू सहने की शक्ति

 शौचालय की सफाई

 करनेवाले को।

 खुशबू में भगवान पुजारी पंडित मौलवी।

 मज़दूर नहीं तो

 बोझ उठाने की शक्ति

 स्नातकोत्तर में नहीं।

 सोचो समझो

 वक्त की मदद करनेवाला भगवान।

 सद्यःफल देनेवाला डाक्टर भी भगवान।

  भक्ति के रंग अनेक।

 भक्ति की धाराएँ अनेक

मूल रूप में भगवान एक।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

8610128658

हम हैं भारतवासी

 नमस्ते वणक्कम।

हम हैं भारतवासी।

 भारत हमारा देशोन्नति।

 जिन में बल है,

वही    देश के आधार।

 शारीरिक बल है कुछ में।

 बुद्धि बल है कुछ में।

 आध्यात्मिक बल है कुछ में।

 राजनैतिक बल है कुछ में।

 धार्मिक बल है कुछ में।

एकता बनाने के बल कुछ में।

एकता तोड़ने का बल कुछ में।

 भाषाएँ अनेक, हर भाषा कौशल में

कुछ लोग सदुपदेश देते हैं कुछ लोग।

स्वार्थवश अश्लील गाना गाते हैं कुछ लोग।

धन के लोभी है कुछ लोग।

दान के प्रिय है कुछ लोग।

कंजूसी है कुछ लोग।

 त्यागी है कुछ लोग।

भोगी है कुछ लोग।

समदर्शी है कौन?

सब के समान हितैषी है,

पंचतत्व आग हवा पानी भूमि आकाश।।

जान समझकर पंच तत्वों को 

 प्रदूषण से बचाना।

 इनमें धन के लिए

 अश्लील गाना,चित्र,कहानियाँ, चित्रपट

खींचना ही बड़ा पाप।।

ईश्वरीय सूक्ष्म दंड मानव के पाप का दंड।

पुण्यातमा कहाँ? 

पापात्मा से भरी  दुनिया

 यह भी ईश्वर की सूक्ष्म लीला।

भगवान के अवतार लीला में भी

 न सौ प्रतिशत धर्म।

अधर्म की प्रासंगिक कहानियाँ।

 प्रपंच की बातें जानना समझना 

 असंभव है मानव को।


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक

द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

Wednesday, January 3, 2024

ज्ञान नहीं

 नमस्ते वणक्कम।

 ज्ञान नहीं तो मनुष्य पशु-पक्षी समान।

अज्ञानी का जीवन संताप भरा।

आत्मज्ञानी  ईश्वर तुल्य।

 आत्मा को पहचानो,

पता चलेगा अनश्वर दुनिया।।

कोई भी संसार में शाश्वत नहीं।

परिवर्तन ही यह लौकिक जीवन।

शैशव में परिवर्तन बचपन ।

बचपन का परिवर्तन लड़कपन।

 लड़कपन से जवानी,

जवानी से प्रौढ़,

प्रौढ़ावस्था से बुढ़ापा,

बुढ़ापे में शिथिलता,

मानव में ही नहीं,

सांसारिक सभी सृष्टियाँ

शाश्वत हैं नहीं।

 सोचो, समझो, पुण्य कर्म करो।।

भ्रष्टाचार , रिश्वत, अन्याय के पैसे,

न बचाएँगे तेरे प्राण।।

डाक्टर भी भी मरता है,

ज्ञानी भी मरता है,

अज्ञानी मत बनो,

मनुष्यता अपनाओ।

मतदान तो ईमानदारी को देना है।

मानव हो मनुष्यता अपनाओ।

 मनुष्यता न तो पशु तुल्य तेरा जीवन।।