नमस्ते वणक्कम् ।
मानव को अधिक सोचना है।
सोचने के लिए प्रकृति को लेना है।
प्रकृति की सृष्टियाँ अधिक विचित्र है।
आँखों को दिखाई पडनेवाली,सूक्षम दर्शी के द्वारा भी
न दीख पडनेवाले रोगाणु, साध्य रोग, असाध्य रोग।
मानव को करोडों जीवाणुओं को देखना -समझना भी अति मुश्किल है।
जरा सोचिए, मानव समर्थ है या नहीं।
बिलकुल असमर्थ है।
हाथी का बल मानव में नहीं,
खटमल ,मच्छर, दीमक से डरता है।
सिंह की गंभीरता मानव में है नहीं।
सियार की चालाकी नहीं।
चींटियों से डरता है।
फिर मानव शक्तिशाली कैसे?
इन सबकी मिश्रित क्षमता मानव में है तो
प्राकृतिक कोप और विनाश से बच नहीं सकता।
तभी याद करना, प्रार्थना करना पडता है
मानवेतर शक्ति पर। अमानुष्यता पर।
मानना पडता है ईश्वरीय शक्ति को।।
रोग,असाध्य रोग, अल्पआयु,
बुद्धि लब्धि के भेद ।
रंग भेद ,स्वर भेद, आकार भेद, आहार भेद।
बाल के रंग में भेद।
अमीरों गरीबी भेद।
बल-दुर्बल भेद।
अति सूक्ष्म निर्गुण तटस्थ ईश्वर को।
अनंतकृष्णन ।
इन
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